आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं हैं टिप्पणी का सापाक्स ने किया स्वागत, मंत्री रामविलास पासवान को लेकर कहा...। Sapaks News
भोपाल : सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक अधिकारी कर्मचारी वर्ग संस्था (सपाक्स) की प्रांतीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। बैठक में माननीय सर्वोच्च न्यायालय की हाल में की गई टिप्पणी और उस पर केंद्रीय मंत्री श्री रामविलास पासवान की आरक्षण को 9 वीं अनुसूची में डालने की मांग, प्रदेश में रुकी हुई पदोन्नतियों की स्थिति पर विस्तृत विचार किया गया।
संस्था, मा न्यायालय के दि 11.06.20 के निर्णय और इस टिप्पणी का स्वागत करती है कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। संस्था स्वयं यह बात प्रारंभ से हर मंच पर कहती आई है कि आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा होनी चाहिए एवं आरक्षण उस तबके को मिलना चाहिए जो आर्थिक एवं सामाजिक रूप से वास्तव मे पिछड़ा हो चाहे वह किसी भी जाती का हो ।
संस्था केंद्रीय मंत्री के उस बयान की भी निंदा करती है जिसमें उन्होंने आरक्षण को 9 वीं अनुसूची में रखे जाने की मांग की है। वास्तव में यह मांग वे और उनकी ही तरह अन्य लोगों के हित के लिए कर रहे हैं, जिनका वास्तविक वंचितों के उत्थान से कोई वास्ता नहीं है। अन्यथा स्वयं वे सक्षम और स्थापित हो जाने के बाद किसी सामान्य सीट से चुनाव लड़ते और अपनी सीट किसी वास्तविक वंचित के उत्थान के लिए छोड़ते। इसी प्रकार अनुसूचित जाति / जनजाति में एक आभिजात्य वर्ग तैयार हो गया है जो 70 सालों से शासकीय, अर्ध शासकीय तथा शासन द्वारा वित्त पोषित स्वशासी संस्थाओं में आरक्षण का लाभ पीढ़ी दर पीढ़ी उठा रहा है और वर्तमान में इनकी तीसरी और चौथी पीढ़ी आरक्षण का लाभ लेकर नौकरियां पाती जा रही है, एक परिवार में चार चार पांच पांच लोग शासकीय सेवाओं में हैं जबकि आरक्षित वर्ग के वास्तविक हितग्राही आज भी आरक्षण का लाभ पाने से वंचित है ।
केंद्र सरकार ने स्वयं अब मा सर्वोच्च न्यायालय को आवेदन देकर अवगत कराया है कि पदोन्नति में आरक्षण को लेकर विभिन्न समस्त याचिकाओं पर यथास्थिति के अंतरिम आदेश के कारण लाखों कर्मियों की पदोन्नतियां रुकी हैं और इस कारण उन्हें आर्थिक हानि हो रही है तथा तंत्र में शिथिलता आ रही है।
प्रदेश में भी विगत 4 वर्षों से यही स्थिति है। सपाक्स संस्था के बार बार निवेदन के बावजूद प्रदेश सरकार ने कभी भी ऐसी कोई पहल नहीं की। जबकि माननीय उच्च न्यायालय मध्य प्रदेश के अप्रैल 2016 के निर्णय तथा सुप्रीम कोर्ट के यथा स्थिती आदेश के द्वारा सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मियों की पदोन्नतियों पर कोई प्रतिबंध नहीं है क्योंकि उन्हें आरक्षण का कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। संवैधानिक अनियमितता से लाभान्वित अनु जाति/ जनजाति वर्ग हुआ है और इस वर्ग के कर्मी उन पदों पर आज बैठे हैं, जहां उन्हें नहीं होना चाहिए था। स्वयं मप्र शासन की अपील में नियमों के असंवैधानिकता को लेकर कोई प्रश्न नहीं उठाया गया है, बल्कि यह मांग की गई है कि जो इन (असंवैधानिक) नियमों का लाभ देकर पदोन्नत कर दिए गए हैं, उन्हें पदावनत न किया जाए।
संस्था माननीय सर्वोच्च न्यायालय में इस हेतु संघर्ष करेगी और अपना पक्ष मजबूती से रखेगी ताकि कोई अन्यथा अंतरिम आदेश पारित न हो। बैठक यह भी निर्णय लिया गया कि संस्था सभी सांसद / विधायकों को पत्र लिखकर अनुरोध करेगी कि वे वोट बैंक की राजनीती को त्याग कर सर्वसमाज के व्यापक हित में निर्णय करें और संविधान के विपरित किसी भी कदम का विरोध करें।
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