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संकट में सेकुलर ‘शिवराज’...

(सवाल दर सवाल)राकेश अग्निहोत्री
वसंत पंचमी यानी 12 फरवरी को भोजशाला के मुद्दे का समय रहते पटाक्षेप जरूरी हो गया है। जहां कोर्ट की दखल, एएसआई की गाइडलाइन और जिला प्रशासन के फरमान के बाद भी विवाद थमने की बजाए और गरमा चुका है। शुक्रवार को पूजा और इबादत एक साथ का ये मौका पहला नहीं है। इससे पहले भी ऐसी नौबत आई और बीच का रास्ता निकाला गया। इस बार सरकार के लिए चुनौती विशेष हालात में परंपरा को कायम रखने की ही नहीं, बल्कि बवाल नहीं मचने देने की है। दोनों समुदाय का अड़ियल रवैया शासन-प्रशासन के लिए परेशानी का सबब बन गया है। सवाल ये खड़ा होता है कि डैमेज कंट्रोल की तमाम कोशिशों के बीच क्या ‘शिवराज’ की सेकुलर इमेज पर संकट खड़ा हो गया है? यदि हां तो क्या भोजशाला की आड़ में संघ और उसके अनुषांगिक संगठन शिवराज पर दबाव तो नहीं बना रहे हैं?
 
टीवी पर जब दिल्ली में प्रोटोकॉल छोड़कर दोनों हाथ फैलाए गर्मजोशी से आगे बढ़कर पीएम नरेंद्र मोदी आबूधाबी के शाहजादा और यूएई की सशस्त्र सेनाओं के उप मुख्य कमांडर जनरल शेख मोहम्मद बिन जायेद अल नाह्यान की अगवानी कर रहे थे तब मप्र की जनता की उम्मीद का केंद्र सेकुलर शिवराज थे। कारण धार में उपजा धर्मसंकट था जो भगवाधारियों के सड़क पर आकर शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा क्या बना वसंतपंचमी पर विवाद को एक नई हवा दे गया। कोर्ट पहले ही तीन दिन के अंदर एएसआई, सरकार और जिला प्रशासन से जवाब मांग चुका है, तो बनाई गई गाइडलाइन के तहत मां सरस्वती की सुबह से शुरू होने वाली पूजा के शाम तक चलने के बीच एक से तीन बजे तक नमाज का समय निर्धारित किया गया है। धार की इस भोजशाला में वसंतपंचमी को छोड़कर पूरे समय पूजा की इजाजत है तो जुमे की नमाज पढ़ने की इजाजत भी दी गई है। वसंतपंचमी पर यहां तनाव की स्थिति पहले भी कई बार बन चुकी है लेकिन इस बार कुछ ज्यादा ही घमासान मचा है। 48 घंटे पहले जिले के प्रभारी मंत्री नरोत्तम मिश्रा और संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन जब दोनों समुदाय के मान-मनौव्वल के साथ बीच का रास्ता निकालने में जुटे थे तब मुख्यमंत्री मैहर में विजय रथ पर सवार होकर बीजेपी उम्मीदवार नारायण त्रिपाठी को जिताने के लिए प्रचार कर रहे थे। धार में जब नमाज और पूजा को लेकर रस्साकसी जारी थी तब पीएम नरेंद्र मोदी के शेरपुरा दौरे का जायजा लेने के लिए अमित शाह के दूत राष्ट्रीय महामंत्री भूपेंद्र योदव औऱ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे नंदकुमार के साथ स्थल निरीक्षण के दौरान मीडिया के सवाल का जवाब देने की बजाए पीसी में बगलें झांकते नजर आए। ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और बीजेपी के पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा के बयान ने भोजशाला को लेकर उपजे विवाद में मानो आग में घी का काम किया। दिग्गीराजा ने यदि मां सरस्वती की मूर्ति नहीं होने के बाद भी भोजशाला में पूजा पर अड़े विहिप और भगवाधारियों की भूमिका, नीयत और सोच पर सवाल खड़े कर बिना नाम लिए संघ की खबर ली तो हिन्दुत्व के चेहरे रघुनंदन शर्मा ने भी आजादी के बाद बहुसंख्यकों की स्थिति पर सवाल खड़ा कर एक नई बहस छेड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
 
