कई दलों का राजनीतिक भविष्य तय करेंगे चुनाव नतीजे
नई दिल्ली। हरियाणा और महाराष्ट्र में अकेले दम पर भाजपा सरकार बनाने को आश्वस्त है। अच्छे चुनाव नतीजे भाजपाध्यक्ष अमित शाह की सांगठनिक क्षमता पर भी मुहर लगाएंगे। साथ ही दोनों सूबों में कई दलों की भावी दशा और दिशा भी तय होगी। रविवार को आने वाले चुनाव नतीजे इन दोनों राज्यों में जातीय वोट बैंक की सियासत करने वाले दलों की किस्मत का भी फैसला करेंगे। करीब छह महीने पहले केंद्र की सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस इन दोनों राज्यों में भी सरकार में वापसी को लेकर आश्वस्त नहीं है। महाराष्ट्र में 15 और हरियाणा में 10 साल सत्तारूढ़ रहने के बाद चुनावी परीक्षा में सत्ताविरोधी लहर का खमियाजा भुगतने का मानस कांग्रेस नेता नतीजों से पहले से ही बना चुके हैं। कांग्रेस के एक केंद्रीय नेता ने चुनाव नतीजों से पहले ही हार स्वीकार करते हुए कहा,'हमलोग दोनों राज्यों में तीसरे स्थान पर रहने जा रहे हैं।'
शिवसेना का भविष्य दांव पर
शिवसेना का भविष्य दांव पर महाराष्ट्र में भाजपा अकेले सरकार बनाती है तो उसकी 25 बरस पुरानी सहयोगी शिवसेना के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल उठेंगे। बाल ठाकरे के निधन के बाद उद्धव के कमजोर नेतृत्व पर चर्चा होनी तय है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के मुखिया राज ठाकरे को मराठी मानुष की सियासत व घृणा की राजनीति वाली खुद की नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा।
राकांपा में मचेगी कलह
राकांपा में मचेगी कलह शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के सत्ता से बाहर होने पर पार्टी में अंदरूनी संघर्ष तय है। राकांपा में पवार की विरासत को लेकर पहले ही बेटी सुप्रिया व भतीजे अजित पवार के बीच खेमेबाजी है। मराठा व गैर मराठा की जातिगत सियासत करने वालों से भी सवाल पूछे जाएंगे।
भाजपा के सामने भी कई सवाल
भाजपा के सामने भी कई सवाल भाजपा में मुख्यमंत्री चुनने का मुद्दा कम रोचक नहीं होगा। पार्टी ने किसी का न नाम घोषित किया है, न ही कोई संकेत दिया है। आधा दर्जन नेता मीडिया के मार्फत नाम आगे करने में जुटे हैं। वहीं, दोनों राज्यों में सरकार बनने से भाजपा को राज्यसभा में कुछ और सीटें मिलने की संभावना रहेगी। झारखंड और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों पर भी असर होगा।
शिवसेना का भविष्य दांव पर
शिवसेना का भविष्य दांव पर महाराष्ट्र में भाजपा अकेले सरकार बनाती है तो उसकी 25 बरस पुरानी सहयोगी शिवसेना के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल उठेंगे। बाल ठाकरे के निधन के बाद उद्धव के कमजोर नेतृत्व पर चर्चा होनी तय है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के मुखिया राज ठाकरे को मराठी मानुष की सियासत व घृणा की राजनीति वाली खुद की नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा।
राकांपा में मचेगी कलह
राकांपा में मचेगी कलह शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के सत्ता से बाहर होने पर पार्टी में अंदरूनी संघर्ष तय है। राकांपा में पवार की विरासत को लेकर पहले ही बेटी सुप्रिया व भतीजे अजित पवार के बीच खेमेबाजी है। मराठा व गैर मराठा की जातिगत सियासत करने वालों से भी सवाल पूछे जाएंगे।
भाजपा के सामने भी कई सवाल
भाजपा के सामने भी कई सवाल भाजपा में मुख्यमंत्री चुनने का मुद्दा कम रोचक नहीं होगा। पार्टी ने किसी का न नाम घोषित किया है, न ही कोई संकेत दिया है। आधा दर्जन नेता मीडिया के मार्फत नाम आगे करने में जुटे हैं। वहीं, दोनों राज्यों में सरकार बनने से भाजपा को राज्यसभा में कुछ और सीटें मिलने की संभावना रहेगी। झारखंड और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों पर भी असर होगा।
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