मैहर से ‘सरकार’ की दूरी के मायने
(राकेश अग्निहोत्री)सवाल दर सवाल
मैहर विधानसभा उपचुनाव में प्रचार जब निर्णायक दौर में प्रवेश कर चुका है तब बीजेपी सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के प्रचार से दूर रहने ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है.. इसे सरकार की मजबूरी कहें या फिर सोची-समझी रणनीति का हिस्सा जो उसका फोकस फसल बीमा योजना के प्रचार-प्रसार के साथ मोदी के सीहोर दौरे है और मोदी की आड़ में मैहर से दूरी बना ली है.. इधर कांग्रेस कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गई है जो कमलनाथ को प्रचार में उतारने के साथ फिल्म स्टार नगमा को सामने रखकर भीड़ को वोट में तब्दील करने की जुगत में है.. ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रचार थमने से ठीक पहले मैहर में यदि रोड शो करते नजर आएं तो फिर संदेश साफ है कि कांग्रेस कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं है और उसकी मंशा झाबुआ की जीत का सिलसिला बरकरार रखते हुए मप्र में कमबैक का संकेत देना है.. ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि आखिर बीजेपी ने नारायण त्रिपाठी को राम भरोसे क्यों छोड़ दिया.. क्या वो शिवराज और उनकी सरकार की साख दांव पर नहीं लगाना चाहती?
मैहर विधानसभा उपचुनाव में प्रचार जब निर्णायक दौर में प्रवेश कर चुका है तब बीजेपी सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के प्रचार से दूर रहने ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है.. इसे सरकार की मजबूरी कहें या फिर सोची-समझी रणनीति का हिस्सा जो उसका फोकस फसल बीमा योजना के प्रचार-प्रसार के साथ मोदी के सीहोर दौरे है और मोदी की आड़ में मैहर से दूरी बना ली है.. इधर कांग्रेस कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गई है जो कमलनाथ को प्रचार में उतारने के साथ फिल्म स्टार नगमा को सामने रखकर भीड़ को वोट में तब्दील करने की जुगत में है.. ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रचार थमने से ठीक पहले मैहर में यदि रोड शो करते नजर आएं तो फिर संदेश साफ है कि कांग्रेस कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं है और उसकी मंशा झाबुआ की जीत का सिलसिला बरकरार रखते हुए मप्र में कमबैक का संकेत देना है.. ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि आखिर बीजेपी ने नारायण त्रिपाठी को राम भरोसे क्यों छोड़ दिया.. क्या वो शिवराज और उनकी सरकार की साख दांव पर नहीं लगाना चाहती?
मध्यप्रदेश में छोटे-बड़े चुनाव हों या फिर उपचुनाव शायद ये पहला मौका होगा जब शिवराज ने मैहर उपचुनाव में उम्मीदवार का परचा दाखिल कराने के बाद प्रचार से पूरी तरह दूरी बना ली.. शिवराज बतौर मुख्यमंत्री इससे पहले क्षेत्र को विकास की सौगात दे चुके हैं लेकिन अब जब प्रचार निर्णायक दौर में है और कांग्रेस के दिग्गज वहां सक्रिय हैं तब मंत्री राजेंद्र शुक्ल को छोड़ दिया जाए तो कैबिनेट का कोई बड़ा चेहरा भी वहां नजर नहीं आ रहा है.. मोदी के दौरे में व्यस्त हो गई टीम शिवराज को भरोसा है कि मेनन के मैनेजमेंट और उम्मीदवार नारायण त्रिपाठी अपनी लोकप्रियता के दम पर बीजेपी की जीत सुनिश्चित करेंगे.. इस उपचुनाव में शिवराज से ज्यादा चर्चा मोदी की फसल बीमा योजना की शुरू हो गई है.. मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने आजादी के बाद जितनी भी फसल बीमा योजनाएं केन्द्र और राज्य सरकारों ने आरंभ की उन पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि कभी देश के 23 प्रतिशत किसानों से अधिक योजना के अंचल में नहीं लाए गए, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लागू की गई योजना दो वर्षों में 50 प्रतिशत किसानों को उनका हक देगी.. शिवराज के विकास के एजेंडे और मोदी की फसल बीमा योजना के बावजूद इस उपचुनाव का दारोमदार जातीय समीकरणों में पर टिक गया है..
शिवराज जो हमेशा चुनाव में पोस्टर व्बॉय बनकर सामने रहते थे जनता उन्हें उनके नाम पर बीजेपी को वोट देती थी.. यदि इस बार चौहान का चेहरा प्रचार में नजर नहीं आ रहा तो फिर बीजेपी को नए सिरे से नफा-नुकसान का आंकलन करना होगा.. चौहान और उनके वजीर मैहर की बिसात पर यदि शह और मात के खेल से खुद दूरी बनाने को मजबूर हुए हैं तो वजह यही समझी जा सकती है कि सरकार की साख दांव पर लगाने का जोखिम बीजेपी अब मोल नहीं लेना चाहती.. जिस तरह नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने असम जहां चुनाव होना हैं वहां बिहार से सीख लेते हुए नेता प्रोजेक्ट कर दिया है और दूसरे राज्यों में उसे ऐसे ही चेहरे की तलाश है तो फिर मध्यप्रदेश में इसका असर मैहर से जोड़कर देखा जा सकता है.. जहां बीजेपी ने कांग्रेस को उसके घर में मात देने के लिए यदि उसके उम्मीदवार को अपना प्रत्याशी बनाया तो अब नारायण के साथ कैबिनेट के वो सदस्य नजर नहीं आ रहे जिन्हें झाबुआ में झोंकने के बाद भी जीत हासिल नहीं हुई थी.. ये तो समय ही बताएगा कि शिवराज की गैरमौजूदगी का प्रयोग इस चुनाव में बीजेपी के लिए वरदान साबित होता है या फिर अभिशाप.. आखिर बीजेपी यदि ऐसा सोचने को मजबूर हुई है तो फिर सवाल खड़ा होना लाजमी है कि जीत का श्रेय क्या सिर्फ नारायण त्रिपाठी को जाएगा या फिर सरकार के विकास के एजेंडे को भी.. क्योंकि झाबुआ में मिली जीत से बुलंद हौसलों के साथ कांग्रेस मैहर के मैदान में न सिर्फ डटी है बल्कि उसने अपने दिग्गजों को भी प्रचार में उतार दिया है..
