नमो-शिवाय की नई कैमेस्ट्री...
राकेश अग्निहोत्री (सवाल दर सवाल)
देश को फसल बीमा योजना की सौगात देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्यप्रदेश के उन किसानों से रूबरू होंगे, जिनकी नजर में सबसे बड़े हिमायती, हमदर्द बड़े किसान नेता अभी तक सिर्फ और सिर्फ शिवराज सिंह चौहान थे जिन्होंने किसानों के लिए बहुत कुछ किया फिर भी समस्याओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है जिन्हें सिर्फ मुआवजे की ही दरकार नहीं है बल्कि वो खेती को फायदे का धंधा बनाए जाने का संकल्प लेने वाले मुख्यमंत्री से और भी िरयायतों के साथ समस्या का स्थायी समाधान समय रहते चाहते हैं। देखना दिलचस्प होगा कि 6 लाख किसानों के महाधिवेशन को जब पीएम और सीएम संबोधित करेंगे तो इससे किसानों का कितना, कैसे और कब तक भला होगा? चुनाव में बड़ी भूमिका निभाने वाले किसान वोट बैंक की अपेक्षाएं केंद्र और राज्य सरकार से लाजमी है फिर भी सवाल ये खड़ा होता है कि नमो-शिवाय की ये नई कैमेस्ट्री सियासत के मैदान में क्या गुल खिलाएगी जहां सियासी फसल काटने के लिए अन्नदाताओं को सरकारी खर्चे पर बुलाकर मोदी के दौरे को न सिर्फ यादगार और ऐतिहासिक बल्कि पीएम की प्रस्तावित 3 और रैलियों से अलग साबित करने की होड़ लग चुकी है।
देश में जब छात्र राजनीति में युवा जेएनयू के विवाद के बाद विचारधारा की आड़ में राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रद्रोह को लेकर आमने-सामने खड़े नजर आ रहे हैं तब पीएम नरेंद्र मोदी किसानों से रूबरू होंगे जिन्हें फसल बीमा योजना की सौगात देकर केंद्र सरकार को किसानों का शुभचिंतक साबित करेंगे। इसे संयोग ही कहेंगे कि मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया के जुमलों के बीच देश का सबसे सस्ता 251 रुपए में स्मार्ट फोन लांच कर सरकार युवाओं की नब्ज पर हाथ रख चुकी है। ऐसे में पीएम मोदी उस किसान को साधने की जुगत में हैं जिसे भड़काने के लिए राहुल गांधी ने भूमि अधिग्रहण बिल का माखौल उड़ाने के लिए मोदी सरकार को उद्योगपतियों की हिमायती और सूटबूट की सरकार का जुमला उछालकर एक ऐसी लकीर खींची थी कि मोदी सरकार को अपना महत्वाकांक्षा लैंड बिल वापस लेना पड़ा था। यानी मोदी का मकसद किसानों को भ्रमित करने वाली मां-बेटे वाली कांग्रेस को एक्सपोज करना है जिसके लिए वो बजट सत्र से पहले किसानों का सम्मेलन मध्यप्रदेश समेत देश के 4 राज्यों में करने जा रहे हैं। मध्यप्रदेश का सौभाग्य है कि इसका शुभारंभ सीएम शिवराज सिंह के गृह जिले सीहोर से होगा। खुद शिवराज सिंह ने फसल बीमा योजना के लिए अहम सुझाव दिए थे और आपदा पीड़ित प्रदेश के किसानों के लिए सरकार की औकात से बाहर यानी सीमित संसाधनों से आगे निकलकर फंड के जरिए उनके घावों पर मरहम लगाया था। बीजेपी के इतिहास में राजनाथ सिंह को अभी तक सबसे बड़े किसान नेता के तौर पर पार्टी प्रोजेक्ट करती रही है तो पिछले कुछ सालों में मध्यप्रदेश को चार बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिलने के साथ ही शिवराज एक बड़े किसान नेता के तौर पर उभरे और उनकी लोकप्रियता सूबे से बाहर भी चर्चा का विषय बनी।
