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तत्काल सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के शासकीय कर्मियों की पदोन्नतियां नियमानुसार प्रारंभ करें सरकार : सपाक्स | sapaks news


भोपाल : कल दिनांक 11.06.2020 को तमिलनाडु के तमाम राजनैतिक दलों द्वारा लगाई याचिका पर मा सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आरक्षण "मौलिक अधिकार" नहीं है। इसके मायने स्पष्ट हैं कि आरक्षण किसी वर्ग विशेष के उत्थान के सकारात्मक कदमों में से एक हो सकता है लेकिन पहला और एकमात्र कदम नहीं!

इस परिप्रेक्ष्य में मप्र उच्च न्यायालय के पदोन्नति में आरक्षण को लेकर दिए गए निर्णय का संज्ञान लेना सामयिक है। मा. न्यायालय ने अपने दि 30.04.2016 के निर्णय में मप्र पदोन्नति नियम 2002 खारिज कर दिए थे , क्योंकि इन नियमों को मा न्यायालय ने असंवैधानिक पाया था। लेकिन तत्कालीन सरकार, जिससे अपेक्षा थी कि कानून का सम्मान करते हुए निर्णय लागू करेगी, दबाव और राजनैतिक लाभ के लिए मा. सर्वोच्च न्यायालय चली गई। 

विगत 4 वर्षों से सरकार की यह अपील लंबित है, लेकिन सरकार ने कभी इसके निपटारे की पहल नहीं की, जबकि हजारों कर्मचारी इस अवधि में अपने पदोन्नति के वाजिब अधिकार से वंचित कर दिए गए और उन्हें सरकार ने उन वरिष्ठ पदों पर बैठाए रखा, जो वास्तव में हकदार नहीं थे। यह स्थिति आज तक विद्यमान है। प्रश्न यह है कि क्या खुद सरकार संविधान का पालन करना नहीं चाहती? इस प्रश्न का उत्तर सपाक्स और सपाक्स समाज संस्था प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों से जानना चाहती है।

प्रकरण पर मा. न्यायालय के अंतरिम आदेश से सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के शासकीय सेवकों की पदोन्नति करने में कोई बाधा नहीं है, लेकिन सरकार ने आज तक इन वर्गों के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया जबकि इस संबंध में संस्था सरकार के हर स्तर को अवगत करा चुकी है और प्रकरण विशेष पर सरकार ने न्यायालय के निर्णय पर कार्यवाही करते हुए पदोन्नति दी है।

मा. मुख्यमंत्री जी ने हाल ही में कहा था - "हम सब भारत मां के लाल, भेदभाव का कहां सवाल", लेकिन इसका सरकार कोई पालन न करते हुए संविधान का कोई सम्मान नहीं कर रही।

संस्था सरकार से मांग करती है, तत्काल संवैधानिक प्रक्रिया और मा न्यायालयों के अनेक निर्णयों का सम्मान करते हुए तत्काल सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के शासकीय कर्मियों की पदोन्नतियां नियमानुसार प्रारंभ करें।


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