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सत्य के धारक भगवान परशुराम - पं. अजय मिश्राॐ जमदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात।परशुराम जयंती विशेष:-

सत्य के धारक भगवान परशुराम - पं. अजय मिश्रा

ॐ जमदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात।

परशुराम जयंती विशेष:-
'परशु' प्रतीक है पराक्रम का। 'राम' पर्याय है सत्य सनातन का। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक। शास्त्रोक्त मान्यता तो यह है कि परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, अतः उनमें आपादमस्तक विष्णु ही प्रतिबिंबित होते हैं। परंतु मेरी मौलिक और विनम्र व्याख्या यह है कि 'परशु' में भगवान शिव समाहित हैं और 'राम' में भगवान विष्णु। इसलिए परशुराम अवतार भले ही विष्णु के हों, किंतु व्यवहार में समन्वित स्वरूप शिव और विष्णु का है। इसलिए मेरे मत में परशुराम दरअसल 'शिवहरि' हैं।

पिता जमदग्नि और माता रेणुका ने तो अपने पाँचवें पुत्र का नाम 'राम' ही रखा था, लेकिन तपस्या के बल पर भगवान शिव को प्रसन्न करके उनके दिव्य अस्त्र 'परशु' (फरसा या कुठार) प्राप्त करने के कारण वे राम से परशुराम हो गए। 'परशु' प्राप्त किया गया शिव से, और शिव संहार के देवता हैं। परशु संहारक है क्योंकि परशु 'शस्त्र' है, राम प्रतीक हैं विष्णु के।

विष्णु पोषण के देवता हैं अर्थात राम यानी पोषण, रक्षण का शास्त्र, शस्त्र से ध्वनित होती है शक्ति। शास्त्र से प्रतिबिंबित होती है शांति, शस्त्र की शक्ति यानी संहार, शास्त्र की शांति अर्थात्‌ संस्कार। मेरे मत में परशुराम दरअसल 'परशु' के रूप में शस्त्र और 'राम' के रूप में शास्त्र का प्रतीक हैं। एक वाक्य में कहूँ तो परशुराम शस्त्र और शास्त्र के समन्वय का नाम है, संतुलन जिसका पैगाम है।

अक्षय तृतीया को जन्मे हैं, इसलिए परशुराम की शस्त्रशक्ति भी अक्षय है और शास्त्र संपदा भी अनंत है। विश्वकर्मा के अभिमंत्रित दो दिव्य धनुषों की प्रत्यंचा पर केवल परशुराम ही बाण चढ़ा सकते थे। यह उनकी अक्षय शक्ति (यानी शस्त्रशक्ति) का प्रतीक था। पिता जमदग्नि की आज्ञा से अपनी माता रेणुका का उन्होंने वध किया। यह पढ़कर, सुनकर हम अचकचा जाते हैं, अनमने हो जाते हैं, लेकिन इसके मूल में छिपे रहस्य को/सत्य को जानने की कोशिश नहीं करते।

यह तो स्वाभाविक बात है कि कोई भी पुत्र अपने पिता के आदेश पर अपनी माता का वध नहीं करेगा। फिर परशुराम ने ऐसा क्यों किया.? इस प्रश्न का उत्तर हमें परशुराम के 'परशु' में नहीं परशुराम के 'राम' में मिलता है। आलेख के आरंभ में ही 'राम' की व्याख्या करते हुए कहा जा चुका है कि 'राम' पर्याय है सत्य सनातन का। सत्य का अर्थ है सदा नैतिक, सत्य का अभिप्राय है दिव्यता, सत्य का आशय है सतत्‌ सात्विक सत्ता।

नैतिक-युक्ति का अवतरण हैं, परशुराम दरअसल 'राम' के रूप में सत्य के संस्करण हैं, इसलिए नैतिक-युक्ति का अवतरण हैं। यह परशुराम का तेज, ओज और शौर्य ही था कि कार्तवीर्य सहस्रार्जुन का वध करके उन्होंने अराजकता समाप्त की तथा नैतिकता और न्याय का ध्वजारोहण किया। परशुराम का क्रोध मेरे मत में रचनात्मक क्रोध है।

