गूंगे बेटे ने नेशनल टीम में पाई एंट्री,पिता का सपना हुआ पूरा
रोहतक : यह रोहतक के रहने वाले एक पिता अशोक गुलाटी का सपना था। वे क्रिकेटर बनना चाहते थे। लेकिन फाइनेंसियल प्रॉब्लम के चलते क्रिकेट में करियर नहीं बना पाए। लेकिन क्रिकेट उनके दिमाग पर इस कदर छाया रहा कि उन्होंने बेटे के जरिए अपना सपना पूरा करने की सोची।
अशोक बताते हैं कि दो साल की उम्र में ही बेटे को क्रिकेट का ट्रेनिंग देना शुरू किया। लेकिन इसी बीच पता चला कि बेटा मूकबधिर है।वह न तो बोल सकता है और न ही सुन सकता है। पूरे परिवार को गहरा सदमा लगा।लेकिन आशोक ने हार नहीं मानी और छह साल की उम्र में बेटे को क्रिकेट एकेडमी में भेजना शुरू कर दिया।बेटे की बातें समझने में मुझे और कोच को दिक्कत आ रही थी।इसलिए हमने दिल्ली के एम्स में मूकबधिरों को दी जाने वाली स्पीच थेरेपी के बारे में जाना।बेटे के साथ लगातार दो - साल तक दिल्ली एम्स गया। वहां छह महीने की स्पीच थेरेपी की ट्रेनिंग मैंने भी ली, जिससे बेटे से बातचीत करना आसान हो गया। इसके बाद रेग्युलर 5 से 6 घंटे तक क्रिकेट का ट्रेनिंग चला। खेल की बारीकियां बताने भी यह थैरेपी काफी काम आई।
कुछ दिनों बाद ही 15 साल की उम्र में बेटा रोहतक जिले की मूकबधिर टीम का वाइस कैप्टन बन गया।2007 में कप्तान बना, जिला और स्टेट लेवल मैचों में अपने आलराउंडर परफॉर्मेंस से 23 साल के मनी गुलाटी ने 2016 की नेशनल टीम में जगह बनाई। इंडियन मूकबधिर क्रिकेट टीम में दुबई में वर्ल्ड कप में अपने खेल का शानदार प्रदर्शन किया और मैन ऑफ द मैच भी रहा।हाल ही में हैदराबाद में 16 राज्यों के बीच खेले गए 20-20 मैच में मनी गुलाटी ने भारतीय मूक क्रिकेट बधिर टीम में रहकर इतिहास रचा।63 गेंद पर 100 रन नाबाद बना डाले। अब तक ऐसा कोई भारतीय मूक बधिर खिलाड़ी नहीं कर पाया है।
अशोक बताते हैं कि वह स्कूल लेवल से ही क्रिकेट खेलने में लग गए, यूनिवर्सिटी लेवल तक पहुंचे। कई इंटरयूनिर्सिटी टूर्नामेंट खेले।लेकिन पारिवारिक जरूरतों के चलते क्रिकेट में आगे नहीं बढ़ सके। इसके बाद कपड़े की दुकान कर जीवन यापन करने लगे। क्रिकेट हमेशा उनके दिमाग पर छाया रहा।
सुनने और बोलने की क्षमता नहीं होने के बाद भी क्रिकेट के जुनून ने रोहतक के मनी गुलाटी को भारतीय टीम में शामिल करा दिया। मनी ने टीम में रहते हुए उम्दा प्रदर्शन किया और अब वह अपने प्रदर्शन के सहारे ही पाकिस्तान में एशिया कप खेलने जाने वाली भारतीय मूक बधिर क्रिकेट टीम में चुना गया है। वह दुबई में हुए मूक बधिर वर्ल्ड कप में भी भारतीय टीम का हिस्सा रहा है।
अशोक बताते हैं कि दो साल की उम्र में ही बेटे को क्रिकेट का ट्रेनिंग देना शुरू किया। लेकिन इसी बीच पता चला कि बेटा मूकबधिर है।वह न तो बोल सकता है और न ही सुन सकता है। पूरे परिवार को गहरा सदमा लगा।लेकिन आशोक ने हार नहीं मानी और छह साल की उम्र में बेटे को क्रिकेट एकेडमी में भेजना शुरू कर दिया।बेटे की बातें समझने में मुझे और कोच को दिक्कत आ रही थी।इसलिए हमने दिल्ली के एम्स में मूकबधिरों को दी जाने वाली स्पीच थेरेपी के बारे में जाना।बेटे के साथ लगातार दो - साल तक दिल्ली एम्स गया। वहां छह महीने की स्पीच थेरेपी की ट्रेनिंग मैंने भी ली, जिससे बेटे से बातचीत करना आसान हो गया। इसके बाद रेग्युलर 5 से 6 घंटे तक क्रिकेट का ट्रेनिंग चला। खेल की बारीकियां बताने भी यह थैरेपी काफी काम आई।
कुछ दिनों बाद ही 15 साल की उम्र में बेटा रोहतक जिले की मूकबधिर टीम का वाइस कैप्टन बन गया।2007 में कप्तान बना, जिला और स्टेट लेवल मैचों में अपने आलराउंडर परफॉर्मेंस से 23 साल के मनी गुलाटी ने 2016 की नेशनल टीम में जगह बनाई। इंडियन मूकबधिर क्रिकेट टीम में दुबई में वर्ल्ड कप में अपने खेल का शानदार प्रदर्शन किया और मैन ऑफ द मैच भी रहा।हाल ही में हैदराबाद में 16 राज्यों के बीच खेले गए 20-20 मैच में मनी गुलाटी ने भारतीय मूक क्रिकेट बधिर टीम में रहकर इतिहास रचा।63 गेंद पर 100 रन नाबाद बना डाले। अब तक ऐसा कोई भारतीय मूक बधिर खिलाड़ी नहीं कर पाया है।
अशोक बताते हैं कि वह स्कूल लेवल से ही क्रिकेट खेलने में लग गए, यूनिवर्सिटी लेवल तक पहुंचे। कई इंटरयूनिर्सिटी टूर्नामेंट खेले।लेकिन पारिवारिक जरूरतों के चलते क्रिकेट में आगे नहीं बढ़ सके। इसके बाद कपड़े की दुकान कर जीवन यापन करने लगे। क्रिकेट हमेशा उनके दिमाग पर छाया रहा।
सुनने और बोलने की क्षमता नहीं होने के बाद भी क्रिकेट के जुनून ने रोहतक के मनी गुलाटी को भारतीय टीम में शामिल करा दिया। मनी ने टीम में रहते हुए उम्दा प्रदर्शन किया और अब वह अपने प्रदर्शन के सहारे ही पाकिस्तान में एशिया कप खेलने जाने वाली भारतीय मूक बधिर क्रिकेट टीम में चुना गया है। वह दुबई में हुए मूक बधिर वर्ल्ड कप में भी भारतीय टीम का हिस्सा रहा है।
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