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अपनों के "चक्रव्यूह "में चौहान

(राकेश अग्निहोत्री)सवाल दर सवाल
शिवराज सिंह चौहान जिनका कभी कोई निशाना खाली नहीं गया और हर सियासी फैसला सही साबित हुआ और सरकार बनाने में न सिर्फ मददगार साबित हुआ बल्कि उसने उनकी राजनीितक पकड़ को और मजबूत किया..इस बार अर्जुन की भूमिका में इस चौहान को गैरों से ज्यादा अपनों ने चक्रव्यूह में उलझाया है..महाभारत में अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाया था लेकिन अर्जुन और उनके सारथी कृष्ण को चक्रव्यूह भेदना आता था..बीजेपी का यह अर्जुन नरेंद्र मोदी को भगवान का वरदान बताते रहे हैं..राज्यसभा की तीसरी सीट के लिए मध्यप्रदेश में चुनाव रोचक दौर में जब घेराबंदी बीजेपी-कांग्रेस दोनों ओर से तेज हो चुकी है तब सबकी नजर शिवराज सिंह चौहान पर टिकी है..जिनके सामने चुनौती उस चक्रव्यूह से खुद और पार्टी को बाहर निकालने की है जो जीत के लिए जरूरी अंकगणित बिना विरोधी दल खासतौर से कांग्रेस में तोड़ फोड़ के हासिल नहीं किया जा सकता है..ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि इसे शिवराज की अग्निपरीक्षा कहें या फिर चक्रव्यूह में उलझाना, अपनों द्वारा जानबूझकर किया जा रहा है या फिर इसके पीछे वजह सिर्फ राज्यसभा में बीजेपी और उसके समर्थकों की संख्या में इजाफा करना ही है और इस जीत हार का शिवराज की सियासी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।

शिवराज सिंह चौहान ने संसदीय बोर्ड के फैसले के बाद जब प्रदेश के सीएम की कमान संभाली थी तब से अब तक बीजेपी में काफी पानी बह गया है..खुद शिवराज ने सूबे की राजनीति में अब तक के सभी कीर्तिमान ध्वस्त कर खुद को एक ऐसे सीएम के तौर पर स्थापित किया है जिसका तोड़ न तो विपक्ष कांग्रेस के पास है और न ही उस बीजेपी के पास जो अब मोदी-शाह युग में प्रवेश कर चुकी है..ऐसा नहीं है कि कई चुनाव जीतने वाले अभी तक के इस अपराजेय योद्धा ने विपक्ष को कमजोर करने के लिए सख्त और चौकाने वाले फैसले नहीं लिए हैं चाहे फिर वो कांग्रेस से जुड़े नेताओं को बीजेपी में शामिल कराना ही क्यों न हो लेकिन राज्यसभा चुनाव में पहले भी जब प्रभात झा और रघुनंदन शर्मा के वक्त चुनाव की नौबत आई थी तो कांग्रेस के बजाए दूसरे दलों और िनर्दलीयों तक जोड़ तोड़ सामने आई थी..लंबे अर्से बाद शायद शिवराज सिंह चौहान ऐसी विकट स्थिति में खुद को फंसा महसूस कर रहे होंगे जिसके सामने एक ओर पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता, समर्पण और राष्ट्रीय नेतृत्व की अपेक्षाओं पर खरा उतकर दिखाने की चुनौती है तो दूसरी ओर स्वभाव के विपरीत ऐसे फैसले लेना जिससे मुख्य विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस को उसके घर में घुसकर मात देना..