"जैसे माता अपने शिशु को क्रोध में थप्पड़ लगाती है, लेकिन रोता हुआ शिशु उसी माँ के कंधे पर आराम से सो जाता है, क्योंकि वह जानता है कि उसकी माँ का क्रोध रचनात्मक है। मेरा यह भी मत है कि परशुराम ने अन्याय का संहार और न्याय का सृजन किया।"

परशुराम जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इसे “परशुराम द्वादशी” भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता, अक्षय तृतीया से त्रेता युग का आरंभ माना जाता है, अतः इस दिन का विशेष महत्व है। भारत में हिन्दू धर्म को मानने वाले अधिक लोग हैं, मध्य कालीन समय के बाद जब से हिन्दू धर्म का पुनुरोद्धार हुआ है तब से परशुराम जयंती का महत्व और अधिक बढ़ गया है। इस दिन उपवास के साथ साथ सर्व ब्राह्मण का जुलूस, सत्संग भी सम्पन्न किए जाते हैं

परशुराम वीरता के साक्षात उदाहरण हैं, परशुराम ऋषि जमादग्नि तथा रेणुका के पांचवें पुत्र थे. ऋषि जमादग्नि सप्तऋषि में से एक ऋषि थे, भगवान विष्णु के 6वें अवतार के रूप में परशुराम पृथ्वी पर अवतरित हुए। हिन्दू धर्म में परशुराम के बारे में यह मान्यता है, कि वे त्रेता युग एवं द्वापर युग से अमर हैं। परशुराम की त्रेता युग दौरान रामायण में तथा द्वापर युग के दौरान महाभारत में अहम भूमिका है। रामायण में सीता के स्वयंवर में भगवान राम द्वारा शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ने पर परशुराम सबसे अधिक क्रोधित हुए थे।

मान्यतानुसार- 
एक बार पृथ्वी पर क्षत्रियों के राजा कर्तावीर्य सहश्रजून ने परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि तथा उनकी कामधेनु गाय का वध कर दिया। इससे परशुराम को बहुत क्रोध आया एवं परशुराम ने क्रोध में सभी क्षत्रियों को मारने एवं पूरी पृथ्वी को क्षत्रिय राजाओं की तानाशाही से मुक्त करने की शपथ ले ली। जब पृथ्वी पर सभी क्षत्रियों ने यह कसम सुनी, तब वे पृथ्वी छोड़–छोड़ कर भागने लगे। पृथ्वी की रक्षा के लिए कोई भी क्षत्रिय नहीं बचा, इसलिए कश्यप मुनि ने परशुराम को पृथ्वी छोड़ने का आदेश दे दिया। मुनि कश्यप की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम महेन्द्रगिरी (उड़ीसा के गजपति जिले में स्थित) के महेंद्र पर्वत पर रहने चले गए। वहाँ उन्होने कई वर्ष तक तपस्या की, तब से ले कर आजतक महेन्द्रगिरी को परशुराम का निवास स्थान माना जाता है। वैदिक काल के अंत के दौरान परशुराम योद्धा से सन्यासी बन गए थे, उन्होने कई जगह अपनी तपस्या प्रारम्भ की। उड़ीसा के महेन्द्रगिरी में तो आज भी उनकी उपस्थिती मानी जाती है। पुराणों में प्रसिद्ध संत व्यास, कृपा, अश्वस्थामा के साथ-साथ परशुराम को भी कलियुग में ऋषि के रूप में पूजा जाता है, साथ ही उन्हें आंठवें मानवतारा के रूप में सप्तऋषि के रूप में गिना जाता है।


इस वर्ष 2020 में परशुराम जयंती आज मनाई जा रही है। यह दिन सिंहस्थ के पर्व का भी है, इसलिए इस दिन की मान्यता और भी अधिक बढ़ जाती है. तो आइये हम सब भी इस दिन अपने-अपने घर पर ही भगवान परशुराम की पूजा में शामिल होकर आशीर्वाद प्राप्त करें।

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