PM मोदी के अभियान पर महिला IAS ने उठाये सवाल
भोपाल| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश भर में शुरू किये गए खुले में शौच (ओडीएफ) अभियान को लेकर प्रदेश की एक महिला आईएएस दीपाली रस्तोगी ने सवाल खड़े किये हैं | महिला आईएएस ने इस अभियान को पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित बताया है| एक अंग्रेजी अखबार में उनका एक आर्टिकल छपा है जिसमे उन्होंने कि यह योजना उन गोरों के कहने पर लाई गई, जिनकी वॉशरूम हैबिट भारतीयों से अलग है। जो लोग खुले में शौच और शौच के बाद पानी के इस्तेमाल पर हमें गंदा कहते हैं इसलिए हमने सोच लिया है कि हम गंदे हैं| लेकिन वहीं बात जब उन्ही गोरे लोगों की जाए जो शौच के बाद पानी नहीं टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करते है तब यह गंदा नहीं लगता| लेकिन हम इसे गंदा मानते हैं, क्या वो लोग हमारी तरह पानी का इस्तेमाल करने लगेंगे, अगर नहीं, तो फिर उनकी वॉशरूम हैबिट को हम क्यों अपना रहे हैं|
अंग्रेजी अखबार में छपे लेख के अनुसार खुले में शौच मुक्त अभियान का पूरा कांसेप्ट आयातित है। यह योजना हर प्रदेश के लिए सही नहीं है| घर में शौचालय अगर बनवाये जा रहे हैं तो उससे पहले पानी की जरूरत होगी| लेकिन हमारे पास पानी नहीं है| देश के अधिकतर क्षेत्र में पानी की भरी किल्लत है| जो लोग मीलो पैदल चलकर दो घड़े पानी लाते हैं तो क्या लोग उस पानी को शौचालय में डाल कर बर्बाद करेंगे| यह बड़ा सवाल है|
ग्रामीण आबादी खेतों में शौच के लिए जाती है| खेत पर छोड़ी गई शौच तेज धूप में सूख जाती है, जो कि खाद बन जाती है और फसलों के लिए लाभदायक होती है| अब हमारे पास एक ऐसी सरकारी योजना है जिसमे घर के शौचालय का निर्माण करना विकास का एक बुनियादी ढांचा बन चुका है| जैसे सड़कों और बांधों का निर्माण करना। ओडीएफ (ओपन डेफकेशन फ्री) स्थिति एक आदर्श है जो हर क्षेत्र को हासिल करना चाहिए। कुछ ही महीनों में सदियों पुरानी मानसिकता बदलने के लिए एक दौड़ है क्योंकि गौर कहते हैं कि खुले में शौच करना गलत है। और हम रक्षात्मक हो जाते हैं। हम शौचालय बनाने की ओर बढ़ते हैं| हम यह सोचने के लिए नहीं रोकते कि हमारे संस्कृति, विकास के स्तर और उपलब्ध संसाधनों के लिए अनुकूल एक बेहतर विकल्प क्या है। और हम गांव के लोगों को खुले में शौच करने के लिए झुकाते हैं। जब पानी के अभाव में शौचालय गंदा होगा तो बाहर जाना बेहतर है या गंदे शौचालय में जाना|
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