जिसे अंजाम तक पहुंचाना माने लोकतंत्र में सारी मान मर्यादाओं को लांघ जाना जिसमें जीत हासिल होने के बाद भी व्यक्तिगत मतभेद सीधी दुश्मनी में तब्दील हो जाने की संभावना बढ़ जाती है..चौहान के सीएम रहते पिछले एक दशक में विरोधियों के कई पुराने मामले खुले हैं और दिग्विजय सिंह से लेकर श्रीनिवास ितवारी जैसे दिग्गज थाना-कचहरी के चक्कर लगाने को मजबूर हुए हैं..चौहान ने इस सभी दिग्गजों को चुनाव में धूल चटाकर जो सियासी ऊंचाइयां हासिल की हैं आज अनुभव, दूरदर्शिता, संयम के मापदंड पर वो सब कसौटी पर हैं..ऐसा नहीं कि सिर्फ विपक्ष की राजनीति करने वाले उनकी लोकप्रियता से आहत हुए हैं बल्कि उनकी अपनी पार्टी बीजेपी के कई महत्वाकांक्षी नेताओं को भी वो खटकने लगे हैं..राज्यसभा की तीसरी सीट के लिए फौरी तौर पर जो तस्वीर सामने है उसमें कांग्रेस के 57 विधायकों में यदि सत्यदेव कटारे और रमेश पटेल का मामला कोर्ट तक जा पहुंचा है तो उसके उम्मीदवार विवेक तन्खा को बसपा के चार विधायकों के समर्थन का ऐलान मायावती कर चुकी हैं और खबर है कि एक निर्दलीय विधायक भी तन्खा के खेमे में खड़ा है..ऐसे में तन्खा की संख्या 62 तक पहुंचती है जो जीत के लिए जरूरी 58 से चार ज्यादा है..यदि कोर्ट के दखल के बाद स्थिति अनुकूल नहीं बनने पर कटारे और पटेल का वोट नहीं मिलता है तो भी स्थिति 60 तक पहुंचती है..यदि कांग्रेस के जतारा से विधायक दिनेश अहिरवार और एक निर्दलीय मुनमुन भी विवेक तन्खा के पक्ष में नहीं आते तो भी यह संख्या जीत के लिए जरूरी 58 तक पहुंचती है..ऐसे में कांग्रेस का जोर कटारे औऱ रमेश दोनों के वोट सुनिश्चित करने पर रहेगा..दूसरी ओर बीजेपी जिसके पास अतिरिक्त 50 विधायक निर्दलीय विनोद गोटिया के समर्थन में हैं इसके बाद भी तन्खा को मात देने के लिए उसे 58 तक पहुंचने के लिए अतिरिक्त विधायकों के समर्थन की दरकार है..यदि 3 में से 2 निर्दलीय विधायक गोटिया के साथ आते हैं तो संख्या बढ़कर 52 होे जाती है..यदि एक निर्दलीय और कांग्रेस के दिनेश अहिरवार गोटिया के समर्थन में आते हैं तो संख्या 54 तक पहुंचती है..यदि कोर्ट के दखल के बाद बीजेपी के राजेंद्र मेश्राम और मोती कश्यप वोिटंग नहीं कर पाते हैं तो गोटिया समर्थक विधायकों की संख्या 52 तक अटक जाती है..यदि कोर्ट द्वारा मोती कश्यप को इजाजत मिल जाती है तो संख्या 53 हो जाती है इसके बाद भी 5 से 6 अतिरिक्त विधायकों का समर्थन टीम शिवराज को जुटाना होगा..जिसके लिए सीमित विकल्प हैं चाहे तो वो 4 बसपा और एक कांग्रेस या फिर सभी 3 निर्दलीय, 2 बसपा और एक कांग्रेस को अपने पाले में करे..यदि स्थिति 58-58 तक पहुंचती है तो फिर तीसरी सीट के लिए सेकंड ऑप्शन का इस्तेमाल किया जा सकता है जिसमें सरकार में होने का फायदा बीजेपी समर्थित विनोद गोिटया को मिल सकता है..और कांग्रेस के लिए इस संकट से बाहर निकलना आसान नहीं होगा..