सरकार के सामने संकट सिर्फ मोदी के दौरे को सफल बनाने का ही नहीं है बल्कि इससे पहले भोजशाला में स्थिति सामान्य करने की भी है। वसंतपंचमी के ठीक एक दिन बाद मैहर में वोटिंग होना है। विवाद बीजेपी के दो दिग्गज राष्ट्रीय पदाधिकारियों के बीच भी समन्वय के अभाव में नजर आया जहां यादव, सहस्रबुद्धे और चौहान किसानों के विराट सम्मेलन में खर्च और उसके बजट को लेकर उनके जवाब में विरोधाभाष नजर आया। दिग्गी राजा ने मुद्दा सरकार की माली हालत का हवाला देकर किसानों को उनका हक नहीं देने का भी उछाला। लेकिन फिलहाल धार का धर्मसंकट ज्यादा बड़ी समस्या बनकर शिवराज और उनकी सरकार के सामने खड़ा है। ऐतिहासिक और धार्मिक भोजशाला का विवाद पुराना है लेकिन बीजेपी का 12 साला सरकार रहते यहां तनाव के बाद भी समस्या का समाधान समय रहते निकाल लिया जाता रहा। यहां सवाल ये खड़ा होता है कि जब शिवराज मैहर प्रचार थमने के बाद 11 फरवरी की शाम भोपाल लौटेंगे तो उनकी प्राथमिकताओं में क्या भोजशाला सबसे ऊपर होगी? ये सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि शिवराज मप्र में मुख्यमंत्री रहते एक ऐसे सेकुलर लीडर के तौर पर न सिर्फ उभरे हैं बल्कि उन्होंने अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवाकर सरकार में रहते सरकार में लौटे हैं। चौहान ने मुख्यमंत्री निवास सभी धर्मों के लिए न केवल खोला बल्कि श्यामला हिल्स के उनके आवास पर ईद, क्रिसमस और प्रकाश पर्व धूमधाम से मनाना परंपरा का हिस्सा बन गया है जिसे तोड़ पानी शिवराज के जाने के बाद भी किसी भी दल के सीएम के लिए आसान नहीं होगा जिन्होंने सभी धर्मों के धर्मावलंबियों को सरकारी खर्चे पर धार्मिक यात्राएं कराई हैं। ऐसे में सेकुलर शिवराज की इमेज यदि संकट में है तो उसका कारण भोजशाला विवाद है।
 
शिवराज को अच्छी तरह मालूम होगा कि जिस दिन देश की नजर मप्र के धार की भोजशाला में साम्प्रदायिक सद्भाव कायम रखने की अपेक्षाओं पर टिकी होगी तब सेकुलर शिवराज को इंदौर में केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू के साथ स्मार्ट सिटी के कार्यक्रम के साथ नए पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित किए जा रहे खंडवा के हनुमंतिया के जल महोत्सव में शिरकत करना है। ऐसे में खूफिया तंत्र की बड़ी भूमिका के बीच शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। पिछले दिनों संघ की समन्वय बैठक में अल्पसंख्यकों का बड़ी संख्या में सड़क पर आकर एक हिन्दूवादी नेता के बयान का विरोध करना चर्चा का केंद्र बिन्दू बन चुका है तो आने वाला समय चौहान के िलए किसी चुनौती से कम नहीं है चाहे वो वसंतपंचमी के बाद पीएम नरेंद्र मोदी का शेरपुरा दौरा हो जहां मोदी देश के चार राज्यों में होने वाली किसान रैलियों का आगाज सीएम के क्षेत्र से करेंगे। कुछ दिन बाद ही मोदी छत्तीसगढ़ में सीएम रमन सिंह के गृह जिले भी जाएंगे। ऐसे में सफलता को लेकर तुलना बहस का मुद्दा बन सकता है। भोजशाला और मोदी के दौरे के साथ कैबिनेट विस्तार और उसके बाद विधानसभा का बजट सत्र ही मायने नहीं रखता है बल्कि उसके बाद अप्रैल में होने वाला सिंहस्थ सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर सामने होगा जहां साधु-संतों के जमावड़े के बीच एक बार फिर पीएम को पहुंचना है। विहिप की रणनीति सिंहस्थ के दौरान उज्जैन में राम मंदिर के निर्माण की तारीख का ऐलान करना भी है। इस रोडमेप के बीच फिलहाल मैहर से लौटने के बाद शिवराज को ये तय करना है कि भोजशाला को लेकर उपजे विवाद के बीच बिल्ली के गले में घंटी कौन, कैसे और कब बांधे जिससे शिवराज की सेकुलर इमेज पर सवाल खड़ा करने की जेहमत नहीं उठा सके।
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Rakesh Agnihotri
political editor स्वराज Express MP/CG

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