झाबुआ के बाद कमलनाथ कांग्रेस में दम फूंकने के लिए लाव-लश्कर के साथ पहुंच चुके हैं तो फिल्म अभिनेत्री नगमा ने भी मतदाताओं को िरझाया.. मोहन प्रकाश की लिखी स्िक्रप्ट के मुताबिक अरुण यादव, कमलनाथ और अजय सिंह एक बार फिर एक मंच पर चुनाव प्रचार करते हुए नजर आए.. इसे कांग्रेस में अरुण और अजय की नई कैमेस्ट्री कहा जाए या फिर मोहन का हस्तक्षेप जो कमलनाथ और सिंधिया जैसे सांसद मैहर उपचुनाव में रुचि ले रहे हैं.. कमलनाथ के सघन प्रचार के बाद उपचुनाव का प्रचार थमने के ठीक पहले 11 फरवरी को ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मैहर में मनीष पटेल के लिए वोट मांगेंगे.. इस उपचुनाव में विंध्य और बुंदेलखंड के दोनों पार्टियों के नेता डेरा डाले हुए हैं लेकिन जीत-हार के दावे-प्रतिदावे के बीच कोई गारंटी से ये नहीं कह सकता है कि चुनाव का ऊंट किस करवट बैठेगा.. यहां सवाल ये खड़ा होता है कि क्या बीजेपी के दिग्गजों खासतौर से शिवराज और उनकी कैबिनेट के मंत्रियों ने मैहर से दूरी यदि बनाई है तो इसकी वजह जीत सुनिश्चित है और मेहनत की आवश्यकता महसूस नहीं हो रही या फिर बीजेपी को जीत-हार से दूर ज्यादा चिंता शिवराज की है जिनका जादू उसे अगले विधानसभा चुनाव तक बचाकर रखना है..
खबर ये है कि एक सभा में शिवराज क्षेत्र के दौरे के दौरान ये ऐलान कर चुके हैं कि वो और उनके मंत्री अब प्रचार में नजर नहीं आएंगे और सीधे 22 फरवरी को वो खुद मैहर आएंगे.. कहीं बीजेपी को झाबुआ की तरह हार का अंदेशा तो नहीं है क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान उम्मीदवार के ऐलान से पहले ही ये कह चुके हैं कि मैहर कभी बीजेपी की सीट नहीं रही.. वह बात और है कि बाद में वो अपने बयान से पलट गए.. ऐसे में यदि शिवराज ने प्रचार से दूरी बनाई है तो फिर ये मजबूरी नहीं बल्कि दूरगामी रणनीति का हिस्सा ही कहा जाएगा..
खबर ये है कि एक सभा में शिवराज क्षेत्र के दौरे के दौरान ये ऐलान कर चुके हैं कि वो और उनके मंत्री अब प्रचार में नजर नहीं आएंगे और सीधे 22 फरवरी को वो खुद मैहर आएंगे.. कहीं बीजेपी को झाबुआ की तरह हार का अंदेशा तो नहीं है क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान उम्मीदवार के ऐलान से पहले ही ये कह चुके हैं कि मैहर कभी बीजेपी की सीट नहीं रही.. वह बात और है कि बाद में वो अपने बयान से पलट गए.. ऐसे में यदि शिवराज ने प्रचार से दूरी बनाई है तो फिर ये मजबूरी नहीं बल्कि दूरगामी रणनीति का हिस्सा ही कहा जाएगा..
उधर सवाल कांग्रेस की राजनीति पर भी खड़े हो रहे हैं जहां प्रचार में अजय सिंह खुद कमान संभाले हुए हैं लेकिन दिग्विजय सिंह का कार्यक्रम अभी तक तय नहीं हुआ है तो आखिर क्यों, जबकि कमलनाथ और सिंधिया तारीख दे चुके हैं.. साख कहीं न कहीं अजय सिंह की भी दांव पर है जिनकी पसंद के तौर पर बसपा से आए मनीष पटेल को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी ही घोषित नहीं किया बल्कि उन्हें जिताने के लिए सारे विकल्प खोल दिए हैं.. उम्मीदवार अप्रत्याशित तौर पर बसपा ने भी उतारा है तो सपा भी गणित गड़बड़ाने के लिए मैदान में डटी हुई है.. ऐसे में यदि कांग्रेस के खाते में जीत नहीं आती है तो फिर पार्टी को नए सिरे से अपने नेतृत्व अरुण यादव के बारे में सोचना होगा, क्योंकि शिवराज और उनके मंत्री पहले ही चुनावी मैदान से दूरी बना चुके हैं.. देखना दिलचस्प होगा कि जब प्रचार के 9 दिन बचे हैं तो क्या बीजेपी को ऐनटाइम पर शिवराज का रोड शो कराने की जरूरत महसूस होती है और कांग्रेस के तरकश में कौन से तीर बाकी होंगे जिससे वो बीजेपी को कमजोर कर सके..

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