सरकार को आहत करती हैं SC की कुछ टिप्पणियां
नई दिल्ली। अपने मंत्रालय के कामकाज की तुलना सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुंभकर्ण की नींद से करने पर पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर बेहद दुखी हैं। उन्होंने इसका हवाला दिए बगैर कहा कि संदर्भ से परे हटकर शीर्ष न्यायालय की कुछ टिप्पणियों से सरकार कभी-कभी आहत भी हो जाती है।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए जावड़ेकर अपना यह दर्द बयां किया। उनका कहना था, 'जब कभी संदर्भ से परे हटकर टिप्पणियां की जाती हैं तो इस बारे में न्यायपालिका को सोचना है। लेकिन ये कभी-कभी अनावश्यक रूप से आहत भी कर देती हैं। परसो मैंने सुना कुंभकर्ण हो गया। कुंभकर्ण कहां हो गया?' संसदीय राज्य मंत्री का अतिरिक्त प्रभार भी संभाल रहे जावड़ेकर के अनुसार, 'उस समय दुख होता है जब सुप्रीम कोर्ट की ओर से सरकार से नेता विरोधी दल की नियुक्ति के बारे में सवाल पूछा जाता है।
लोकसभा में नेता विपक्ष पद के लिए सदन की कुल सदस्यता के दस फीसद यानी 55 सांसद होने चाहिए। अगर जनता ने किसी पार्टी को यह संख्या नहीं दी तो हम क्या कर सकते हैं?' उन्होंने जोर दिया कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को बेहद संतुलित तरीके से जनता की भलाई के लिए काम करना चाहिए। जावड़ेकर ने ये सारी बातें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रंजन गोगोई की मौजूदगी में कहीं, जो समारोह के मुख्य अतिथि थे। उन्होंने ये टिप्पणी न्यायमूर्ति रंजन गोगोई से इस बात का आश्वासन लेने के बाद की कि कहीं उनकी ये बातें अदालत की अवमानना तो नहीं हो जाएंगी?
ध्यान रहे कि दो हफ्ते पहले उत्तराखंड में अलखनंदा और भागीरथी नदी पर प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं पर लगी अदालती रोक हटाने से इन्कार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय पर तल्ख टिप्पणी की थी। उसने कहा था कि इस मामले में पर्यावरण मंत्रालय कुंभकर्ण की नींद सो रहा है।
शीर्ष न्यायालय के अनुसार इन योजनाओं के चलते पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले असर के बारे में केंद्र सरकार जब तक विस्तृत रिपोर्ट पेश नहीं करती, तब तक इन जल विद्युत परियोजनाओं को अदालत हरी झंडी नहीं देगी। अदालत ने जानना चाहा था कि पर्यावरण मंत्रालय उसके आदेशों का पालन करते हुए इस बारे में गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष क्यों नहीं पेश कर रहा है?
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए जावड़ेकर अपना यह दर्द बयां किया। उनका कहना था, 'जब कभी संदर्भ से परे हटकर टिप्पणियां की जाती हैं तो इस बारे में न्यायपालिका को सोचना है। लेकिन ये कभी-कभी अनावश्यक रूप से आहत भी कर देती हैं। परसो मैंने सुना कुंभकर्ण हो गया। कुंभकर्ण कहां हो गया?' संसदीय राज्य मंत्री का अतिरिक्त प्रभार भी संभाल रहे जावड़ेकर के अनुसार, 'उस समय दुख होता है जब सुप्रीम कोर्ट की ओर से सरकार से नेता विरोधी दल की नियुक्ति के बारे में सवाल पूछा जाता है।
लोकसभा में नेता विपक्ष पद के लिए सदन की कुल सदस्यता के दस फीसद यानी 55 सांसद होने चाहिए। अगर जनता ने किसी पार्टी को यह संख्या नहीं दी तो हम क्या कर सकते हैं?' उन्होंने जोर दिया कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को बेहद संतुलित तरीके से जनता की भलाई के लिए काम करना चाहिए। जावड़ेकर ने ये सारी बातें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रंजन गोगोई की मौजूदगी में कहीं, जो समारोह के मुख्य अतिथि थे। उन्होंने ये टिप्पणी न्यायमूर्ति रंजन गोगोई से इस बात का आश्वासन लेने के बाद की कि कहीं उनकी ये बातें अदालत की अवमानना तो नहीं हो जाएंगी?
ध्यान रहे कि दो हफ्ते पहले उत्तराखंड में अलखनंदा और भागीरथी नदी पर प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं पर लगी अदालती रोक हटाने से इन्कार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय पर तल्ख टिप्पणी की थी। उसने कहा था कि इस मामले में पर्यावरण मंत्रालय कुंभकर्ण की नींद सो रहा है।
शीर्ष न्यायालय के अनुसार इन योजनाओं के चलते पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले असर के बारे में केंद्र सरकार जब तक विस्तृत रिपोर्ट पेश नहीं करती, तब तक इन जल विद्युत परियोजनाओं को अदालत हरी झंडी नहीं देगी। अदालत ने जानना चाहा था कि पर्यावरण मंत्रालय उसके आदेशों का पालन करते हुए इस बारे में गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष क्यों नहीं पेश कर रहा है?
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