अदाकारा वनमाला देवी की याद में नाट्य महोत्सव शुरू
ग्वालियर : गुजरे
जमाने की अदाकारा वनमाला देवी की याद में यहां दाल बाजार स्थित नाट्य मंदिर में मास्कमैजिक संस्था द्वारा आयोजित तीन दिवसीय नाट्य महोत्सव के
पहले दिन कल एस. गुलाटी कृत नाटक ‘हवा-हवाई’ का मंचन किया गया। ग्वालियर के
ही वरिष्ठ रंगकर्मी अरूण काटे द्वारा निर्देशित यह नाटक हंसी-हंसी में
सामाजिक विदु्रपताओं की तरफ तो इशारा करता ही है। आधुनिक होते समाज और उसके
बेढंग बदलावों को भी रेखांकित करता है। चूंकि नाटक के डायरेक्टर लंबे अरसे
तक माया नगरी में रहे हैं और फिल्मों व टीवी सीरियल्स में काम भी कर चुके
हैं, सो नाटक पर सिनेमाई असर बखूूबी देखा जा सकता है। नाटक में वेशभूषा,
किसिंग सीन से फिल्मी मसाला डालने की कोशिश की गई है।
बात की जाए नाटक के कथानक की तो यह काफी चुटीला है। इसे देखकर कई फिल्मों की कहानी याद आती है। अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म ‘गरम मसाला’ तो जरूर याद आएगी, जिसमें अक्षय कुमार तीन एयरहोस्टेस से इश्क करता है। झूठ पकड़े जाने पर तीनों ही उसे छोड़ जाती हैं। गोविन्दा की ‘सेंडविच’ और कामेडियन कपिल शर्मा की ‘किस-किस से प्यार करूं’ फिल्म के दृश्य भी इस नाटक को देखने के बाद आंखों में घूमते हैं। नाटक को देखकर लगता है कि इसकी कहानी इन्हीं फिल्मों से ली गई है, कहीं-कहीं तो दृश्य भी वैसे ही लगते हैं।
बहरहाल नाटक का नाटक पवन (शुभम् शुक्ला) एक नारी प्रिय व्यक्ति है जिसने अपनी जिंदगी सिर्फ खूबसूरत हसीनाओं के आगे-पीछे डोलने और उन पर डोरे डालने में गुजार दी। अपने इश्किया जुनून में उसे एक समय में तीन-तीन एयर होस्टेस से प्यार होता है। इश्क में उसकी कुशलता देखने लायक है। उसकी इस सफलता पर उसका दोस्त कृष्ण कुमार कटारिया (ऋतुराज चव्हाण) भी हैरान है। नाटक में एक मोड़ पर आकर नायक की झूठ पकड़ी जाती है। जब तीनों एयर होस्टेस पायल (पूजा सोनी), नमिता (शिवांगी नामदेव) और अनुपमा (साधना कुशवाह) एक ही समय में उसके घर पहुंचती हैं। अंत में एक नायिका पवन से दूसरी उसके दोस्त से एंगेज होती और तीसरी बुरा मानकर चली जाती है। नाटक का कथानक यूं तो हल्का-फुल्का है, लेकिन कथानक लंबा खींचने एवं दृश्यों के दोहराव या पुनरावृत्ति से कहीं-कहीं इसकी रसमयता टूटती है। नाटक की कास्टिंग अच्छी है। साउथ इंडियन एयर होस्टेस के रूप में नमिता व बंगालन एयर होस्टेस के रूप में साधना कुशवाह ने बेहतर अभिनय किया है। नायक पवन शुभम शुक्ला व कृष्ण कुमार के रूप में ऋतुराज का अभिनय यदा-कदा रियलिज्म से बाहर जाता दिखता है। महाबली (खानसामा) के रूप में खुद डायरेक्टर अरुण काटे ने बेहद रंजक और लुभावन अभिनय की मिसाल पेश की ।
मंच परिकल्पना में प्रमोद पत्की की मेहनत झलकती है। शिवांगी नामदेव का वस्त्र विन्यास भी लाजवाब है। हां, नाटक का म्युजिक असरकारी नहीं रहा। शकील अख्तर के गीत भी मसाला फिल्मों की तरह हैं। कुल मिलाकर नाटक हंसी-मजाक के बीच यह संदेश छोड़ने में कामयाब रहा कि अपनी अदाओं, चतुराई व वाकपटुता सेआप किसी को लंबे समय तक गुमराह नहीं कर सकते और झूठा प्यार भी नहीं।
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