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MP में संविदा कर्मचारियों की हालात चिंतनीय


मप्र में संविदा कर्मचारियों के हालात बिगड़ते जा रहे है।भिन्न भिन्न  शासकीय विभागों में कार्य करने वाले संविदा कर्मचारी लाचारी की मार झेल रहे है।चाहे कृषि विभाग हो या चिकित्सा विभाग संविदा कर्मचारियों का शोषण निरंतर जारी है।विगत अनेक वर्षो से संविदा कर्मचारी व अधिकारी कृषि की नवीनतम तकनीकी फसल उत्पादन पद्वतियों का प्रचार-प्रसार का कार्य कर रहे हैं जिनकी मेहनत और परिश्रम के परिणाम के फलस्वरूप मप्र को लगातार  कृषि कर्मण पुरूस्कार मिल रहा है जिन कर्मचारियों की मेहनत के फलस्वरूप पुरूस्कार मिलता है ऐसे कर्मचारियों का शोषण हो रहा है। 2015 में कृषि विभाग के तीन सौ संविदा कर्मचारीयो ने कृषि मंत्री को ज्ञापन सौंपा था जिसमे यह उल्लेख था कि संविदा कर्मचारी अल्प वेतन पर कार्य कर रहे हैं, समान कार्य के बदले समान वेतन नही दिया जा रहा है , वार्षिक वेतन वृद्वि निर्धारित तिथि से नहीं दी जा रही है।इसके बाद कृषि मंत्री गौरी शंकर बिसेन ने कर्मचारियों को निराकरण करने का आश्वासन दिया था।लेकिन जब कोई निराकरण नही किया गया तो सभी विभागों के संविदा कर्मचारियों ने 2016 और 2017 में कई बार आंदोलन किये जिस बीच मुख्यमंत्री द्वारा निराकरण करने की बात कही गयी लेकिन इतने सालों में सरकार द्वारा कोई कदम नही उठाया गया।संविदा कर्मचारियो से न्यूनतम वेतन में अधिकतम कार्य करवाया जाता है और उन पर अधिकारियों द्वारा यह दबाब बनाया जाता है कि यदि वे काम नही करेंगे तो उनका सीआर ख़राब कर दिया जायेगा। इस डर से की सीआर ख़राब होने पर उन्हें नोकरी से हटा दिया जायेगा संविदा कर्मचारी यह तानाशाही सहते रहते है। साथ ही साथ जहाँ संविदा कर्मचारियों के वेतन में हर साल 10% वेतन वृद्धि का नियम है वहाँ 1 या 2% वेतन वृद्धि होती या फिर वह भी नही होती है।संविदा कर्मचारियों से प्रतिवर्ष संविदा बढ़ाने के नाम पर  डराया जाता है। संविदा बढ़ाने के नाम प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये की उगाही संविदा कर्मचारियों से जिले के नियमित अधिकारी करते हैं । संविदा कर्मचारी कार्यालयीन कार्य और मैदानी क्षेत्र में मानिटरिंग करते समय दुर्घटना ग्रस्त हो जाते हैं। जिससे वे कार्यालय नहीं जा पाते तो उनका वेतन काट लिया जाता है जबकि वो शासकीय कार्य से ही दुर्घटना ग्रस्त हुये हैं । किसी प्रकार की चिकित्सा सुविधा या प्रतिपूर्ति नहीं की जाती । परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय हो जाती है । किसी संविदा कर्मचारी की आकस्मिक मृत्यु होने पर अनुकम्पा नियुक्ति का प्रावधान भी नहीं है।उच्च अधिकारी भरी मिटिंगों में सबके सामने कहते हैं कि संविदा कर्मचारियों को लात मारकर बाहर कर दों । संविदा नौकरी के नाम पर कर्मचरियों का अपमान किया जाता है ।बार-बार संविदा बढ़ाना संविदा कर्मचारियों का शोषण है। संविधान के अनुच्छेद 14, 16 में दिए अधिकारों के तहत समान पद समान व्यवहार भी इन कर्मचारियों का अधिकार है। संविदा कर्मचारियों को सेवा से हटाना श्रम कानून के लिहाज से भी सही नहीं है।2016 में पंजाब और हरियाणा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि अस्थाई कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारियों के बराबर काम करने पर उन्हें कम वेतन देना उनका शोषण है।समान कार्य करने पर अस्थाई कर्मचारियों को भी समान वेतन मिलना चाहिए।लेकिन मप्र में कई वर्षों से संविदा कर्मचारी परेशान हो रहे है लेकिन सरकार को कोई फर्क नही पड़ रहा है।सरकार अपने अधीन कर्मचारियों की मांगे और शिकायतें नजरअंदाज़ कर रही है यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है जिससे मप्र सरकार अपनी छवि स्वयं ख़राब कर रही है।

- शिवांगी पुरोहित, स्वतंत्र लेखक

यह लेखक के निजी विचार है।

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