पदोन्नति में आरक्षण : केंद्र की याचिका का शांति भूषण ने किया विरोध, अब 29 और 30 अगस्त को होगी सुनवाई
नई दिल्ली/भोपाल : SC/ST कर्मचारियों को सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में गुरुवार (23 अगस्त) को सुनवाई हुई. सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में पक्षकारों के वकील शांति भूषण ने नागराज के फैसले पर पुनर्विचार को लेकर केंद्र सरकार की याचिका का विरोध किया. भूषण ने कहा कि यह वोट बैंक की राजनीति है और इस मुद्दे को राजनीतिक बनाने के लिए किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि पदोन्नति में कोटा अनुच्छेद 16 (4) के तहत संरक्षित नहीं है, जहां ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा आ जाएगी.
भूषण ने कहा कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में SC/ST के लिए कोटा अनिवार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती और ये संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करेगा. भूषण ने नागराज के फैसले को न्यायसंगत ठहराते हुए कहा कि क्या SC/ST के लिए सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण विभिन्न कैडरों या सेवाओं में उनके प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के डेटा के बिना प्रदान किया जा सकता है? ये इस अदालत द्वारा तय किया जाने वाला संक्षिप्त सवाल है. नियुक्तियों के लिए SC/ST के लिए आरक्षण का प्रारंभिक स्तर पदोन्नति के हर स्तर पर बढ़ाया नहीं जा सकता.मामले की अगली सुनवाई 29 अगस्त को होगी.
केंद्र ने एक हजार साल पिछड़ेपन का दिया था हवाला
दरअसल, इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 2006 में नागराज मामले में आया फैसला ST/SC कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने में बाधा डाल रहा है,लिहाजा इस फैसले पर फिर से विचार की ज़रूरत है.अटॉनी जनरल केकेवेणुगोपाल ने कहा था कि इस फैसले में आरक्षण दिए जाने के लिए दी गई शर्तो पर हर केस के लिए अमल करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है.केंद्र सरकार ने कहा था कि 2006 में आए इस फैसले में कहा गया था कि प्रमोशन में रिजर्वेशन देने से पहले ये साबित करना होगा कि सेवा में SC/ST का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है और इसके लिए डेटा देना हो.केंद्र सरकार की ओर से पेश अर्टनी जनरल ने कहा था कि SC/ST समुदाय सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ा रहा है और SC/ST में पिछड़ेपन को साबित करने की ज़रूरत नहीं है.अर्टनी जनरल ने कहा था कि 1000 साल से SC/ST जो भुगत रहे है, उसे संतुलित करने के लिए SC/ST को आरक्षण दिया है, ये लोग आज भी उत्पीड़न के शिकार हो रहे है.
केंद्र ने एम नागराज फैसले पर उठाए सवाल
2006 के एम नागराज फैसले पर सवाल उठाते हुए अटॉनी जनरल ने कहा था कि इस फैसले में आरक्षण दिए जाने के लिए दी गई शर्तो पर हर केस के लिए अमल करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है.आप SC/ST को नौकरियों में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को कैसे साबित करेंगे.क्या ये हर पद के लिए होगा? क्या पूरे विभाग के लिए होगा.ये सारे फैक्टर कैसे निर्धारित होंगे.अर्टनी जनरल ने बताया कि सरकार SC/ST समुदाय के लिए सरकारी नौकरियों में 22.5 फीसदी पदों पर प्रमोशन में रिजर्वेशन चाहती है, केवल यही संख्या नौकरियों में उनके वाजिब प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित कर सकतीहै.
क्या है एम नागराज का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में एम. नागराज को लेकर फैसला दिया था.कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा सरकारी नौकरियों की पदोन्नतियों में एससी-एसटी आरक्षण में लागू नहीं की जा सकती, जैसा अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमी लेयर को लेकर पहले के दो फैसलों 1992 के इंद्रा साहनी व अन्य बनाम केंद्र सरकार (मंडल आयोग फैसला) और 2005 के ईवी चिन्नैय्या बनाम आंध्र प्रदेश के फैसले में कहा गया था.
भूषण ने कहा कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में SC/ST के लिए कोटा अनिवार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती और ये संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करेगा. भूषण ने नागराज के फैसले को न्यायसंगत ठहराते हुए कहा कि क्या SC/ST के लिए सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण विभिन्न कैडरों या सेवाओं में उनके प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के डेटा के बिना प्रदान किया जा सकता है? ये इस अदालत द्वारा तय किया जाने वाला संक्षिप्त सवाल है. नियुक्तियों के लिए SC/ST के लिए आरक्षण का प्रारंभिक स्तर पदोन्नति के हर स्तर पर बढ़ाया नहीं जा सकता.मामले की अगली सुनवाई 29 अगस्त को होगी.
केंद्र ने एक हजार साल पिछड़ेपन का दिया था हवाला
दरअसल, इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 2006 में नागराज मामले में आया फैसला ST/SC कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने में बाधा डाल रहा है,लिहाजा इस फैसले पर फिर से विचार की ज़रूरत है.अटॉनी जनरल केकेवेणुगोपाल ने कहा था कि इस फैसले में आरक्षण दिए जाने के लिए दी गई शर्तो पर हर केस के लिए अमल करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है.केंद्र सरकार ने कहा था कि 2006 में आए इस फैसले में कहा गया था कि प्रमोशन में रिजर्वेशन देने से पहले ये साबित करना होगा कि सेवा में SC/ST का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है और इसके लिए डेटा देना हो.केंद्र सरकार की ओर से पेश अर्टनी जनरल ने कहा था कि SC/ST समुदाय सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ा रहा है और SC/ST में पिछड़ेपन को साबित करने की ज़रूरत नहीं है.अर्टनी जनरल ने कहा था कि 1000 साल से SC/ST जो भुगत रहे है, उसे संतुलित करने के लिए SC/ST को आरक्षण दिया है, ये लोग आज भी उत्पीड़न के शिकार हो रहे है.
केंद्र ने एम नागराज फैसले पर उठाए सवाल
2006 के एम नागराज फैसले पर सवाल उठाते हुए अटॉनी जनरल ने कहा था कि इस फैसले में आरक्षण दिए जाने के लिए दी गई शर्तो पर हर केस के लिए अमल करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है.आप SC/ST को नौकरियों में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को कैसे साबित करेंगे.क्या ये हर पद के लिए होगा? क्या पूरे विभाग के लिए होगा.ये सारे फैक्टर कैसे निर्धारित होंगे.अर्टनी जनरल ने बताया कि सरकार SC/ST समुदाय के लिए सरकारी नौकरियों में 22.5 फीसदी पदों पर प्रमोशन में रिजर्वेशन चाहती है, केवल यही संख्या नौकरियों में उनके वाजिब प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित कर सकतीहै.
क्या है एम नागराज का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में एम. नागराज को लेकर फैसला दिया था.कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा सरकारी नौकरियों की पदोन्नतियों में एससी-एसटी आरक्षण में लागू नहीं की जा सकती, जैसा अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमी लेयर को लेकर पहले के दो फैसलों 1992 के इंद्रा साहनी व अन्य बनाम केंद्र सरकार (मंडल आयोग फैसला) और 2005 के ईवी चिन्नैय्या बनाम आंध्र प्रदेश के फैसले में कहा गया था.
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