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि लाखोें किसानों के सामने मंच पर नमो शिवाय की ये नई कैमेस्ट्री किसान मंच पर आखिर गुल खिलाती है। इसमें कोई दोराय नहीं कि मौका मध्यप्रदेश के लिए गौरव का है क्योंकि पीएम के अभिनंदन समारोह पर पूरे देश के किसानों की नजर रहेगी। लेकिन आज हम चर्चा मोदी और चौहान के बनते बिगड़ते रिश्तों से आगे दोनोें की समन्वयवादी सियासत की करेंगे और उसमें सामंजस्य की आड़ में सुविधा की उस राजनीति को भी टटोलने की कोशिश करेंगे जो अब एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है। बीजेपी आडवाणी युग से निकलकर मोदी युग में दाखिल क्या हुई समीकरण बदलते चले गए। मोदी की लोकप्रियता का डंका देश-दुनिया में जब बज रहा है तो शिवराज का जादू भी मध्यप्रदेश में लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है जिन्होंने केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद खुद को मध्यप्रदेश तक सीमित कर लिया है और मोदी-शाह के हर उस एजेंडे को दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे पहले लपककर आगे बढ़ा रहे हैं जिसने उन्हें हाईकमान की इस जोड़ी के बहुत करीब लाकर खड़ा कर दिया है। कभी नरेंद्र भाई और शिवराज भैया में प्रतिस्पर्धा लाने की आड़ में आडवाणी ने व्यक्तिगत िहत साधे थे तो लगा था कि मोदी के साथ चौहान भी पीएम के प्रबल दावेदारों में शामिल हैं। अब मोदी और चौहान खुद बहुत करीब हों लेकिन सियासी नजर से उनके बीच एक बड़ा फासला देखा जा सकता है। मोदी चुनाव जिताने वाले बड़े नेता बनकर उभरे थे लेकिन दिल्ली और बिहार की हार के बाद सूबे की राजनीति में बीजेपी को फिर ऐसे नेताओं की दरकार है जो जनता के बीच न सिर्फ लोकप्रिय हों बल्कि उनमें चुनाव जिताने का भी माद्दा हो। शायद मोदी ने भी अब ये मान लिया है कि मप्र में शिवराज का कोई विकल्प नहीं है और यदि उन्हें अगली बार भी पीएम बनना है तो मप्र से ज्यादा लोकसभा की सीटें हासिल करने के लिए सरकार यहां भी हर हाल में बीजेपी की बनाना होगी और ये काम शिवराज सिंह चौहान ही कर सकते हैं।
वह बात और है कि पिछले एक दशक में चौहान ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर किसी विकल्प को नहीं उभरने दिया। कई समकालीन नेता या तो हाशिये पर पहुंच गए या फिर उन्हें अलग-थलग कर ऐसी स्थिति बना दी कि वो सभी शिवराज की कृपा के मोहताज हो गए। सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर ऐसी कौन सी बूटी उनके पास है या कौन सी घुट्टी पी रखी है जो वो समय रहते न सिर्फ चुनौतियों के चक्रव्यूह से खुद को बाहर निकाल ले जाते हैं और निर्विवादित तौर पर जनता के बीच सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं। बड़ा सवाल ये है कि शिवराज में आखिर ऐसी खूबी क्या है िक कांग्रेस का नेता उनकी कमर तक नहीं पहुंच चुका और आडवाणी से लेकर मोदी भी शिवराज के मुरीद हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि नमो शिवाय की इस नई कैमेस्ट्री का बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में क्या असर पड़ता है। क्योंकि पहले ही अमित शाह शिवराज को उनकी पसंद का प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार के तौर पर दे चुके हैं तो मिले फ्रीहैंड के बाद कैबिनेट विस्तार का फैसला शिवराज को ही करना है।
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Rakesh Agnihotri
