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CODE 'B' वाले महिला-पुरुष करते थे रामपाल की मसाज

हिसार : सतलोक आश्रम चाह एक धार्मिक संस्था के नाम से प्रसिद्व था लेकिन किसी असल में वह किसी मल्टीनेशनल कंपनी की तरह और बिल्कुल बिग बॉस के घर की तरह था। जिस तरह एक मल्टीनेशनल कंपनी हमेशा ही बढ़ौतरी के लिए कुछ नियम रखती है उसी तरह इस आश्रम के भी कुछ ऐसे ही नियम थे।

इसके सात सच को जानकार आप हैरान रह जाएंगे। आश्रम प्रबंधन के लोगों ने अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के लिए बाकायदा एक चेन सिस्टम लागू कर रखा था।

इसके तहत आश्रम का हर सदस्य को कम से कम तीन परिवारों को आश्रम से जुड़वाना होता था। किसी भी नए सदस्य को पहली बार सत्संग में फ्री एंट्री मिलती थी। सत्संग में 5 से 7 दिन गुजारने के बाद जब वह दोबारा पहुंचता था तो उसे भी सदस्यता लेनी पड़ती, जिसका शुल्क एक हजार रुपए लिया जाता था। खास बात यह थी कि आश्रम सदस्य की जमानत पर ही नए सदस्यों को एंट्री मिलती थी। 
कुछ कंप्यूटर इंजीनियर भी इस काम को इंजाम देते थे और तो आश्रम का सारा सिस्टम ऑनलाइन था। आश्रम के बाहरी स्थानों पर तो ओपन सीसीटीवी कैमरे लगे थे, जबकि अंदरूनी हिस्सों में पेंसिल कैमरे लगाए गए थे। इन कैमरों के बारे में रामपाल जानता था।

इस बात को तो सुन कर आप हैरान रह जाएंगे कि रामपाल का प्रवचन का केबिन बना हुआ था। रामपाल जब प्रवचन के दौरान गायब हो जाता था तो वह तहखाने में चला जाता और वहां से कैमरों की रिकॉर्डिंग देखकर दोबारा प्रकट होकर आश्रम की गतिविधियां अनुयायियोें को बताता था। इससे लोगों को लगता था कि रामपाल चमत्कार कर रहा है। कैमरे का कनेक्शन रामपाल के निजी कमरों में भी किया गया था। उनका आश्रम बिग बॉस की तरह था पूरी बिग बॉस की तरह ही आश्रम में होने वाली हर गतिविधि पर नजर रखता था। आरोप तो यहां तक हैं कि उसने बाथरूम में भी पेंसिल कैमरे लगवाए थे। अपने कमरे में लगे कंप्यूटर के माध्यम से वह सभी सिस्टम पर नजर रखता था।

आश्रम में अनुयायियों को तीन स्तर पर दीक्षा दी जाती थी।

सदस्यता: आश्रम का सदस्य बनने के बाद से ही गुरुमंत्र दिया जाता था। यह गुरुमंत्र था गायत्री मंत्र का जाप। तीन माह तक अनुयायी इसका जाप करता रहता था। इसके लिए सदस्यों को एक हजार रुपए का भुगतान करना पड़ता था, जो सदस्यता शुल्क के रूप में लिया जाता था।

सतनाम: सदस्यता के तीन माह बाद अनुयायी को सतनाम दिया जाता था। इससे आश्रम में सदस्य की महत्ता बढ़ जाती थी। वह आश्रम के कार्यों में हाथ बंटाने लगता था। इसके लिए सदस्य को नौ हजार रुपये का भुगतान करना पड़ता था। यह अनुयायी की इच्छा पर निर्भर करता था कि वह सतनाम चाहता है कि नहीं।

सारनाम: जो व्यक्ति दस वर्षों तक आश्रम से जुड़ा रहता था,उसे सारनाम दिया जाता था। ऐसे सदस्य कार्यकारिणी में भी शामिल किए जाते थे और इन्हें कोई न कोई पद भी मिलता था। इसके लिए दस हजार रुपए का भुगतान करना पड़ता था। यह सतनाम प्राप्त सदस्यों की इच्छा पर था कि वह इसे ग्रहण करना चाहते हैं अथवा नहीं।

सतलोक का टिकट: दीक्षा की प्रक्रिया पार करने वाले और 15 वर्षों तक आश्रम में निष्ठा से सेवा करने वालों के लिए सतलोक का टिकट दिया जाता था। इसकी कीमत एक लाख रुपये थी। हालांकि यह टिकट आश्रम के ज्यादातर धनाढ्य सदस्य ही ले पाते थे। आश्रम की ओर से यह दावा किया जाता था कि सतलोक का टिकट पाने वाला सीधे स्वर्ग जाता है

रामपाल ने अपने खास सेवकों को एक विशेष कोड दिया हुआ था। कोड के हिसाब से अलग-अलग सेवादारों के काम का बंटवारा और आश्रम के एक सीमित दायरे तक एंट्री कार्ड था। सतलोक आश्रम में खास राजदारों को चार कोड नंबर दिए हुए थे।

इस कोड में ए, बी, सी, डी कोड लिखा होता था। हर कोड के सीमित सेवादारों को इनका टोकन दिया हुआ था। रामपाल की निजता भंग न हो, इसके लिए कोड टोकन देखने के बाद ही सेवादार की एंट्री होती थी।


रामपाल के एक अनुयायी ने बताया है कि ए कोड केवल चार से पांच महिलाओं के पास था। ये महिलाएं कोठी में रामपाल के साथ ही रहती थीं। रामपाल के खान-पान का ध्यान रखना, लॉकरों में रखे जाने वाले धन के बारे में इन्हें भी जानकारी होती थी। कोठी में रहने वाली महिला सेवादार कभी बाहर नहीं निकलती थीं। इन्हें बाहर के लोगों से सीधे रूप में बातचीत करने का अधिकार नहीं था।

रामपाल के बाथरूम के सामने कुछ खास सेवादारों की सूची मिली है। इन सेवादारों को आश्रम ने कोड बी दे रखा था। बताया जा रहा है कि ये बी कोड वाले महिला-पुरुष सेवादार रामपाल की मसाज करते थे।

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