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दूरदर्शी दवे की ‘दहाड़’ कितनी दमदार

राकेश अग्निहोत्री(सवाल दर सवाल)
केंद्रीय मंत्री की भूमिका में अनिल दवे भले ही कम समय में संघ के चहेते और मोदी के भरोसेमंद बनकर उभरे हों, लेकिन भोपाल यात्रा के दौरान उन्होंने जो संदेश दिया वह उनकी दूरदर्शिता को ही नहीं दर्शाता, बल्कि वैचारिक धरातल पर दमदार मौजूदगी वह भी उस तपस्या को भी दिग्दर्शित करता है जिसकी तपिश ने उन्हें सियासत के दांव-पेच और उसकी बारीकियों को समझने में पारंगत बना दिया। बीजेपी की राजनीति में इसे दबदबा बनाने की कोशिश कहें या संघ की कसौटी पर शत-प्रतिशत खरा उतरकर दिखाने की जरूरत, जो किसी दहाड़ से कम नहीं। दहाड़ इसलिए कि उन्होंने साफ कर दिया कि दुनिया में मुझे प्रलोभित करने की कोई वस्तु नहीं बनी और न ही आरबीआई में कोई ऐसा नोट बना है, जो मुझे विचलित कर सके। ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि आखिर अनिल दवे के दिमाग में क्या चल रहा है, जो वह खुद को दूसरे नेताओं की तुलना में दूरदर्शी और दमदार ही नहीं, कुछ अलग आखिर किन इरादों के साथ आगे बढ़ते हुए नजर आना चाहते हैं। मुद्दों पर बेबाकी और बिना लाग-लपेट के अपनी बात रखने में महारत हासिल कर चुके इस शालीन नेता के आक्रामक तेवरों ने जिस दहाड़ का अहसास कराया आखिर वो क्या गुल खिलाती है, ये देखने की बात होगी।
मध्यप्रदेश का बीजेपी कार्यालय यूं तो राजनीति में आए कई उतार-चढ़ाव का साक्षी बन चुका है और उसने कई दिग्गज नेताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस की मेजबानी की है, चाहे फिर वह केंद्रीय मंत्री हो या पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर मध्यप्रदेश के नीति-निर्धारक जिनकी सत्ता और संगठन में पकड़ है। इस दौरान कई सवाल खड़े किए गए तो कई दावे भी नेताओं द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सीना ठोक कर किए गए। लंबे अरसे बाद मध्यप्रदेश की राजनीति में अभी तक अलग-थलग पड़े किसी नेता ने केंद्रीय मंत्री बनने के बाद दीनदयाल परिसर में खबरनवीस के सामने अपनी बात दमदारी से रखी और खड़े किए गए सवालों का बेबाकी से जवाब दिया। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री अनिल दवे पिछले कई दिनों से मध्यप्रदेश के अखबार और चैनलों की जिस तरह सुर्खियां बने हुए थे तो प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवालों की झड़ी लगना लाजिमी था। तिरंगा यात्रा की अगुआई और फिर सम्मान समारोह के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विशेष रुचि सामने आने के बाद अनिल दवे एक बार फिर पत्रकारों से रूबरू हुए, वो भी बीजेपी के उस कार्यालय में जहां उनका आना-जाना लगभग बंद हो चुका था। वहां पहले सम्मान-अभिनन्दन समारोह फिर बीजेपी मीडिया की नई टीम के साथ वो नजर आए। इस दौरान दवे ने अपने विभाग से जुड़े सवालों के साथ वर्तमान जीवंत मुद्दों पर अपनी बात जिस अंदाज में रखी तो लगा कि एक होनहार, ऊर्जावान और ज्ञानवान नेता का उपयोग देर से ही सही मोदी ने कर एक ऐसी लाइन आगे बढ़ाई है जो प्रदेश का गौरव बढ़ा सकती है तो देश को भी एक नई दिशा देने का सामर्थ्य रखती है। स्वयं शिवराज ने दवे को हीरा और परख के लिए मोदी को जौहरी बताया। वह बात और है कि राज्यसभा में उन्हें कुछ दिन पहले ही एक बार फिर भेजा गया जिसमें सिंहस्थ के वैचारिक महाकुम्भ की सफलता ने बड़ी भूमिका निभाई थी। सम्मान समारोह या फिर पत्रकार वार्ता में पूछे गए सवालों के जवाब में दवे का आत्मविश्वास गौर करने लायक था, चाहे फिर वह शिवराज सिंह चौहान को 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ाने के लिए उनकी अपनी पुरानी भूमिका के लिए फिर तैयार रहने की बात हो या फिर खुद को केंद्रीय मंत्री बनाए जाने पर किसी की चापलूसी नहीं करने या योग्यता के दम पर दिल्ली में दखल बढ़ाने की बात ही क्यों न हो, दवे ने मानो एक नई बहस छेड़ दी। बीजेपी के अच्छे दिन आने के बाद कौन किस मुकाम पर कैसे पहुंचा, इस पर वो मुखर नजर आए। सिद्धांत और वैचारिक धरातल पर खड़े रहते हुए अनिल दवे ने नर्मदा में अवैध उत्खनन, गिर के शेर, रियो टिंटो, केन-बेतवा लिंक, जीएसटी, कैम्पा बिल, तिरंगा यात्रा, भोपाल के बड़े ताल, पीओके और पीओआई ,भारतीय लोकतंत्र थ्रीजे पर भारी ए फॉर, अनिल दवे ने देश के महापुरुष श्यामाप्रसाद मुखर्जी से लेकर जवाहरलाल नेहरू सभी पर अपनी बात न सिर्फ बेबाकी से रखी बल्कि यह संदेश देने की कोशिश की कि वह सवालों से भागते नहीं और कोई अपनी बात उन के मुंह में भी डाल नहीं सकता। खासतौर से गंभीर विवादित मुद्दों पर चाहे फिर वह केन-बेतवा हो या फिर गिर के शेर ही नहीं, नर्मदा में अवैध उत्खनन से जुड़े सवाल पर फैसलों का इंतजार करने को बाध्य किया।
 