political editor
स्वराजExpress MP/CG
देश को फसल बीमा योजना की सौगात देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्यप्रदेश के उन किसानों से रूबरू होंगे, जिनकी नजर में सबसे बड़े हिमायती, हमदर्द बड़े किसान नेता अभी तक सिर्फ और सिर्फ शिवराज सिंह चौहान थे जिन्होंने किसानों के लिए बहुत कुछ किया फिर भी समस्याओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है जिन्हें सिर्फ मुआवजे की ही दरकार नहीं है बल्कि वो खेती को फायदे का धंधा बनाए जाने का संकल्प लेने वाले मुख्यमंत्री से और भी िरयायतों के साथ समस्या का स्थायी समाधान समय रहते चाहते हैं। देखना दिलचस्प होगा कि 6 लाख किसानों के महाधिवेशन को जब पीएम और सीएम संबोधित करेंगे तो इससे किसानों का कितना, कैसे और कब तक भला होगा? चुनाव में बड़ी भूमिका निभाने वाले किसान वोट बैंक की अपेक्षाएं केंद्र और राज्य सरकार से लाजमी है फिर भी सवाल ये खड़ा होता है कि नमो-शिवाय की ये नई कैमेस्ट्री सियासत के मैदान में क्या गुल खिलाएगी जहां सियासी फसल काटने के लिए अन्नदाताओं को सरकारी खर्चे पर बुलाकर मोदी के दौरे को न सिर्फ यादगार और ऐतिहासिक बल्कि पीएम की प्रस्तावित 3 और रैलियों से अलग साबित करने की होड़ लग चुकी है।
देश में जब छात्र राजनीति में युवा जेएनयू के विवाद के बाद विचारधारा की आड़ में राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रद्रोह को लेकर आमने-सामने खड़े नजर आ रहे हैं तब पीएम नरेंद्र मोदी किसानों से रूबरू होंगे जिन्हें फसल बीमा योजना की सौगात देकर केंद्र सरकार को किसानों का शुभचिंतक साबित करेंगे। इसे संयोग ही कहेंगे कि मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया के जुमलों के बीच देश का सबसे सस्ता 251 रुपए में स्मार्ट फोन लांच कर सरकार युवाओं की नब्ज पर हाथ रख चुकी है। ऐसे में पीएम मोदी उस किसान को साधने की जुगत में हैं जिसे भड़काने के लिए राहुल गांधी ने भूमि अधिग्रहण बिल का माखौल उड़ाने के लिए मोदी सरकार को उद्योगपतियों की हिमायती और सूटबूट की सरकार का जुमला उछालकर एक ऐसी लकीर खींची थी कि मोदी सरकार को अपना महत्वाकांक्षा लैंड बिल वापस लेना पड़ा था। यानी मोदी का मकसद किसानों को भ्रमित करने वाली मां-बेटे वाली कांग्रेस को एक्सपोज करना है जिसके लिए वो बजट सत्र से पहले किसानों का सम्मेलन मध्यप्रदेश समेत देश के 4 राज्यों में करने जा रहे हैं। मध्यप्रदेश का सौभाग्य है कि इसका शुभारंभ सीएम शिवराज सिंह के गृह जिले सीहोर से होगा। खुद शिवराज सिंह ने फसल बीमा योजना के लिए अहम सुझाव दिए थे और आपदा पीड़ित प्रदेश के किसानों के लिए सरकार की औकात से बाहर यानी सीमित संसाधनों से आगे निकलकर फंड के जरिए उनके घावों पर मरहम लगाया था। बीजेपी के इतिहास में राजनाथ सिंह को अभी तक सबसे बड़े किसान नेता के तौर पर पार्टी प्रोजेक्ट करती रही है तो पिछले कुछ सालों में मध्यप्रदेश को चार बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिलने के साथ ही शिवराज एक बड़े किसान नेता के तौर पर उभरे और उनकी लोकप्रियता सूबे से बाहर भी चर्चा का विषय बनी।
