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अनियमितता की भेंट चढ़ा  परियोजना कार्यालय जवा, तदर्थ समितियाँ बनी लूट का हथियार

जवा परियोजना का भ्रष्टाचार चरम पर
जिले का अमला संरक्षक की भूमिका में

राहुल तिवारी एमपी ऑनलाइन न्यूज़ संवाददाता
रीवा/जवा : जवा महिला एवं बाल विकास परियोजना कार्यालय का इतिहास कभी संतोष जनक नही रहा । आंगनवाड़ी केन्द्र उद्देश्यों की पूर्ति के बजाय परियोजना के परियोजना अधिकारी  -- सुपरवाइजरों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के पोषण के आगे पीछे ही चलता आ रहा है।जवा परियोजना कार्यालय का अतीत और  वर्तमान प्रदेश सरकार और इसके संचालकों  की नेक नियती  प्रशासनिक क्षमता और जनता के प्रति जवाबदारी पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
जवा महिला एवं बाल विकास का परियोजना संचालन भ्रष्टाचार रूपी कैंसर से इस हद तक संक्रमित हो चुका है कि आम जन मानस के मन मस्तिष्क में  सवाल उठने लगा है की सरकार इस विभाग का संचालन क्यों कर रही है ? इस विभाग का जनता से क्या सरोकार है ? दलिया पंजीरी दूध से किसका पोषण हो रहा है ?
जवा परियोजना कार्यालय की अधिकारी सुपरवाइजरें रीवा में निवास रत हैं ।रीवा से अपनी नौकरी संचालित करतीं हैं ।जब विशेष आवश्यकता होती है।कागजी कोरम पूर्ति आवश्यक होती है तो कार्यकर्ताओं की बैठक बुला कर पूरा करतीं हैं ।केन्द्र कभी खुलते हैं या नहीं इससे परियोजना कार्यालय का कोई वास्ता नहीं है।इसी का फायदा उठाकर कई कार्यकर्ता अपने बच्चों को पढ़ाने के नाम पर रीवा में निवास करतीं हैं ।जब कोई स्थानीय निवासी शिकायत करता है तो सुपरवाइरों द्वारा कार्यकर्ता को बुलाकर जांच की औपचारिकता पूरी कर शिकायत कर्ता को झूठा सिद्ध कर दिया जाता है।इसी स्वेच्छाचारिता का प्रमाण है की देश के स्वाधीनता दिवस पर भी राष्ट्र ध्वज फहराने न परियोजना प्रभारी पहुँची और न कोई सुपरवाइजर।
प्रशासनिक अमले की इस परियोजना के संचालन के प्रति संवेदनशीलता की पोल तब खुली जब पत्रकारों जनप्रतिनिधियों के सवालों से तंग तत्कालीन तहसीलदार जवा ने अनुविभागीय अधिकारी राजस्व तहसील त्योंथर एवं जवा को पत्र क्रमांक क्यू - 150817 दिनांक 15 अगस्त 2017 को भेज कर राष्ट्रीय पर्व एवं राष्ट्र ध्वज के प्रति अपमानजनक वर्ताव के लिए उचित कार्रवाई की सिफारिश की।परंतु समाचार लिखे जाने तक कोई कार्रवाई नही हुई ।
जवा परियोजना कार्यालय जहाँ महिलाओं बच्चों एवं किशोरियों के पोषण की बंदर बांट की भूमिका स्वीकार्य कर जमीनी क्रियान्वयन को ठेंगा दिखाने का नायाब काम कर शासकों तक की नीति नियति और प्रशासनिक क्षमता को धता बताया है वहीं अगर सूत्रों पर भरोसा करें तो आंगनवाड़ियों में शासन द्वारा संचालित गोदभराई अन्न प्राशन जैसी योजनाओं के स्थानीय स्तर पर संचालन करने के लिए ग्राम तदर्थ समितियों को आवादी के अनुपात में दो - तीन माह में दी जाने वाली रकम को या तो समितियों को भेजा नही जाता और जिन समितियों को भेजा जाता है वहाँ की कार्यकर्ता को आजादी देने की एवज में वापस ले लिया जाता है।इस अभियान में परियोजना अधिकारी सुपरवाइजर एवं परियोजना के बाबू की संलिप्तता बताई जाती है।
जवा परियोजना कार्यालय और कागजों में संचालित आंगनवाड़ियों की अगर पारदर्शिता पूर्वक जांच समिति बनाकर  कराई जाय तो भारी भरकम घोटाला सामने आ सकता है।और महिला बाल विकास विभाग के उद्देश्य को जरूरतमंदों तक पहुँचाने का रास्ता बना सकता है।

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