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अब शिवराज की होगी हर तारीख पर नजर..

सवाल दर सवाल(राकेश अग्निहोत्री)
कैबिनेट विस्तार को लेकर अब मध्यप्रदेश में फिल्मी जुमला तारीख पर तारीख भले ही चर्चा का विषय बन गया हो लेकिन शिवराज के लिए आने वाली कई तारीख मायने रखती है। चाहे वो हनुवंतिया से लौटने के बाद जारी विभागों की समीक्षा का काम पूरा कर एक बार फिर कैबिनेट में नए चेहरों को शामिल और पुराने के काम-काज का नए सिरे से बंटवारा हो या फिर 12 फरवरी को वसंतपंचमी पर भोजशाला विवाद को नहीं पनपने देना ही क्यों न हो। सीएम शिवराज के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। आज मुद्दा यदि तारीख बना है तो फिर 23 फरवरी से शुरू होने वाले विधानसभा के बजट सत्र से पहले कई और तारीखें चौहान के लिए मायने रखती हैं। सवाल खड़ा होना लाजमी है कि क्या कुछ दिन पहले संघ की समन्वय बैठक के बाद नरेंद्र तोमर से चर्चा की शुरुआत कर पटवा और सारंग के दर पर यदि मुख्यमंत्री दस्तक दी थी तो आखिर उसका एजेंडा क्या था? क्या विस्तार की संभावनाएं बढ़ रही हैं? या फिर नंदूभैया की नई टीम में संघ के नुमाइंदे के तौर पर मेनन की मौजूदगी सुनिश्चित करने की रणनीति पर ये सब कुछ चिंतन और मंथन का हिस्सा था।
प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के संसदीय क्षेत्र खंडवा के नजदीक इंदिरा सागर बांध पर विकसित हो रहे हनुमंतिया टापू पर क्रूज बोट में कैबिनेट की बैठक कर वापस भोपाल लौटे शिवराज सिंह चौहान ने 23 फरवरी से शुरू हो रहे बजट सत्र का अपना एजेंडा सेट कर लिया है। बावजूद इसके कैबिनेट विस्तार की संभावनाओं पर अभी विराम नहीं लगा है या ये कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री ने सस्पेंस कायम रखकर लोगों की जिज्ञासा बढ़ा रखी है। फरवरी महीने की कुछ तारीखें शिवराज के लिए बहुत मायने रखती हैं। यदि उन्होंने कैबिनेट विस्तार का मन बना लिया है तो फिर उनके लिए 5, 6 और 7 फरवरी की तारीख मुफीद मानी जाएगी। उसके बाद आने वाला अगला पखवाड़ा किसी समस्या से कम नहीं होगा। 23 फरवरी से जब बजट सत्र शुरू होगा उसके पहले चुनौती की शुरुआत 12 फरवरी वसंतपंचमी को भोजशाला पर पूरे प्रदेश की नजर रहेगी जहां शुक्रवार को एक साथ सरस्वती पूजा और जुमे की नमाज सुनिश्चित कराने के लिए प्रशासन ने समय निर्धारित कर दिया है। 3 साल बाद एक ही दिन दो समुदाय के जमावड़े को देखते हुए सरकार ने यदि बड़ी संख्या में विशेष सुरक्षा बल की तैनाती कर दी है तो फिर इस मामले को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। भोजशाला विवाद को लेकर संघ भी यदि सक्रिय हो चुका है तो अल्पसंख्यकों की रणनीति को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है। बीजेपी खासतौर से शिवराज की सरकार रहते ऐसे आयोजन पर तनाव पहले भी बनता रहा है लेकिन मामले का पटाक्षेप भी शांतिपूर्वक हुआ। लेकिन इस बार पिछले दिनों अल्पसंख्यकों के बड़ी संख्या में कई शहरों में शक्ित प्रदर्शन के बाद सरकार के खूफिया तंत्र को लेकर जब सवाल खड़े हुए हैं और संघ-बीजेपी की समन्वय बैठक में ये मुद्दा चर्चा का विषय बना तो समझा जा सकता है कि वेलेंटाइन डे से पहले वसंतपंचमी सरकार के लिए