बाल दिवस 14 नवंबर पर विशेष, पंडित जवाहरलाल नेहरू : आधुनिक भारत के निर्माता पार्ट 1
फ़िरदौस ख़ान
देश के पहले
प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू आधुनिक भारत के निर्माताओं में एक माने जाते हैं।
देशभर
में उनके जन्म दिन 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। नेहरू बच्चों से बेहद प्यार करते थे और यही वजह थी कि उन्हें प्यार से चाचा नेहरू बुलाया जाता था।
एक बार चाचा नेहरू से मिलने एक सज्जन आए।
बातचीत के दौरान उन्होंने नेहरू जी से पूछा- पंडित जी, आप सत्तर साल के हो गए हैं, लेकिन फिर भी हमेशा बच्चों की तरह तरोताज़ा दिखते हैं, जबकि आपसे छोटा होते हुए भी मैं बूढ़ा दिखता हूं। नेहरू जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- इसके तीन कारण हैं। पहला,
मैं बच्चों को बहुत प्यार करता हूं।
उनके साथ खेलने की कोशिश करता हूं।,
इससे मैं अपने आपको उनको जैसा ही महसूस करता हूं।
दूसरा,
मैं प्रकृति प्रेमी हूं और पेड़-पौधों,
पक्षी,
पहाड़,
नदी,
झरनों,
चांद,
सितारों से बहुत प्यार करता हूं।
मैं इनके साथ में जीता हूं,
जिससे यह मुझे तरोताज़ा रखते हैं। तीसरी वजह यह है कि ज़्यादातर लोग हमेशा छोटी-छोटी बातों में उलझे रहते हैं और उसके बारे में सोच-सोचकर दिमाग़ ख़राब करते हैं। मेरा नज़रिया अलग है और मुझ पर छोटी-छोटी बातों का कोई असर नहीं होता। यह कहकर नेहरू जी बच्चों की तरह खिलखिलाकर हंस पड़े।
पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म
14 नवंबर
1889 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वह पंडित मोतीलाल नेहरू और स्वरूप रानी के इकलौते बेटे थे। उनसे छोटी उनकी दो बहनें थीं। उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। उनकी शुरुआती तालीम घर पर ही हुई। उन्होंने 14 साल की उम्र तक घर पर ही कई अंग्रेज़ शिक्षकों से तालीम हासिल की। आगे की शिक्षा के लिए 1905 में जवाहरलाल नेहरू को इंग्लैंड के हैरो स्कूल में दाख़िल करवा दिया गया। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वह कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज गए, जहां से उन्होंने प्रकृति विज्ञान में स्नातक उपाधि प्राप्त की। 1912 में उन्होंने लंदन के इनर टेंपल से वकालत की डिग्री हासिल की और उसी साल भारत लौट आए। उन्होंने इलाहाबाद में वकालत शुरू कर दी, लेकिन वकालत में उनकी ख़ास दिलचस्पी नहीं थी। भारतीय राजनीति में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी और वह सियासी कार्यक्रमों में शिरकत करने लगे। उन्होंने 1912 में बांकीपुर (बिहार) में होने वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया लिया। 8 फ़रवरी 1916 को कमला कौल से उनका विवाह हो गया। 19 नवंबर 1917 को उनके यहां बेटी का जन्म हुआ, जिसका नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी रखा गया, जो बाद में भारत की प्रधानमंत्री बनीं। इसके बाद उनके यहां एक बेटे का जन्म हुआ, लेकिन जल्द ही उसकी मौत हो गई।
पंडित जवाहरलाल नेहरू 1916 के लखनऊ अधिवेशन में महात्मा गांधी के संपर्क में आए।
मगर
1929 में कांग्रेस के ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन का अध्यक्ष चुने जाने तक नेहरू भारतीय राजनीति में अग्रणी भूमिका में नहीं आ पाए थे। इस अधिवेशन में भारत के राजनीतिक लक्ष्य के रूप में संपूर्ण स्वराज्य का ऐलान किया गया। इससे पहले मुख्य लक्ष्य औपनिवेशिक स्थिति की मांग थी। वह जलियांवाला बाग़ हत्याकांड की जांच में देशबंधु चितरंजनदास और महात्मा गांधी के सहयोगी रहे और 1921 के असहयोग आंदोलन में तो महात्मा गांधी के बेहद क़रीब में आ गए और गांधी जी की मौत तक यह नज़दीकी क़ायम रही। कांग्रेस पार्टी के साथ नेहरू का जुड़ाव 1919 में प्रथम विश्व युद्ध के फ़ौरन बाद शुरू हुआ। उस वक़्त राष्ट्रवादी गतिविधियों की लहर ज़ोरों पर थी और अप्रैल 1919 को अमृतसर के नरसंहार के रूप में सरकारी दमन खुलकर सामने आया। स्थानीय ब्रिटिश सेना कमांडर ने अपनी टुकड़ियों को निहत्थे भारतीयों की एक सभा पर गोली चलाने का हुक्म दिया, जिसमें 379 लोग मारे गए और तक़रीबन बारह सौ लोग ज़ख़्मी हुए।
1921 के आख़िर में जब कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं को कुछ प्रदेशों में ग़ैर क़ानूनी घोषित कर दिया गया, तब पहली बार नेहरू जेल गए।
अगले
24 साल में उन्हें आठ बार गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। नेहरू ने कुल मिलाकर नौ साल से ज़्यादा वक़्त जेलों में गुज़ारा। अपने मिज़ाज के मुताबिक़ ही उन्होंने अपनी जेल-यात्राओं को असामान्य राजनीतिक गतिविधि वाले जीवन के अंतरालों के रूप में वर्णित किया है। कांग्रेस के साथ उनका राजनीतिक प्रशिक्षण 1919 से 1929 तक चला। 1923 में और फ़िर 1927 में वह दो-दो साल के लिए पार्टी के महासचिव बने। उनकी रुचियों और ज़िम्मेदारियों ने उन्हें भारत के व्यापक क्षेत्रों की यात्रा का मौक़ा दिया, ख़ासकर उनके गृह प्रदेश संयुक्त प्रांत का, जहां उन्हें घोर ग़रीबी और किसानों की बदहाली की पहली झलक मिली और जिसने इन महत्वपूर्ण समस्याओं को दूर करने की उनकी मूल योजनाओं को प्रभावित किया। हालांकि उनका कुछ-कुछ झुकाव समाजवाद की ओर था, लेकिन उनका सुधारवाद किसी निश्चित ढांचे में ढला हुआ नहीं था। 1926-27 में उनकी यूरोप और सोवियत संघ की यात्रा ने उनके आर्थिक और राजनीतिक चिंतन को पूरी तरह प्रभावित कर दिया।
(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक
हैं)
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