पाक ने क्यों उड़ा रखी है अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की नींद?
नई दिल्ली: पकिस्तान को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की नींद आखिर क्यों गायब है? कहीं इसलिए तो नहीं कि किसी दिन ऐसा हो जाए कि कोई पाकिस्तानी जनरल नाराज हो जाए और कुछ आतंकवादियों के बदले बड़े लाभ के प्रलोभन में न आए और मुल्ला उमर या हक्कानी को एक-दो परमाणु बम उपलब्ध करा दे? ये सवाल अनुभवी राजनयिक राजीव डोगरा ने अपनी नई किताब में खड़े किए हैं।
दिसंबर 2012 में 'एस्क्वायर' पत्रिका को दिए गए अपने साक्षात्कार में अभिनेता जॉर्ज क्लूनी ने कहा था कि कुछ महीने पहले उनकी मुलाकात राष्ट्रपति ओबामा से हुई थी तो उन्होंने पूछा था कि कौन-सी चीज उनकी नींद उड़ाती है? उन्होंने कहा था कि सबकुछ, जो भी काम मेरे सामने आता है, वह सब नींद उड़ानेवाला होता है। क्योंकि मेरे पास उस काम के आने का मतलब है कि कोई दूसरा उस काम को नहीं कर सकता। तो मैंने पूछा कि कोई एक ऐसा काम बताइए जिसने आपकी नींद उड़ा दी है? उन्होंने कहा, कई सारे हैं। मैंने पूछा, कोई एक तो बताइए? तब उन्होंने कहा, पाकिस्तान।
क्या किसी भारतीय नेता की भी नींद पाकिस्तान के कारण उड़ती है? अभी तो ऐसा कोई मामला देखने में नहीं आया। हालांकि एक बात बिल्कुल साफ है कि भारतीय नेता दुनिया के सामने यह दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं कि पाकिस्तान को लेकर उनके मन में कोई दुराग्रह नहीं है और एक सबल-सफल पाकिस्तान भारत के हित में है।
यहां तक कि वे यह भी दावा करते हैं कि वे स्थिरता लाने में पाकिस्तान की हरसंभव मदद करने को तैयार हैं। हालांकि वह क्या मदद करेंगे और कितना मदद करेंगे यह कभी स्पष्ट नहीं किया गया है। न ही कभी उन्होंने यह देखने की कोशिश की उनके मदद के हाथ को पाकिस्तान में किस तरह लिया जाएगा। पाकिस्तान का जो भी राजनीतिक दल या व्यक्ति अगर भारत की मदद लेता है तो उसे पाकिस्तान में मौत को गले लगाने की तरह देखा जाएगा।
वहीं दूसरी तरफ भारत अगर रुपये-पैसों से पाकिस्तान की मदद करता है तो उसे पहले अमेरिका का अंजाम देख लेना चाहिए जिसने सालों से पाकिस्तान की खूब मदद की है, लेकिन फिर भी उसके राष्ट्रपति की नींद उड़ी हुई है। अमेरिका ने लाखों डॉलर पाकिस्तान को दिए जिसका कोई अता-पता नहीं है, साथ ही वहां स्थिरता लाने में इसका कोई असर नहीं दिखता। यही कारण है कि आलोचक अक्सर यह सवाल उठाते हैं कि क्या पाकिस्तान भारत की जिम्मेदारी है? या ऐसा करना खतरनाक होगा?
राजनीति विज्ञानी और अर्थशास्त्री फ्रांसिस फुकुयोमा ने अपनी किताब 'स्टेट बिल्डिंग' में लिखा है कि कमजोर और विफल राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय जगत की इकलौती सबसे महत्वपूर्ण समस्या है। यह निष्कर्ष फुकुयोमा ने पाकिस्तान को सामने रखकर निकाला है, इस बारे में मुकम्मल रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन अंतरराष्ट्रीय जगत में पाकिस्तान के बारे में चल रही चर्चाओं और लेखों से यह बात स्पष्ट रूप से सामने है कि पाकिस्तान एक राष्ट्र के रूप में असफल हो चुका है।
इसकी भी निकट भविष्य में कोई उम्मीद नहीं दिखती कि पाकिस्तान में ऐसी कोई व्यवस्था बनेगी जहां पारदर्शिता, जिम्मेदारी जैसी चीजों के लिए कोई जगह होगी। न ही पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण का कोई संकेत नजर आ रहा है। वहां के युवाओं के लिए रोजगार नहीं है, ऐसे में उनके पास आतंक के रास्ते पर चलने के अलावा कोई विकल्प होता नहीं है।
वहीं ईरान जिस प्रकार से परमाणु हथियारों के निर्माण के अंतिम चरण में है उससे भी अमेरिका की नींद उड़ी हुई है। उसने जनसंहार के हथियारों के संदेह के कारण ही इराक के साथ दो बार लड़ाई लड़ी। साथ ही लीबिया के तानाशाह मुअम्मार गद्दाफी को भी परमाणु हथियार के निर्माण में लिप्त होने के कारण ही निशाना बनाया। उनकी चिंता की वजह यही है कि सौ से भी ज्यादा परमाणु हथियार रखने वाले इस देश में कहीं एक भी आतंकियों के हाथ लग गए तो क्या होगा?