मायने रखती है। वसंतपंचमी के बाद पूरी सरकार और बीजेपी के एजेंडे में मैहर उपचुनाव होगा जहां शिवराज झाबुआ उपचुनाव हारने के बाद प्रचार में ज्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं। लेकिन पार्टी यदि अंतिम दो दिन उनको प्रचार में उतारती है तो ये काम वसंतपंचमी के पहले उन्हें करना होगा। मैहर उपचुनाव से सीएम भले ही अपनी प्रतिष्ठा जोड़ने से बच रहे हों लेकिन इसके परिणाम जब 16 फरवरी को सामने आएंगे तो उसका महत्व बढ़ जाएगा। ये बात काफी हद तक तर्कसंगत है कि मैहर में बीजेपी से ज्यादा दखल कांग्रेस और दूसरे दल साबित करते रहे हैं और अपवादस्वरूप एकाध चुनाव को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर उसे हार का सामना करना पड़ा है यानी बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ ज्यादा नहीं है। कांग्रेस के कब्जेवाली सीट पर ही उसने कांग्रेस के ही पुराने उम्मीदवार पर दांव खेला है। मैहर का सुर्खियों में रहना लाजमी है। रिजल्ट के 2 दिन बाद ही पीएम नरेंद्र मोदी मप्र के दौरे पर आ रहे हैं। पीएमओ के हस्तक्षेप के बाद मोदी अब भोपाल की बजाए ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की सभा को संबोधित करेंगे। खबर है कि राजधानी के समीप अब सुषमा स्वराज के संसदीय क्षेत्र विदिशा को नजरअंदाज कर सीएम शिवराज के गृहजिले सीहोर का चयन किया गया है। सब कुछ ठीक रहा तो एक कॉलेज से लगे मैदान पर मोदी फसल बीमा योजना की अपनी सौगात की आड़ में उन किसानों का दिल जीतने की कोशिश करेंगे जिनमें भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर नाराजगी सियासी मुद्दा बन गया था। यूं तो मोदी इस बीमा योजना के प्रचार-प्रसार के लिए मप्र के अलावा देश में 3 और सभाएं करने जा रहे हैं। लेकिन उनके मप्र के इस दौरे को शिवराज सिंह चौहान को और मजबूत और ताकत देने से जोड़कर देखा जा रहा है। वह भी इसलिए क्योंकि शिवराज के 10 साल पूरे होने पर सभी कार्यक्रम निरस्त कर दिए गए थे और उस वक्त इसका कारण संकट में किसान बताया गया था। अब जबकि केंद्र मप्र को मुआवजे के पैकेज दे चुका है और शिवराज की सरकार रहते मप्र को लगातार चौथी बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिला है तो फिर किसानों की सभा जिसे मोदी संबोधित करेंगे नए समीकरणों को जन्म दे सकती है। मोदी पहले भी इंदौर, खंडवा के दौरे कर चुके हैं लेकिन अब उन्हें निर्वाचित अध्यक्ष के तौर पर अमित शाह का साथ अगले 3 साल के लिए मिल चुका है। अब सबको इंतजार है तो दिल्ली में शाह की कार्यकारिणी के ऐलान के साथ मोदी के प्रस्तावित कैबिनेट विस्तार का। इसलिए मप्र में भी नंदूभैया की नई टीम सामने आने के साथ शिवराज के मंत्रिमंडल विस्तार की। निगम-मंडलों में अपने चहेतों को लालबत्ती से नवाजे जाने के बाद यदि शिवराज को अपने इस काम को विस सत्र से पहले अंजाम देना है तो उनके लिए 5, 6, 7 और 8 फरवरी की तारीख एक विकल्प के तौर पर सामने होगी। देखना दिलचस्प होगा कि मोदी-शाह द्वारा मिले फ्रीहैंड के बाद शिवराज अपने पत्ते कब खोलते हैं और 2018 विधानसभा चुनाव की अपनी स्क्रिप्ट में किसे फिट कर खुद को हिट साबित करते हैं।

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