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इंजीनियरिंग,एलएलबी, पीएचडी, एमबीए, और एमफिल के छात्र-छात्राएं चपरासी की नौकरी करने को भी तैयार


भोपाल। सरकार युवाओं के रोजगार के लिए भले ही लाख दावे कर लेकिन सच्चाई तो ये है कि मध्यप्रदेश में दिनों-दिन बेरोज़गारों की तादाद बढ़ती जा रही है।देश में शिक्षित बेरोजगारी के खिलाफ कोई कानून नहीं है, बेरोजगारों की तादाद बढ़ रही है लेकिन फिर भी सरकार समस्या को समस्या मानने से इनकार कर रही है। हालात ऐसे हो गए है कि इंजीनियरिंग,एलएलबी, पीएचडी, एमबीए, और एमफिल के छात्र-छात्राएं चपरासी की नौकरी करने को भी तैयार है।कुछ ऐसा ही नजारा जिला अदालत में चपरासी के लिए निकली भर्ती में देखने को मिला है।

दरअसल, जिला सत्र न्यायालय में चपरासी के लिए वैकेंसी निकाली है। जिसमें 8 पदों के लिए आवेदन मांगे है।सिर्फ भोपाल से ही 8 हजार आवेदन दिए गए है, जिसमें योग्यता आठवी पास रखी गए है, लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि इसमें जो आठ हजार आवेदन आए है, उनमें एलएलबी, एमबीए और पीएचडी किए छात्रों ने आवेदन दिया है। वहीं ग्वालियर की बात करे तो यहां 57 पदों के लिए भर्ती निकाली गई है, जिसमें लगभग 60 हजार आवेदन दिए गए है।इंटरव्यू के लिए 12 पीठ बनाई गई हैं। एक पीठ में 3 जज बैठेंगे। 36 जज 60 हजार उम्मीदवारों के इंटरव्यू लेंगे।इसके अलावा आज होशंगाबाद में जिला न्यायालय में चतुर्थ श्रेणी के 5 पदों के लिए 1808 बेरोजगार परीक्षा दे रहे हैं । 

वही बीते दिनों पटवारी की परीक्षा में 9238 वैकेंसी थी, लेकिन युवाओं द्वारा 12 लाख फॉर्म भरे गये थे।हालात ऐसे है कि अभी मप्र सरकार के पास लगभग 1 लाख से अधिक वैकेंसियां है, लेकिन लोगों को रोज़गार दिलाने वाला दफ्तर तक खाली है। हर छठे घर में एक युवा बेरोजगार है और हर 7वें घर में एक शिक्षित युवा बेरोजगार बैठा है। 

वहीं सरकारी आंकड़ों की बात करे तो मध्यप्रदेश में लगभग 1 करोड़ 41 लाख युवा हैं। पिछले 2 सालों में राज्य में 53% बेरोजगार बढ़े हैं। दिसम्बर 2015 में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 15.60 लाख थी जो दिसम्बर 2017 में 23.90 लाख हो गयी है। प्रदेश के 48 रोजगार कार्यालयों ने मिलकर 2015 में कुल 334 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है। 

एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में हजारों ऐसे युवा बेरोजगार बैठे है , जिनके पास कई बड़ी-बड़ी डिग्रियां है, लेकिन रोजगार नहीं।ऐसे हालात कहीं ना कहीं युवाओं को डिप्रेशन में डालने का काम करते है और अंतत: युवा आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते है। इस तरह की स्थिति को देखकर तो यही लगता है कि सरकार के दावों में सिर्फ खोखलापन है इसके सिवाय कुछ नहीं।

गौरतलब है कि बीते दिनों कुछ समाज के युवाओं द्वारा बेरोज़गार सेना का गठन किया गया था, जिसमें हजारों बेरोजगार युवा शामिल हुए थे। इस सेना ने प्रदर्शन कर सरकार को चेतावनी भी दी थी, कि जब तक रोजगार नहीं तब तक वोट नहीं। लेकिन सेना की चेतावनी का सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा।

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