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श्रीनिवास तिवारी: गांव के दोस्तों ने भावुक होकर सुनाई अपने 'सफेद शेर' की कहानी


कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्री निवास तिवारी के निधन के बाद प्रदेश के साथ जिले और उनके पैतृक गांव में शोक की लहर है.

श्रीनिवास तिवारी का पैतृक गांव मनगवां तहसील के तिवनी में है जहां पर उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई थी. उनके पैतृक गांव तिवनी में सन्नाटा पसरा हुआ है. लोग आपस में बैठकर उनके जीवन काल और अच्छाइयों के साथ क्षेत्र को दी गई सौगातों के बारे में चर्चा कर रहे हैं.

गांव में उनके पूरा परिवार उनके शव के आने का इंतजार रीवा में कर रहा है. कुछ लोगों ने बताया कि दादा जब भी यंहा आते थे तो अपने इसी कोठरी में बैठकर सभी से मिलते थे, जहां पर आज भी उनके तख्ते और सोफे को संभाल कर रखा गया है.

शासकीय बालक माध्यमिक विद्यालय तिवनी, वह स्कूल है जहां पर श्रीनिवास तिवारी ने पहली और दूसरी की कक्षा की पढ़ाई की थी. हालांकि वह भवन अब पूरी तरह से जर्जर हो चुका है उसके स्थान पर एक अन्य भवन बना दिया गया है जहां पर विद्यालय संचालित हो रहा है.

उनके चार सहपाठियों और मित्रों ने दुखी मन से उनके साथ बिताए अपने समय के बारे में बताया केदार प्रसाद मिश्रा ने बताया कि हम साथ में पढे और खेले हैं. बचपन से ही उनमें नेतृत्व क्षमता थी वह जैसा कहते थे हम लोग उन्हीं के बताए अनुसार काम करते थे.

उन्होंने बताया कि हमारे क्षेत्र में चाहे वह स्वास्थ्य विभाग ,तहसील, आईटीआई , बैंक जितनी भी एक नगर में सुविधाएं होती हैं सभी श्रीनिवास तिवारी की देन है, वह चाहे जिस पद में रहे हों, हमेशा हम लोगों के साथ मिलते जुलते रहे हैं और जब भी यहां आते थे तो हम सभी को मिलने के लिए बुलाया करते थे.

श्रीनिवास तिवारी के अजीज मित्र मोहम्मद हुसैन ने रोते हुए बताया कि हमारे लिए तो वह भगवान थे. एक बार का वाकया सुनाते हुए उन्होंने कहा कि कलेक्टर ने एक बार मेरा लाइसेंस निरस्त कर दिया था, तो मैं श्रीनिवास तिवारी के पास पहुंचा तो उन्होंने कहा कि इन्हें तुरंत लाइसेंस दिया जाए कुछ भी गलत नहीं है.

उन्होंने बताया कि हम गरीब परिवार से थे, साथ में नहीं पढ़ सकते थे लेकिन जब भी वह मनगवां आते थे तो जरूर बुलाते थे जब भी कभी जरूरत पड़ती थी तो हम उनसे मिलकर मदद लेते थे कभी भी मुझे एहसास नहीं हुआ कि हम दूसरे समुदाय से और वह दूसरे समुदाय से हैं.

मंनगवा निवासी गदाधर मिश्रा तो भावुक हो गए और बोले कि बहुत मानते थे हम लोगों को. हम लोग बहुत दुखी हैं हम लोगों के लिए कभी नेता की हैसियत से नहीं रहे जब भी जाते थे तो बराबर हम लोगों से मिलते थे, बुलाते थे 'और मास्टर साहब कैसे हैं' कह कर ही बुलाते थे. हम लोगों के घरेलू संबंध थे. बहुत अच्छा व्यवहार था किसी भी प्रकार की जब राजनीतिक मीटिंग होती थी तो हम लोगों को बुलाते थे.

बता दें कि, श्रीनिवास तिवारी का अंतिम संस्कार उनके पैतृक बगीचे में किया जाना है जहां पर उनके सगे संबंधी अंतिम संस्कार की तैयारी में जुटे हुए थे तैयारी में लगे बिहारी लाल तिवारी ने बताया कि गांव से इतना लगाव था कि वह गांव के ही थे कोई भी त्यौहार हो वह यंहा आना नहीं भूलते थे.

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