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पति की लम्बी आयु के लिये पत्नी ने वट की पूजा कर रखा व्रत

पति की लम्बी आयु के लिये पत्नी ने वट की पूजा कर रखा व्रत 
शहडोल ।शहडोल जिले के नगर व ग्राम सहित वट सावित्री का व्रत सभी हिन्दू महिलाएं रखती हैं ।हिंदू धर्म में पति की दीर्घायु के लिए महिलाएं साल भर में कई विषेश तिथि और त्यौहार पर व्रत रखती है उन्ही में से एक है वट सावित्री व्रत। हर साल वट सावित्री व्रत ज्येश्ठ कृश्ण अमावस्या को मनाया जाता है।  मान्यता है कि इसी दिन पतिव्रता सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा जैन सावित्री के दिन सभी सुहागन महिलाएं पूरे सोलह श्रृंगार कर बरगद के पेड़ की पूजा करते हैं ऐसा पति की लंबी आयु की कामना के लिए किया जाता है पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन ही सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्रमुख वापस आए थे इस कारण से ऐसी मान्यता चली आ रही है कि जो स्त्री सावित्री के समान यह व्रत करती है उसके पति पर भी आने वाले सभी संकट इस पूजन से दूर होते हैं इस दिन महिलाएं वक्त यानी बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री सत्यवान व अन्य देवों का पूजन करती है इसी कारण से इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा है इस व्रत के परिणाम स्वरूप सुखद और संपन्न दांपत्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है ऐसे वट सावित्री का व्रत समस्त परिवार की सुख संपन्नता के लिए भी किया जाता है दरअसल सावित्री ने यमराज से न केवल अपने पति के प्राण वापस आए थे बल्कि उन्होंने समस्त परिवार के कल्याण का वर भी प्राप्त किया था शास्त्रों के अनुसार वट सावित्री व्रत में पूजन सामग्री का खास महत्व होता है ऐसी मान्यता है कि सही पूजन सामग्री के बिना की गई पूजा अधूरी ही मानी जाती है पूजन सामग्री में बांस का पंखा लाल या पीला धागा धूपबत्ती कोई भी पांच फल जल से भरा पात्र सिंदूर लाल कपड़ा आदि का होना अनिवार्य है इस दिन महिलाएं सुबह उठकर नित्य कर्म से निर्मित होने के बाद स्नान आदि कर शुद्ध हो जाएं फिर नए वस्त्र पहन कर सोलह सिंगार करें इसके बाद पूजन की सारी सामग्री को एक टोकरी  या डलिया में  रखकर  फिर बरगद वृक्ष के नीचे सफाई करने के बाद वहां सभी सामग्री रखने के बाद स्थान ग्रहण करते है, इसके बाद सबसे पहले सत्यवान और सावित्री की मूर्ति को वहां स्थापित करें फिर अन्य सामग्री जैसे धूप दीप रोली भिगोए चने सिंदूर आदि से पूजन करते है, इसके बाद लाल कपड़ा अर्पित कर और फल समर्पित करते हैं, फिर बांस के पंखे से सावित्री सत्वान को हवा कर और बरगद के एक पत्ते को अपने बालों में लगाएं इसके बाद धागे को पेड़ में लपेटते हुए जितना संभव हो सके 5,11,21,51, या 108 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा करते है  अंत में सावित्री सत्यवान की कथा पंडितजी से सुनने के बाद उन्हें यथासंभव दक्षिणा देना या कथा खुद भी पढ़ सकती है। इसके बाद घर आकर उसी पंखे से अपने पति को हवा करें और उनसे आषीर्वाद लते हैं । फिर प्रसाद में चढ़े फल आदि ग्रहण करने के बाद सायं  के वक्त मीठा भोजन करते हैं ।

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