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एक और साहित्यकार ने लौटाया 'सम्मान'

सतना। अभिव्यक्ति की आजादी सहित कई अन्य मुद्दों को लेकर साहित्यकारों द्वारा दर्ज कराए जा विरोध के प्रति एकजुटता दिखाते हुए सतना के साहित्यकार संतोष खरे ने भी शरद जोशी सम्मान लौटा दिया। यह सम्मान उन्हें नौ साल पहले मप्र साहित्य अकादमी द्वारा प्रदान किया गया था।

खरे  साहित्यकारों को लेकर सरकार के रवैय्ये से नाराज हैं। उन्होंने कहा, मैं इस सम्मान का आदर करता हूं। पर, जिन कारणों से देश के 40-45 लेखकों द्वारा केन्द्र और राज्यों की साहित्य-अकादमी से मिले पुरस्कार वापस किए गए हैं, उस पर  सरकार ने कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया। उसके विरोध स्वरूप मैं पुरस्कार वापस कर रहा हूं। ताकि लेखकों के साथ एकजुटता प्रदर्शित हो सके। पुरस्कार में दी गई 15 हजार रुपयों की राशि साहित्य अकादमी के नाम चेक व स्मृति चिन्ह वापस करेंगे।

अकादमी को लिखा पत्र

साहित्यकार खरे ने मप्र साहित्य अकादमी को पत्र भी लिखा है। जिसमें कई सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि कुछ वर्षों से निरंतर सामाजिक असहिष्णुता का वातावरण निर्मित हो रहा है। जिससे हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं के लेखक चिंतित और क्षुब्ध हैं। इसलिए उन्होने शासकीय, केन्द्रीय और प्रांतीय संस्थानों के द्वारा दिये गये पुरस्कार वापस कर दिए हैं। इन सभी अपने अग्रज और अनुज लेखकों की भावनाओं का समर्थन करते हुए मैं भी शरद जोशी सम्मानÓ लौटा रहा हूं। पर, यह अवश्य कहना चाहता हूं शरद जोशी सम्मान के प्रति मेरे मन में गहरा आदर भाव है और मेरी इस पुरस्कार वापसी के पीछे इस सम्मान को निरादर करने का कोई भाव नहीं है।

कर्नाटक, महाराष्ट्र और यूपी की हिंसात्मक घटनाओं का मप्र साहित्य अकादमी से कोई संबंध नहीं है। किन्तु, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करने और बढ़ती हुई असहिष्णुता के लिए सरकार जिम्मेदार है, विरोध दर्ज कराने के उद्देश्य से मैंने यह कदम उठाया है।

तीव्र आक्रोश व्यक्त करते हुए खरे ने पत्र में लिखा है, अगर शरद जोशी या हरिशंकर परसाई आज जीवित होते, तो निश्चय ही ऐसी घटनाओं के प्रति अपना तीव्र आक्रोश व्यक्त करते। इन लेखकों के प्रति मेरी अनन्य श्रद्धा है और रहेगी।

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