एक ओर अनिल दवे ने महापुरुषों को दल विशेष तक सीमित रखते हुए संकीर्ण राजनीति से ऊपर उठकर आगे बढ़ने की जरूरत जताई तो दूसरी ओर संसद में पास जीएसटी बिल के साथ कैंपा के मुद्दे पर अपनी उपलब्धियों को बड़ी चतुराई से सामने रखते हुए विभाग के दूसरे और पुराने मंत्रियों की कार्यशैली से तुलना करने को मजबूर भी किया। नर्मदा के लिए समर्पित और उसके समग्र विकास की लड़ाई लड़ रहे अनिल दवे ने अवैध उत्खनन को स्वीकार कर एक नई बहस जरूर छेड़ दी है तो एनजीटी के नोटिस पर उन्होंने गेंद राज्य सरकार के पाले में डाल खुद को चतुर साबित किया। दवे का यह कहना कि मेरी औकात नहीं की नर्मदा को मैं बचाऊंगा… खुद को ही बचा लूं वही ठीक है, मुद्दा विवादित और राज्य सरकार की नीति और नीयत पर ही नहीं कुछ प्रभावशाली लोगों की मिलीभगत से जुड़ा था, बावजूद इसके अनिल दवे ने नदी से रेत के उत्खनन पर मापदंड बनाने की जरूरत जता दी। पर्यावरण जिस विभाग पर देश की नजर टिकी है उसको एक नई पहचान देने के लिए शब्दों की आड़ में 25 सूत्र यदि सामने रखने की आवश्यकता जताई तो लगे हाथ उद्योगपतियों और प्रभावशाली लोगों को भी यह कहकर संदेश भेज दिया कि प्रलोभन में वह नहीं आने वाले और न दबाव में कोई ऐसा फैसला लेंगे जो पर्यावरण और विकास को प्रभावित कर सके। दवे ने इसके लिए यह तक कह दिया कि दुनिया में मुझे प्रलोभित करने वाली कोई वस्तु नहीं बनी और न ही आरबीआई ने कोई ऐसा नोट छापा है जो मुझे मेरे मकसद से हटा सके। अपने विभाग के दायरे से बाहर आकर भी उन्होंने देश की सुरक्षा खासतौर से कश्मीर के विवाद पर पड़ने की बजाए पीओआई के दावे को पुख्ता करते हुए भारतीय लोकतंत्र पर भी अपनी टिप्पणी की। इसे दवे की दूरदर्शिता कहें या दृढ़ इरादे जो उन्होंने संकरी गलियों से निकलकर विस्तृत राजनीति के अपने रोडमैप को अंजाम तक पहुंचाने का संकल्प सामने रखकर अपने प्रतिस्पर्धियों को सावधान कर दिया।
 
