शेर पर सवारी ... सवा शेर या समझदारी
(सवाल दर सवाल)राकेश अग्निहोत्री
शिवराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मध्यप्रदेश दौरे को लेकर ‘चलो शेरपुरा शेर आ रहा है’ का जो नया नारा कार्यकर्ताओं को दिया है उसने जो बहस छेड़ी है तो सवाल खड़े होना भी लाजमी है..शायद शिवराज ने ये साबित करने की कोशिश की है कि हिन्दुस्तान की सियासत का शेर कोई और नहीं नरेंद्र मोदी हैं जिन्होंने लोकसभा चुनाव में अपने दम पर बीजेपी की सरकार बनाकर सही मायने में खुद को राजा साबित किया है..मुख्यमंत्री ने 18 फरवरी के इस दौरे को ऐतिहासिक और भव्य ही नहीं, मध्यप्रदेश के इतिहास में मील का पत्थर साबित करने का जो संकल्प कार्यकर्ताओं को दिलाया है उससे साफ है कि शिवराज को इस शेर पर नाज है..सवाल ये खड़ा होता है कि अटल, आडवाणी और जोशी का युग खत्म होने के बाद शिवराज इस शेर का दिल और भरोसा जीतकर मध्यप्रदेश में एक और लंबी पारी खेलने का अपना हक उनसे मनवा लेना चाहते हैं..ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि सियासत के इस शेर ने हिन्दुस्तान से बाहर भी विश्व पटल पर अपनी लोकप्रियता का जो डंका बजाया है क्या वो शिवराज की सोच को सार्थक साबित होने देंगे या फिर उन्हें शिवराज के सवा शेर साबित होने का अदृश्य भय सताएगा क्योंकि अभी तक जनसंघ से लेकर बीजेपी के इतिहास में सबसे ज्यादा समय का मुख्यमंत्री बनने का गौरव गुजरात में नरेंद्र मोदी के नाम है। मोदी पीएम की शपथ लेने के बाद संसद में पहुंचने वाले ही नहीं इससे पहले मुख्यमंत्री बनने के बाद विधानसभा में पहुंचे थे..कहा जाता है कि यदि शेर की सवारी में संतुलन बिगड़ा तो फिर दांव उलटा पड़ सकता है..वैसे शिवराज ने खुद को मध्यप्रदेश का शेर साबित कर मनमर्जी से अभी राज-पाट चलाया है।
शिवराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मध्यप्रदेश दौरे को लेकर ‘चलो शेरपुरा शेर आ रहा है’ का जो नया नारा कार्यकर्ताओं को दिया है उसने जो बहस छेड़ी है तो सवाल खड़े होना भी लाजमी है..शायद शिवराज ने ये साबित करने की कोशिश की है कि हिन्दुस्तान की सियासत का शेर कोई और नहीं नरेंद्र मोदी हैं जिन्होंने लोकसभा चुनाव में अपने दम पर बीजेपी की सरकार बनाकर सही मायने में खुद को राजा साबित किया है..मुख्यमंत्री ने 18 फरवरी के इस दौरे को ऐतिहासिक और भव्य ही नहीं, मध्यप्रदेश के इतिहास में मील का पत्थर साबित करने का जो संकल्प कार्यकर्ताओं को दिलाया है उससे साफ है कि शिवराज को इस शेर पर नाज है..सवाल ये खड़ा होता है कि अटल, आडवाणी और जोशी का युग खत्म होने के बाद शिवराज इस शेर का दिल और भरोसा जीतकर मध्यप्रदेश में एक और लंबी पारी खेलने का अपना हक उनसे मनवा लेना चाहते हैं..ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि सियासत के इस शेर ने हिन्दुस्तान से बाहर भी विश्व पटल पर अपनी लोकप्रियता का जो डंका बजाया है क्या वो शिवराज की सोच को सार्थक साबित होने देंगे या फिर उन्हें शिवराज के सवा शेर साबित होने का अदृश्य भय सताएगा क्योंकि अभी तक जनसंघ से लेकर बीजेपी के इतिहास में सबसे ज्यादा समय का मुख्यमंत्री बनने का गौरव गुजरात में नरेंद्र मोदी के नाम है। मोदी पीएम की शपथ लेने के बाद संसद में पहुंचने वाले ही नहीं इससे पहले मुख्यमंत्री बनने के बाद विधानसभा में पहुंचे थे..कहा जाता है कि यदि शेर की सवारी में संतुलन बिगड़ा तो फिर दांव उलटा पड़ सकता है..वैसे शिवराज ने खुद को मध्यप्रदेश का शेर साबित कर मनमर्जी से अभी राज-पाट चलाया है।
