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आख़िर कैसे 4 से 47 सीटों पर पहुंच गई भाजपा, पढ़िए पूरी कहानी

चंडीगढ़ : हरियाणा में 2009 विधानसभा चुनाव में महज 4 सीटे पाने वाली भाजपा ने 2014 के चुनाव में 47 सीटों पर परचम फहराया है। पार्टी ने अकेले दम पर कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) को सत्‍ता से बाहर कर दिया है। कांग्रेस का जहां सूपड़ा साफ हो गया है, वहीं इनेलो के सत्‍ता पाने के सपनों को भी ध्‍वस्‍त कर दिया है। भाजपा की रणनीति पर डालते हैं एक नज़र।

मोदी मैजिक:

हरियाणा में भाजपा की जीत का सबसे बड़ा फ़ैक्‍टर मोदी मैजिक रहा। प्रधानमंत्री ने प्रदेश में ताबड़तोड रैलियां पार्टी के पक्ष में हवा बनाई और इसी का परिणाम है कि भाजपा ने यहां एकतरफा जीत दर्ज की है। गौरतलब है कि 90 सदस्‍यीय विधानसभा में 2005 में दो और 2009 में मात्र 4 सीटें जीतने वाली भाजपा को मिली थीं। अगर प्रदेश में आरएसएस का आधार होता तो वह 2005 और 2009 के चुनावों में दिखता। लेकिन इस बार का कारनामे मोदी लहर के कारण ही संभव हुआ।

इनेलो का परिवाद और भ्रष्‍टाचार

इनेलो में परिवारवाद पूरी तरह से हावी रहा। चुनाव मैदान में ओमप्रकाश चौटाला के बेटे अभय, पुत्रवधु नैना और पौत्र दुष्यंत चौटाला उतरे। टीचर भर्ती घोटाले में ओमप्रकाश चौटाला व उनके बड़े बेटे अजय चौटाला जेल गए। खराब स्वास्थ्य के नाम पर अंतरिम जमानत पर छूटे चौटाला चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतरे, पर वोटरों के दिलों में नहीं उतर पाए। इसके अलावा विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस के खिलाफ पार्टी कोई बड़ा मुद्दे नहीं उठा पाई जिससे जनाधार बढ़ता। ओमप्रकाश चौटाला के जेल जाने से पार्टी के पास ऐसा कोई नेता नहीं था जो पूरे प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ जन आंदोलन छेड़ पाता।

कांग्रेस की गिरती साख

इनेलो नेता टीचर भर्ती घोटाले में सजा होने के बाद जेल गए। कांग्रेस पर विकास में भेदभाव के आरोप लगे। राबर्ट वाड्रा डीएलएफ जमीन सौदों में अनियमितता के आरोप लगे। आईएएस अधिकारी अशोक खेमका और प्रदीप कासनी ने भी लगातार सरकार पर आरोप लगाए। इस वजह से कांग्रेस के सामने विश्‍वसनीयता का संकट था। मोदी ने इस स्थिति का पूरा फायदा उठाया। उन्‍होंने प्रदेश के हर वर्ग को अपने साथ जोडऩे की कोशिश की। बीरेंद्र चौधरी को साथ जोड़ कर जाटों में पकड़ बनाई।

जाटों के तीन नेताओं का भाजपा के पक्ष में आना

हरियाणा का सबसे बड़ा मतदाता वर्ग जाट है जो अभी तक कांग्रेस व इनेलो में बंटा हुआ था। जाट नेता के रूप में हालांकि भाजपा के पास कैप्टन अभिमन्यु और ओमप्रकाश धनखड़ जैसे चेहरे पहले से ही थे, जो रोहतक जिला से संबंध रखते हैं। भले ही प्रदेश स्तर पर इनका कोई जनाधार नहीं रहा हो, लेकिन जिला रोहतक जाट बहुल क्षेत्र है, इसलिए इस क्षेत्र के जाटों को भाजपा के साथ जोड़ने में इनका योगदान रहा। चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले बड़े जाट नेता व पूर्व सांसद बीरेंद्र सिंह हालांकि जींद जिला से संबंध रखते हैं, जबिक पूरे प्रदेश में जाटों के वोट बैंक पर उनकी पकड़ रही है। पत्नी प्रेमलता को ओमप्रकाश चौटाला के सांसद पौत्र दुष्यंत के खिलाफ चुनाव जिताने में सफल रहे। बीरेंद्र सिंह ने न केवल इनेलो के गढ़ जींद में सेंध लगाई है, बल्कि पाटी में मजबूती हासिल की है।

कांग्रेस नेताओं की हुड्डा से नाराजगी

दक्षिणी हरियाणा में कांग्रेस के बड़े नेता राव इंद्रजीत सिंह के भाजपा में शामिल होने का लाभ भी भाजपा का मिला। चुनाव से एक साल पहले हुडडा का विरोध तेज हो गया था। उनकी पार्टी के ही बड़े नेताओं में बीरेंद्र सिंह, कुमारी शैलजा और कैप्टन अजय यादव ने हाईकमान पर दबाव बनाया कि 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुड्डा की अगुआई में न लड़े जाएं। हुड्डा हाईकमान की नजरों में अपने इन विरोधियों को हटवाने में तो कामयाब रहे, पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इसका नतीजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। 6 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में मात्र एक सीट पर सिमटी कांग्रेस ने कोई सबक नहीं लिया, जिसका असर विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला। हुड्डा कांग्रेस के बड़े नेताओं को एक नहीं कर पाए। राव इंद्रजीत सिंह, चौधरी बीरेंद्र सिंह सरीखे बड़े नेता भाजपा में, पूर्व सासंद अवतार सिंह भडाना इनेलो में तो अरविंद शर्मा बसपा में चले गए। कुमारी सैलजा राज्यसभा में जाकर प्रदेश की सक्रिय राजनीति से दूर हो गईं।

जनता को रिझाने में असफल रहे बिश्नोई

भाजपा गठबंधन से अलग हुई हजकां के कुलदीप बिश्नोई अपनी परंपरागत सीट जिला हिसार से आगे नहीं निकल पाए। अपने अड़यिल रवैये के कारण कुलदीप न तो कार्यकर्ताओं को जोड़ पाए और न ही जनाधार बना पाए।

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