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गम में डूबा हनुमनथप्पा का गांव, आज होगा अंतिम संस्कार

नई दिल्ली : सियाचिन के जांबाज सैनिक लांस नायक हनुमनथप्पा कोप्पड़ का अंतिम संस्कार शुक्रवार को कर्नाटक के धारवाड़ जिला स्थित उनके पैतृक गांव बेतादुर में पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। उससे पहले उनके पार्थिव शरीर को शहर स्थित नेहरू मैदान में रखा जाएगा ताकि आम लोग उन्हें आखिरी श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें।

शहीद लांस नायक का शव गुरुवार रात हुब्बली लाया गया। सियाचिन में चमत्कारिक रूप से जीवित बचने के बाद जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हनुमनथप्पा का गुरुवार को दिल्‍ली के सेना अस्पताल में निधन हो गया था।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगी एच के पाटिल और विनय कुलकर्णी के साथ शव को लेने हवाईअड्डे गए थे। उनके साथ विधानसभा में विपक्ष के नेता जगदीश शेट्टार और कई अन्य लोग भी पहुंचे थे। कर्नाटक सरकार ने शोकाकुल परिवार के लिए 25 लाख रूपए की अनुग्रह राशि घोषित की है।

जिंदगी की जंग हार गए हनुमनथप्पा 
हनुमनथप्पा के शरीर के अंगों के काम नहीं करने के चलते उनका निधन हो गया। उन्होंने नौ दिनों तक जिंदगी के लिए जंग लड़ी।    सियाचिन ग्लेशियर में 30 फुट बर्फ के मलबे के अंदर से चमत्कारिक रूप से निकाले जाने के तीन दिन बाद गुरुवार दोपहर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह छह दिनों तक बर्फ के ढेर के अंदर दबे रहे थे।

हनुमनथप्पा के निधन पर देश भर में शोक की लहर

आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल ने बताया, लांस नायक हनुमनथप्पा नहीं रहे। उन्होंने दिन में 11 बज कर 45 मिनट पर आखिरी सांस ली।
   
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा, आपके अंदर का सैनिक अमर रहेगा। मोदी ने ट्वीट किया, वह हमें उदास और व्यथित छोड़ गए। लांस नायक हनुमनथप्पा को भगवान शांति दें। आपके अंदर का सैनिक अमर रहेगा। गर्व है कि आपकी तरह के शहीद ने भारत की सेवा की।

उनका पार्थिव शरीर बरार स्कवायर में रखा गया, जहां रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कई सारे सैन्य अधिकारियों तथा अन्य ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

हनुमनथप्पा के इलाज की पांच चुनौतियों से हारे डॉक्टर


उनकी पत्नी महादेवी अशोक बिलेबाल सहित उनके परिवार के लोग इस दौरान खामोश बैठे हुए थे जबकि उनकी दो साल की बेटी नेत्रा उस चुप्पी को तोड़ रही थी।
   
13 साल पहले सेना में हुए थे शामिल
कर्नाटक के धारवाड़ जिले के बेतादुर गांव निवासी हनुमनथप्पा 13 साल पहले सेना में शामिल हुए थे। आर्मी हॉस्पिटल निदेशक एवं कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल एसडी दुहान ने बताया, हमने सियाचिन के बहादुर योद्धा की मौत से लड़ने के लिए अपने स्तर पर सर्वश्रेष्ठ कोशिश की लेकिन हमारी सर्वश्रेष्ठ कोशिशों के बावजूद उनका रक्तचाप कम हो गया और उन्हें दिल का दौरा पड़ा।

गौरतलब है कि तीन फरवरी को हिमस्खलन की चपेट में अपनी चौकी के आ जाने के बाद वह बर्फ के नीचे दब गए थे। रक्षा राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने बताया कि जब हिमस्खलन की चपेट में चौकी आई थी तब वह अपने स्लीपिंग बैग में पूरी पोशाक में सो रहे थे।

चूंकि उनकी हडि्डयों में कोई चोट नहीं आई थी इसलिए विशेषज्ञों को लगता है कि वह एक एयर पॉकेट में अटक गए होंगे जिससे उनके जीवित रहने में मदद मिली होगी। वह एक योग प्रशिक्षक थे इसलिए कहीं ना कहीं वह अपनी सांस को नियंत्रित कर सके होंगे।

सेना के अधिकारी ने बताया कि हनुमनथप्पा ने 13 साल की अपनी सेवा में 10 साल मुश्किल भरे और चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में सेवा दी। वह 2003 से 2006 के बीच जम्मू कश्मीर के माहोर में सेवारत रहे और आतंकवाद रोधी गतिविधियों में सक्रियता से भाग लिया। उन्होंने 2008 से 2010 तक जम्मू कश्मीर में 54वें राइफल्स (मद्रास) में सेवा दी। उन्होंने 2010 से 2012 तक पूर्वोत्तर में भी सेवा दी, जहां उन्होंने एनडीएफबी और उल्फा के खिलाफ अभियानों में भाग लिया।

हनुमंतप्पा का शानदार सफ़र
-33 साल के हनुमंतप्पा
-अक्टूबर 2002 में सेना से जुड़े
-मद्रास रेजिमेंट की 19वीं बटालियन में रहे
-अब तक की 13 साल की नौकरी
-10 साल बेहद चुनौती भरे इलाक़ों में
-2003 से 2006 तक जम्मू-कश्मीर के माहोर में
-आतंकवाद विरोधी अभियानों में शामिल
-2008 से 2010 के बीच फिर जम्मू-कश्मीर पोस्टेड
-2010 से 2012 के बीच पूर्वोत्तर में
-एनडीएफ़बी और उल्फ़ा से लड़े
-अगस्त 2015 से सियाचिन में
-दिसंबर 2015 में 19,600 फुट ऊंची चौकी पर तैनाती












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