बात शेर की निकली है तो “मेक इन इंडिया” का लोगो सामने आ जाता है जो विज्ञापन का हिस्सा बन चुका है और लोगों की जुबान पर चढ़ चुका है जिस पर मोदी सरकार को ही नहीं भारत को भी नाज है..अब जबकि नरेंद्र मोदी को शेर के तौर पर पेश किया जा रहा है तो फिर जंगल के इस राजा से जुड़ी िकंवदंतियों और मुहावरों को यदि सियासत से जोड़कर देखा जाएगा तो फिर अपनी-अपनी सुविधा से मायने कई निकलते हैं..जंगल में भले ही चुनाव नहीं होते लेकिन राजा शेर को ही माना जाता है और देश की सियासत में चुनाव के बाद मोदी एक ऐसे राजा के तौर पर उभरकर सामने आए हैं जिनकी चाल, ढाल और अंदाजे बयां किसी शेर से कम नहीं क्योंकि कम समय में भारत को देश के नक्शे पर एक नई पहचान दिलाकर उन्होंने अपनी योग्यता ही नहीं दम-खम का अहसास जो कराया है..विरोधियों की आलोचनाओं को यदि नजरअंदाज करें तो बीजेपी के शेर बनकर उभरे मोदी ने नफा-नुकसान का आंकलन किए बिना विरोधियों की घेराबंदी तोड़कर खुद को अभी तक शेर साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है..पीएम नरेंद्र मोदी जिन्हें शिवराज ने शेर कहा वो 18 फरवरी को शेरपुरा आ रहे हैं..इसे संयोग ही कहेंगे कि सीहोर यदि सीएम का गृहजिला है तो शिवराज का विदिशा से उस शेरपुरा से भी गहरा नाता है जिसे उन्होंने अटलबिहारी वाजेपयी के इस्तीफे से खाली हुई विदिशा लोकसभी सीट जीतने के लिए अपना ठिकाना बनाया था..आज भी इस क्षेत्र के आवास पर शिवराज मुख्यमंत्री की नेमप्लेट चस्पा देखी जा सकती है और समय निकालकर उनका आना-जाना यहां लगा रहता है..यानी जिस सीहोर के शेरपुरा को मध्यप्रदेश की राजनीति में मील का पत्थर साबित करने का आव्हान शिवराज ने किया है उन्होंने खुद सांसद रहते एक लंबा समय विदिशा के शेरपुरा में बिताया है..
ये तो बात हुई शेरपुरा की लेकिन जब बात शेर की होगी तो मप्र को गुजरात के गिर के शेर याद आ जाएंगे जो कारण कुछ भी रहे हों तैयारियों के बाद भी आज तक नसीब नहीं हुए हैं..वह बात और है कि गुजरात का शेर नरेंद्र मोदी पर देश को नाज है जिन्हें जनता ने पीएम बनाया है..मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद हले भी मप्र के दौरे कर चुके हैं लेकिन इस बार शेर पर सबकी नजर होगी..िपछले दिनों गणतंत्र दिवस पर मप्र की झांकी भी िजस सफेद शेर के कारण चर्चा का केंद्र बिन्दु बनी उसे भी याद रखना होगा क्योंकि उसी परेड में गुजरात ने गिर के शेरों को प्रस्तुत किया था..मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिल चुका है जो अब खटाई में पड़ सकता है..बबर शेर, सिंह, लॉयन कहें या फिर टाइगर, बाघ और शेर जंगल की शान माने जाते हैं..वह बात अल्हदा है कि शेर की चर्चा राजधानी भोपाल में खूब होती रही..कारण रिहाइशी इलाकों में जंगल के शेर का नजर आना चाहे फिर वो कोलार, कलियासोत और भदभदा क्षेत्र हो या फिर निशातपुरा हो..कहते हैं कि शेर का अपना इलाका होता है लेकिन यदि वो भटक गया तो फिर वो जहां पहुंच गया वो इलाका उसका हो जाता है..शेर से ज्यादा ताकतवर हाथी को माना गया है और दौड़ने में चीते का कोई मुकाबला नहीं है तो तेंदुआ पलक झपकते ही पेड़ पर भी चढ़ जाता है फिर भी राजा शेर को ही माना जाता है जिसका खौफ डर पैदा करता है..सर्कस में शेर पिंजरे में होता है जो रिंग मास्टर की कमांड पर नाचता है..जुलूस और जलसों में भी रंगे सियार नजर आते हैं..बात जब मप्र की होगी तो फिर सियासी हलकों में विंध्य के शेर के तौर पर श्रीनिवास तिवारी की याद ताजा हो जाता है जिनके लिए मुख्यमंत्री रहते दिग्विजय सिंह ने गृहजिला रीवा उनके हवाले कर रखा था..केंद्र में मोदी की सरकार बनने के बाद भी गिर के शेर उसे भले ही नहीं मिले लेकिन सफेद शेर पर मध्यप्रदेश को आज भी नाज है जिसने देश के पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है..
नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व उन्हें दूसरे नेताओं से अलग खड़ा करता है जिन्होंने देश में लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस को चुनाव मैदान में सबक सिखाने के बाद भी निशाने पर लेकर अपने शेरदिल इरादों का लोहा मनवाया है..बीजेपी को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाले अटल-आडवाणी का जलवा भी मोदी के सामने फीका पड़ चुका है जिन्होंने पिछले दिनों तमाम आलोचनाओं की फिक्र न करते हुए अचानक पाकिस्तान का दौरा कर विश्व को चौंका कर ये संदेश दिया था कि जोखिम मोल लेना उन्हें बखूबी आता है..सोनिया गांधी से जरूर संसद में गतिरोध खत्म करने को लेकर चर्चा कर उन्होंने अपनी जिम्मेदारी अहसास कराया लेकिन कांग्रेस जिस राहुल गांधी को अपना भविष्य मानकर चल रही है उनसे पटरी बैठाने में कोई दिलचस्पी न लेना भी मोदी की अदा का हिस्सा बन गया है, जिसे विरोधी भले ही ऐरोगेंट कहें लेकिन डिग्निटी मैंटेन कर मोदी ने सिसायत को एक नया आयाम दिया है..कभी मोदी के साथ शिवराज को एक सफल मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने वाले लालकृष्ण आडवाणी जब बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में हासिल पर जा पहुंचे हैं तब सूबे की सियासत के इस चौहान का मोदी को शेर बताना कोई चौंकाने वाली बात नहीं है लेकिन इस शेर से सावधान रहना उनके लिए भी जरूरी है..
जिस मोदी ने पुरानी पीढ़ी के नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेजकर अपने भरोसेमंद अमित शाह को राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित करवाकर अपनी रसूख और रुतबे का अहसास कराया है वो वाकई में शेर है..इस शेर की दिलचस्पी केंद्र में लंबी पारी खेलकर अपना साम्राज्य स्थापित करना है तो उन्हें न सिर्फ विरोधियों को कमजोर साबित करना होगा बल्कि अपनी ही पार्टी में किसी नेता को इतना नहीं उभरने देना होगा कि जरूरत पड़ने पर संघ उसमें विकल्प देखने लगे..बीजेपी के दूसरे मुख्यमंत्रियों के मुकाबले शिवराज की कार्यशैली मोदी से कई मायने में इतर है जो कमजोरी नहीं उनकी ताकत बन चुकी है..शायद ये बहस इस वक्त ठीक नहीं होगी लेकिन सियासत में कब क्या हो जाए कहना तो दूर सोचना भी कठिन है..फिर भी शेरपुरा के मंच पर नमो-शिवाय के कैमेस्ट्री देखने लायक होगी जब शिवराज पीएम मोदी के अभिनंदन समारोह को यादगार बनाएंगे..तमाम कयासों और अटकलों को निराधार साबित कर शिवराज सिंह चौहान ने मोदी का भरोसा जीतकर खुद को एक ऐसे सियासतदार के तौर पर पेश किया है जिसमें समय रहते चुनौतियों पर पार पाने का न केवल माद्दा है बल्कि अपनी दूरदर्शिता का लोहा मनवाकर समय के साथ खुद को ढाला है.. फिर भी देखना दिलचस्प होगा सीहोर के शेरपुरा फसल बीमा योजना की सौगात किसानों को दिए जाने की आड़ में सियासी फसल काटने के लिए मोदी और चौहान किस हद तक सफल होते।

No comments
सोशल मीडिया पर सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त करते हुए एमपी ऑनलाइन न्यूज़ मप्र का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला रीजनल हिन्दी न्यूज पोर्टल बना हुआ है। अपने मजबूत नेटवर्क के अलावा मप्र के कई स्वतंत्र पत्रकार एवं जागरुक नागरिक भी एमपी ऑनलाइन न्यूज़ से सीधे जुड़े हुए हैं। एमपी ऑनलाइन न्यूज़ एक ऐसा न्यूज पोर्टल है जो अपनी ही खबरों का खंडन भी आमंत्रित करता है एवं किसी भी विषय पर सभी पक्षों को सादर आमंत्रित करते हुए प्रमुखता के साथ प्रकाशित करता है। एमपी ऑनलाइन न्यूज़ की अपनी कोई समाचार नीति नहीं है। जो भी मप्र के हित में हो, प्रकाशन हेतु स्वीकार्य है। सूचनाएँ, समाचार, आरोप, प्रत्यारोप, लेख, विचार एवं हमारे संपादक से संपर्क करने के लिए कृपया मेल करें Email- editor@mponlinenews.com/ mponlinenews2013@gmail.com