राज्यसभा के इस चुनाव ने जो स्िथति निर्मित की है उसमें बीजेपी की उम्मीदें शिवराज और उनके मैनेजरों से बढ़ गई हैं क्योंकि मोदी-शाह की अपेक्षाएं जुड़ी हैं जिनका अपना गणित राज्यसभा की सीटों में इजाफे से जुड़ा हो सकता है लेकिन मप्र के मुखिया के सामने विकट स्थिति आ खड़ी हुई है..यदि हाईकमान की अपेक्षाओं पर खरा उतरना है तो फिर उसके पास सीमित विकल्प हैं..चाहे तो वो 4 विधायकों वाली बीएसपी का बीजेपी में विलय कराने के साथ निर्दलीयों को भी भरोसे में ले..लेकिन यह सब कुछ बिना प्रलोभन और हॉर्स ट्रैडिंग के संभव नहीं है..जिसमें उनकी अपेक्षाएं मंत्री बनने से लेकर बीजेपी से अगले टिकट की दावेदारी भी पक्की करना होगी..यह विधायक शिवराज के भरोसे तक सीमित न रहकर अमित शाह से भी मुलाकात की अपेक्षा पाल सकते हैं..ऐसे में कांग्रेस के पूर्व सीएम अर्जुन सिंह जिनकी तुलना राजनीति के चाणक्य से होती थी, अपने फैसलों से चुनाव जीतकर उनको भी पीछे छोड़ चुके बीजेपी के इस चौहान के लिए मौका है कि वो अपनी योग्यता फिर साबित करें..यानी गैरों की घेराबंदी से ज्यादा अपनों द्वारा रचे गए चक्रव्यूह को भेदकर बाहर निकलें..सीएम शिवराज िसंह ने कैबिनेट की बैठक के बाद सभी मंत्रियों को 11 जून को भोपाल में रहने और कुछ मंत्रियों को विशेष जिम्मेदारी सौंपने के साथ इस ओर दो कदम आगे बढ़ाए हैं और चुनाव से पहले दो दिन लगातार विधायक दल की बैठक में जीत के मैजिक फिगर तक पहुंचने की रणनीति भी बनाएंगे..फिर भी यहां बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि शिवराज सिंह चौहान क्या तीसरी सीट को जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं..उन्हें सोचना होगा कि यदि वो तोड़ फोड़ करते हैं तो फिर कहीं उनकी उस छवि को बट्टा तो नहीं लगेगा जिससे उन्होंने खुद को दूसरों की तुलना में अलग और अबतक बचा रखा है..क्योंकि कुछ व्यक्तिगत आरोपों को छोड़ दिया जाए तो शिवराज दूसरे राज्यों में मची रही उठापटक के बाद भी हमेशा दूसरों की लाइन छोटी करने की बजाए अपनी लाइन बढ़ाते रहे हैं..देखना दिलचस्प होगा कि राज्यसभा के इस चुनाव में विपक्ष से मिलने वाली चुनौतियों से ज्यादा अपनों द्वारा रचे गए चक्रव्यूह से शिवराज कैसे खुद और पार्टी को न सिर्फ बाहर निकालते हैं बल्कि उसकी छवि दागदार होने से भी बचाते हैं..लाख टके का सवाल यह है कि जिस मोदी को शिवराज भगवान का वरदान बताते हैं आखिर उनकी टीम अमित शाह एक सीट पर शिवराज की साख दांव पर लगाकर क्या हासिल करना चाहते हैं..जिस शिवराज ने विपक्ष खासतौर से कांग्रेस को कमजोर साबित कर बीजेपी की जड़ें मप्र में गहरी की हैं आखिर वो इस सियासी संकट से कैसे उबरेंगे..क्या तीसरी सीट जीतने से शिवराज और मजबूत हो जाएंगे और यदि हार मिली तो क्या कमजोर साबित होंगे..

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Rakesh Agnihotri political editor
स्वराज Express MP/CG
+919893309733

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