सिंहस्थ के वैचारिक महाकुंभ के बाद आईआईटी द्वारा मिले नोटिस से जुड़े सवाल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा को पहली प्राथमिकता बताकर मानो अनिल दवे ने कानूनी दांव-पेच के बीच राष्ट्रहित के साथ अपने सियासी हित साध लिए। गुजरात की अस्मिता और पहचान से जुड़े गिर के शेर पर मध्यप्रदेश की सार्थक पहल और उसकी अपेक्षाओं को पूरा करते हुए उन्होंने अपनी जवाबदेही का अहसास कराया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक सन्देश जाए और उनका भरोसा पुख्ता हो, शायद इसलिए संसद के अंदर और गलियारे में कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया से संवाद का जिक्र कर उन्होंने एक बार फिर मोदी को देश का शेर बताकर अपने नंबर बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तिरंगा यात्रा को आगे भी जारी रखने और उसकी अगवाई में दिलचस्पी बरकरार रखते हुए राष्ट्रीयता के मुद्दे पर जो कहा वह पर्याप्त नहीं, पर पूछे गए सवाल के जवाब में शायद अधूरा भी नहीं लेकिन जाति-धर्म और प्रबंधन की राजनीति को लेकर देश में बने माहौल वह शायद विवादों से दूर रहना चाहते थे लेकिन राष्ट्रीयता को सबसे ऊपर बताकर उन्होंने विरोधियों के कान जरूर खड़े कर दिए।
 
कुल मिलाकर केंद्रीय मंत्री की भूमिका में अनिल दवे ने जिस नई पारी का आगाज कुछ महीने पहले ही किया उसने उन्हें एक नई पहचान ही नहीं दी बल्कि एक ऐसे रास्ते पर आगे बढ़ा दिया कि यदि वह संभलकर चुनौतियों को पार कर आगे बढ़ते गए तो एक लंबी पारी राजनीति के उस मैदान में वह खेल सकते हैं, जहां कब, किसके, कैसे काम लग जाएं पता नहीं। एक दिन पहले ही अनिल दवे ने शिवराज के साथ चुनावी मोर्चे पर आगे भी कदमताल करने का इशारा कर यह बता दिया कि चुनाव किसी के भी नेतृत्व में लड़े जाएं, लेकिन उसकी व्यूरचना और लोगों को चुनाव जिताने में उनकी भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अनिल दवे भले ही इन दिनों तिरंगे की आड़ में जमीनी राजनीति के दांव-पेंच सीख रहे हों, लेकिन बंद कमरे की रणनीति और प्रबंधन के मोर्चे पर अपनी दूरदर्शिता का लोहा लगातार मनवाते चले आ रहे हैं। मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाले दूसरे केंद्रीय मंत्रियों ने भले ही वरिष्ठता बरकरार रखते हुए इस राज्यमंत्री जिसे मोदी ने स्वतंत्र प्रभार से नवाजा, के सम्मान से दूरी बनाई लेकिन अनिल दवे ने एक झटके में मध्यप्रदेश के नीति-निर्धारकों जो सत्ता और संगठन के शीर्ष पदों पर बैठे हैं, उन्हें भरोसे में लेकर यह संदेश जरूर दे दिया कि उन्होंने अपनी राह अपने दम पर बनाई है और यदि मध्यप्रदेश को उनसे अपेक्षाएं होंगी तो वह जरूर उसे पूरा करेंगे। देखना दिलचस्प होगा कि संगठन की बारीकियों और चुनावी गणित समय रहते भांप लेने वाले संघ की पृष्ठभूमि वाले बीजेपी के थिंक टैंक अनिल दवे नई भूमिका में संघ और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की अपेक्षाओं के साथ मध्यप्रदेश की बीजेपी और जनता की अपेक्षाओं में किस हद तक खरा उतर पाते हैं। मध्यप्रदेश के कई दिग्गज नेताओं को केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद न सिर्फ नया ठिकाना मिल चुका है बल्कि इस जमात में शामिल कई नेताओं के सियासी कद भी खूब बढ़ चुके हैं। इसी कड़ी में अनिल दवे ने अपनी दमदार मौजूदगी से मोदी सरकार में ही नहीं संघ के साथ अब मध्यप्रदेश में भी दस्तक दे दी है। देखना दिलचस्प होगा कि दवे की दूरदर्शिता और हर मुद्दों पर उनकी पकड़ जिसमें कई संदेश छुपे हैं, बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में क्या गुल खिलाती है।

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Rakesh Agnihotri
political editor
+919893309733

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