सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा 3 अगस्त 2018 को होगी "पदोन्नति में आरक्षण" मामले की सुनवाई
भोपाल/ नई दिल्ली : मान सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा "पदोन्नति में आरक्षण" मामले की सुनवाई 3 अगस्त 2018 को होगी। आज जरनैल सिंह और 52 अन्य संलग्न प्रकरणों की सुनवाई मान मुख्य न्यायधीश की 3 जजों की पीठ द्वारा की गई। उक्त प्रकरणों और ऐसे ही अन्य सभी प्रकरणों के अंतिम निपटारे के लिए अंतत: पीठ ने उक्त निर्णय लिया।
यह उल्लेखनीय है कि म.प्र., बिहार, त्रिपुरा, महाराष्ट्र और केंद्र शासन के "पदोन्नति में आरक्षण" के लगभग 100 मामले मान सर्वोच्च न्यायालय में निराकरण हेतु लंबित हैं। संविधान पीठ के गठन से इन सभी मामलों के निपटारे का रास्ता खुलेगा। गठित संविधान पीठ मात्र एक दिन सुनवाई कर यह फैसला देगी की क्या एम नागराज निर्णय सही है या इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। यदि ऐसा निर्णय होता है तो 7 जजों की बेंच इस पर निर्णय करेगी अन्यथा सभी मामलों का निपटारा एम नागराज निर्णय के आधार पर ही कर दिया जावेगा।
संविधान पीठ के गठन में विलम्ब से अनेक विसंगति पूर्ण स्थितियां उत्पन्न हो रही थीं। हाल ही में मई और जून में मान सर्वोच्च न्यायालय की दो अलग अलग युगल पीठ ने अलग अलग अंतरिम आदेश पारित किए थे जिसके आधार पर केंद्र शासन के कार्मिक विभाग ने पदोन्नति करने के निर्देश दिए थे। म.प्र. में भी इन निर्देशों के अन्तर्गत सरकार पुराने नियमों के आधार पर ही पदोन्नति का विचार कर रही है, जो कानूनसम्मत नहीं है।
दिनांक 30 अप्रैल 2016 के मान उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा पदोन्नति नियम 2002 असंवैधानिक ठहराए जाने और इनके आधार पर गलत पदोन्नत अनुसूचित जाति/ जनजाति के सेवकों को पदावनत करने का निर्णय दिया था जिसके विरुद्ध शासन सर्वोच्च न्यायालय गया था एवं प्रकरण में वर्तमान में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश है फलस्वरूप विगत 2 वर्ष से अधिक समय से पदोन्नतियां बाधित हैं, जबकि इस बीच लगभग 50000 शासकीय सेवक बिना पदोन्नति का लाभ पाए सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सरकार के विभिन्न विभागों में कई महत्वपूर्ण पदों पर प्रभार से काम चलाया जा रहा है।
यह उल्लेखनीय है कि म.प्र., बिहार, त्रिपुरा, महाराष्ट्र और केंद्र शासन के "पदोन्नति में आरक्षण" के लगभग 100 मामले मान सर्वोच्च न्यायालय में निराकरण हेतु लंबित हैं। संविधान पीठ के गठन से इन सभी मामलों के निपटारे का रास्ता खुलेगा। गठित संविधान पीठ मात्र एक दिन सुनवाई कर यह फैसला देगी की क्या एम नागराज निर्णय सही है या इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। यदि ऐसा निर्णय होता है तो 7 जजों की बेंच इस पर निर्णय करेगी अन्यथा सभी मामलों का निपटारा एम नागराज निर्णय के आधार पर ही कर दिया जावेगा।
संविधान पीठ के गठन में विलम्ब से अनेक विसंगति पूर्ण स्थितियां उत्पन्न हो रही थीं। हाल ही में मई और जून में मान सर्वोच्च न्यायालय की दो अलग अलग युगल पीठ ने अलग अलग अंतरिम आदेश पारित किए थे जिसके आधार पर केंद्र शासन के कार्मिक विभाग ने पदोन्नति करने के निर्देश दिए थे। म.प्र. में भी इन निर्देशों के अन्तर्गत सरकार पुराने नियमों के आधार पर ही पदोन्नति का विचार कर रही है, जो कानूनसम्मत नहीं है।
दिनांक 30 अप्रैल 2016 के मान उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा पदोन्नति नियम 2002 असंवैधानिक ठहराए जाने और इनके आधार पर गलत पदोन्नत अनुसूचित जाति/ जनजाति के सेवकों को पदावनत करने का निर्णय दिया था जिसके विरुद्ध शासन सर्वोच्च न्यायालय गया था एवं प्रकरण में वर्तमान में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश है फलस्वरूप विगत 2 वर्ष से अधिक समय से पदोन्नतियां बाधित हैं, जबकि इस बीच लगभग 50000 शासकीय सेवक बिना पदोन्नति का लाभ पाए सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सरकार के विभिन्न विभागों में कई महत्वपूर्ण पदों पर प्रभार से काम चलाया जा रहा है।
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