बी.आर. कृष्णा अय्यर का निधन, प्रधानमंत्री ने शोक व्यक्त किया
कोच्चि :
सवयोवृद्ध न्यायविद् एवं उच्चतम न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश
न्यायमूति पद्मविभूषण वी.आर. कृष्ण अय्यर का आज दोपहर यहां एक निजी अस्पताल
में निधन हो गया। उन्होंने गत 15 नवंबर को ही अपने जीवन के सौ वर्ष पूरे
किए थे। उनके परिवार में दो पुत्र हैं। उनकी पत्नी का निधन पहले ही हो गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री अय्यर के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया
है और उन्हें देश का प्रमुख न्यायविद् तथा चितंक एवं बढिय़ा इन्सान बताया
है।
उन्होंने अपने शोक संदेश में कहा कि अय्यर के साथ उनके विशिष्ट संबंध थे। जब भी मैं उनसे मिला तो वह बड़े उत्साह से मिले और देश की चिन्ता करते थे। उनके साथ मेरी पुरानी स्मृतियां भी है तथा उन्होंने मुझे पत्र भी लिखे थे। अय्यर पिछले पन्द्र दिन से अस्पताल में भर्ती थे। उनका निधन गुर्दे खराब होने तथा दिल का दौरा पडऩे से हुआ। 1915 में केरल के थालसरी में जन्में अय्यर ने अन्नामलाई तथा मद्रास ला कालेज से पढ़ाई की थी और अपने वकील पिता वी.वी. रमा अय्यर की देखरेख में वकालत की शुरूआत की।
वह केरल में 1952 में मद्रास विधानसभा के भी सदस्य बने तथा 1957 में नब्बूरिपाद मंत्रिमंडल में कानून मंत्री भी बने।1959 से दोबारा वकालत शुरू करने के बाद वह 1968 में केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने तथा 17 जुलाई 1973 को उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति बने। वह 14 नवंबर 1980 को सेवानिवृत्त हुए। वह 1971 में 19 75 तक विधि आयोग के सदस्य भी बने। 1987 में वह राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी आर वेकटरामन के खिलाफ उम्मीदवार भी थे। उन्होंने 70 पुस्तके भी लिखी थी। उन्होंने अपनी आत्कथा वांडरिंग इन मेनी वल्र्ड भी लिखी थी।
उन्होंने अपने शोक संदेश में कहा कि अय्यर के साथ उनके विशिष्ट संबंध थे। जब भी मैं उनसे मिला तो वह बड़े उत्साह से मिले और देश की चिन्ता करते थे। उनके साथ मेरी पुरानी स्मृतियां भी है तथा उन्होंने मुझे पत्र भी लिखे थे। अय्यर पिछले पन्द्र दिन से अस्पताल में भर्ती थे। उनका निधन गुर्दे खराब होने तथा दिल का दौरा पडऩे से हुआ। 1915 में केरल के थालसरी में जन्में अय्यर ने अन्नामलाई तथा मद्रास ला कालेज से पढ़ाई की थी और अपने वकील पिता वी.वी. रमा अय्यर की देखरेख में वकालत की शुरूआत की।
वह केरल में 1952 में मद्रास विधानसभा के भी सदस्य बने तथा 1957 में नब्बूरिपाद मंत्रिमंडल में कानून मंत्री भी बने।1959 से दोबारा वकालत शुरू करने के बाद वह 1968 में केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने तथा 17 जुलाई 1973 को उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति बने। वह 14 नवंबर 1980 को सेवानिवृत्त हुए। वह 1971 में 19 75 तक विधि आयोग के सदस्य भी बने। 1987 में वह राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी आर वेकटरामन के खिलाफ उम्मीदवार भी थे। उन्होंने 70 पुस्तके भी लिखी थी। उन्होंने अपनी आत्कथा वांडरिंग इन मेनी वल्र्ड भी लिखी थी।
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