दिसंबर 2012 में 'एस्क्वायर' पत्रिका को दिए गए अपने साक्षात्कार में अभिनेता जॉर्ज क्लूनी ने कहा था कि कुछ महीने पहले उनकी मुलाकात राष्ट्रपति ओबामा से हुई थी तो उन्होंने पूछा था कि कौन-सी चीज उनकी नींद उड़ाती है? उन्होंने कहा था कि सबकुछ, जो भी काम मेरे सामने आता है, वह सब नींद उड़ानेवाला होता है। क्योंकि मेरे पास उस काम के आने का मतलब है कि कोई दूसरा उस काम को नहीं कर सकता। तो मैंने पूछा कि कोई एक ऐसा काम बताइए जिसने आपकी नींद उड़ा दी है? उन्होंने कहा, कई सारे हैं। मैंने पूछा, कोई एक तो बताइए? तब उन्होंने कहा, पाकिस्तान।
क्या किसी भारतीय नेता की भी नींद पाकिस्तान के कारण उड़ती है? अभी तो ऐसा कोई मामला देखने में नहीं आया। हालांकि एक बात बिल्कुल साफ है कि भारतीय नेता दुनिया के सामने यह दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं कि पाकिस्तान को लेकर उनके मन में कोई दुराग्रह नहीं है और एक सबल-सफल पाकिस्तान भारत के हित में है।
यहां तक कि वे यह भी दावा करते हैं कि वे स्थिरता लाने में पाकिस्तान की हरसंभव मदद करने को तैयार हैं। हालांकि वह क्या मदद करेंगे और कितना मदद करेंगे यह कभी स्पष्ट नहीं किया गया है। न ही कभी उन्होंने यह देखने की कोशिश की उनके मदद के हाथ को पाकिस्तान में किस तरह लिया जाएगा। पाकिस्तान का जो भी राजनीतिक दल या व्यक्ति अगर भारत की मदद लेता है तो उसे पाकिस्तान में मौत को गले लगाने की तरह देखा जाएगा।
वहीं दूसरी तरफ भारत अगर रुपये-पैसों से पाकिस्तान की मदद करता है तो उसे पहले अमेरिका का अंजाम देख लेना चाहिए जिसने सालों से पाकिस्तान की खूब मदद की है, लेकिन फिर भी उसके राष्ट्रपति की नींद उड़ी हुई है। अमेरिका ने लाखों डॉलर पाकिस्तान को दिए जिसका कोई अता-पता नहीं है, साथ ही वहां स्थिरता लाने में इसका कोई असर नहीं दिखता। यही कारण है कि आलोचक अक्सर यह सवाल उठाते हैं कि क्या पाकिस्तान भारत की जिम्मेदारी है? या ऐसा करना खतरनाक होगा?
राजनीति विज्ञानी और अर्थशास्त्री फ्रांसिस फुकुयोमा ने अपनी किताब 'स्टेट बिल्डिंग' में लिखा है कि कमजोर और विफल राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय जगत की इकलौती सबसे महत्वपूर्ण समस्या है। यह निष्कर्ष फुकुयोमा ने पाकिस्तान को सामने रखकर निकाला है, इस बारे में मुकम्मल रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन अंतरराष्ट्रीय जगत में पाकिस्तान के बारे में चल रही चर्चाओं और लेखों से यह बात स्पष्ट रूप से सामने है कि पाकिस्तान एक राष्ट्र के रूप में असफल हो चुका है।
इसकी भी निकट भविष्य में कोई उम्मीद नहीं दिखती कि पाकिस्तान में ऐसी कोई व्यवस्था बनेगी जहां पारदर्शिता, जिम्मेदारी जैसी चीजों के लिए कोई जगह होगी। न ही पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण का कोई संकेत नजर आ रहा है। वहां के युवाओं के लिए रोजगार नहीं है, ऐसे में उनके पास आतंक के रास्ते पर चलने के अलावा कोई विकल्प होता नहीं है।
वहीं ईरान जिस प्रकार से परमाणु हथियारों के निर्माण के अंतिम चरण में है उससे भी अमेरिका की नींद उड़ी हुई है। उसने जनसंहार के हथियारों के संदेह के कारण ही इराक के साथ दो बार लड़ाई लड़ी। साथ ही लीबिया के तानाशाह मुअम्मार गद्दाफी को भी परमाणु हथियार के निर्माण में लिप्त होने के कारण ही निशाना बनाया। उनकी चिंता की वजह यही है कि सौ से भी ज्यादा परमाणु हथियार रखने वाले इस देश में कहीं एक भी आतंकियों के हाथ लग गए तो क्या होगा?
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