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एफआरए ऐतिहासिक कानून, कई प्रावधानों को पुनरीक्षित करने की आवश्यकता आईजीएनटीयू और टाटा इंस्टीट्यूट की दो दिवसीय संयुक्त कार्यशाला प्रारंभ

एफआरए ऐतिहासिक कानून, कई प्रावधानों

को पुनरीक्षित करने की आवश्यकता

आईजीएनटीयू और टाटा इंस्टीट्यूट की दो दिवसीय

संयुक्त कार्यशाला प्रारंभ

अमरकटंक/ प्रदीप मिश्रा 8770089979
जनजातीय समुदाय को फारेस्ट राइट्स एक्ट-2006 के विभिन्न प्रावधानों के बारे में जागरूक बनाने और इससे होने वाले लाभों एवं दस वर्ष के दौरान पैदा हुई चुनौतियों पर विमर्श के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में दो दिवसीय कार्यशाला शुक्रवार से प्रारंभ हुई। कार्यशाला में एक्ट को ऐतिहासिक बताते हुए कई और प्रावधानों को इसमें समाहित करने की अनुशंसा की गई। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई और विश्वविद्यालय की अंबेडकर चेयर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हो रही इस कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए कुलपति प्रो. टी.वी. कटटीमनी ने शोधार्थियों में नई जानकारी एकत्रित करने की प्रवृत्ति विकसित करने पर जोर दिया, जिसे वे अपने शोध विषय के अनुरूप प्रयोग कर सके। उन्होंने विभिन्न कानूनों को आसानी के साथ आम लोगों को समझाने के लिए भी शोधार्थियों को आगे आने के लिए कहा। टाटा इंस्टीट्यूट के गीतांजॉय साहू ने एक्ट को ऐतिहासिक बताते हुए जनजातीय समुदाय के हितों का रक्षक बताया। उनका कहना था कि 11 वर्ष बाद एक्ट को पुनरीक्षित करने की आवश्यकता है इसके लिए शैक्षणिक संस्थानों और शोधार्थियों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। उन्होंने एक्ट से संबंधित सफलता की कहानियों को आम लोगों तक पहुंचाने और इससे पैदा हो रही चुनौतियों का समाधान खोजने का भी आह्वान किया। प्रो. दिलीप सिंह ने वनों को अपार संपदा का केंद्र बताया। उनका कहना था कि वेदों के अनुसार विभिन्न प्रकार के वनों को चिह्नित कर उन्हें उनकी मूल प्रवृत्ति के अनुसार संरक्षित किया जाना चाहिए। कार्यक्रम में प्रो. प्रसन्ना कुमार सामल, डॉ. कुमकुम कस्तूरी, डॉ. अमित सोनी, डॉ. हरित कुमार मीना सहित बड़ी संख्या में शिक्षकों, छात्रों और शोधार्थियों ने भाग लिया।

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