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि लाखोें किसानों के सामने मंच पर नमो शिवाय की ये नई कैमेस्ट्री किसान मंच पर आखिर गुल खिलाती है। इसमें कोई दोराय नहीं कि मौका मध्यप्रदेश के लिए गौरव का है क्योंकि पीएम के अभिनंदन समारोह पर पूरे देश के किसानों की नजर रहेगी। लेकिन आज हम चर्चा मोदी और चौहान के बनते बिगड़ते रिश्तों से आगे दोनोें की समन्वयवादी सियासत की करेंगे और उसमें सामंजस्य की आड़ में सुविधा की उस राजनीति को भी टटोलने की कोशिश करेंगे जो अब एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है। बीजेपी आडवाणी युग से निकलकर मोदी युग में दाखिल क्या हुई समीकरण बदलते चले गए। मोदी की लोकप्रियता का डंका देश-दुनिया में जब बज रहा है तो शिवराज का जादू भी मध्यप्रदेश में लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है जिन्होंने केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद खुद को मध्यप्रदेश तक सीमित कर लिया है और मोदी-शाह के हर उस एजेंडे को दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे पहले लपककर आगे बढ़ा रहे हैं जिसने उन्हें हाईकमान की इस जोड़ी के बहुत करीब लाकर खड़ा कर दिया है। कभी नरेंद्र भाई और शिवराज भैया में प्रतिस्पर्धा लाने की आड़ में आडवाणी ने व्यक्तिगत िहत साधे थे तो लगा था कि मोदी के साथ चौहान भी पीएम के प्रबल दावेदारों में शामिल हैं। अब मोदी और चौहान खुद बहुत करीब हों लेकिन सियासी नजर से उनके बीच एक बड़ा फासला देखा जा सकता है। मोदी चुनाव जिताने वाले बड़े नेता बनकर उभरे थे लेकिन दिल्ली और बिहार की हार के बाद सूबे की राजनीति में बीजेपी को फिर ऐसे नेताओं की दरकार है जो जनता के बीच न सिर्फ लोकप्रिय हों बल्कि उनमें चुनाव जिताने का भी माद्दा हो। शायद मोदी ने भी अब ये मान लिया है कि मप्र में शिवराज का कोई विकल्प नहीं है और यदि उन्हें अगली बार भी पीएम बनना है तो मप्र से ज्यादा लोकसभा की सीटें हासिल करने के लिए सरकार यहां भी हर हाल में बीजेपी की बनाना होगी और ये काम शिवराज सिंह चौहान ही कर सकते हैं।
वह बात और है कि पिछले एक दशक में चौहान ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर किसी विकल्प को नहीं उभरने दिया। कई समकालीन नेता या तो हाशिये पर पहुंच गए या फिर उन्हें अलग-थलग कर ऐसी स्थिति बना दी कि वो सभी शिवराज की कृपा के मोहताज हो गए। सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर ऐसी कौन सी बूटी उनके पास है या कौन सी घुट्टी पी रखी है जो वो समय रहते न सिर्फ चुनौतियों के चक्रव्यूह से खुद को बाहर निकाल ले जाते हैं और निर्विवादित तौर पर जनता के बीच सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं। बड़ा सवाल ये है कि शिवराज में आखिर ऐसी खूबी क्या है िक कांग्रेस का नेता उनकी कमर तक नहीं पहुंच चुका और आडवाणी से लेकर मोदी भी शिवराज के मुरीद हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि नमो शिवाय की इस नई कैमेस्ट्री का बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में क्या असर पड़ता है। क्योंकि पहले ही अमित शाह शिवराज को उनकी पसंद का प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार के तौर पर दे चुके हैं तो मिले फ्रीहैंड के बाद कैबिनेट विस्तार का फैसला शिवराज को ही करना है।
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