मोदी की नई टीम “सिहस्थ” से पहले या बाद
(राकेश अग्निहोत्री) | सवाल दर सवाल
पीएम नरेंद्र मोदी के उज्जैन दौरे जिसमें वो सिंहस्थ के वैचारिक महाकुंभ का समापन करेंगे, का महत्व और बढ़ गया है। महत्व इसलिए नहीं कि मोदी ने प्राकृतिक आपदा के बाद अपने दौरे को निरस्त नहीं किया और न ही अमित शाह की मौजूदगी में प्रस्तावित सामाजिक समरसता और विशेष स्नान को लेकर साधु संतों के बीच सामाने आ ही गुटबाजी के बाद भी वो उज्जैन आ रहे हैं, बल्कि इस दौरे का महत्व इसलिए और बढ़ गया है क्योंकि अब मोदी अपनी कैबिनेट का विस्तार करने जा रहे हैं, बावजूद इसके सवाल खड़ा होना लाजमी है कि क्या नरेंद्र मोदी 22 मई यानि सिहस्थ समापन तीसरे शाही स्नान के बाद या उज्जेन के 14 मई के अपने दौरे से लोटनेे के बाद कैबिनेट में फेरबदल करेंगे। क्या मोदी पूर्व में अपने द्वारा कही गई बात को प्रमाणित करेंगे कि कैबिनेट का पुनर्गठन किसी धमाके से कम नहीं होगा। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि 26 मई को 2 साल पूरे करने से पहले मोदी कैबिनेट का विस्तार करेंगे या फिर इंतजार नहीं करेंगे और 19 मई को जब 5 राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आने के वो नया सन्देश देंगे। इस विकल्प को अंतिम रूप काफी हद तक मंगलवार को उतराखंड के सदन में होने वाला बहुमत परीक्षण देगा।
संसद सत्र में हंगामे के बीच जब खासतौर से बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने हैं तब सबकी नजर लोकसभा जीत कर20 मई 2014 को बीजेपी और एनडीए के नेता चुने जाने वाले मोदी और उनकी सरकार के 26 मई को 2 साल पूरे होने पर होगी। जिस तरह से संसद से लेकर सड़क तक आरोप प्रत्यारोप के बीच घमासान मचा हुआ है और उसके बाद उम्मीद की जा रही है कि मोदी जनता को जरूर कुछ संदेश देना चाहेंगे। संदेश सरकार की उपलब्धियों को लेकर…तो संदेश अपनी नाकामियों को छुपाने…और विपक्ष को और कमजोर खासतौर से कांग्रेस को अलग-थलग साबित करने को लेकर भी िदया जा सकता है। क्योंकि जिस तरह मोदी सरकार के निशाने पर सोनिया, राहुल आ चुके हैं उसके बाद बीजेपी खासतौर से नरेंद्र मोदी पर दबाव बढ़ गया है कि वो एक साल पूरे होने पर सरकार को लेकर बनी छवि से सीख लेकर 2 साल पूरे होने पर कोई ऐसा धमाका जरूर करें जिससे यह संदेश जाए कि सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ नहीं गिरा है और वो बचे 3 साल में जनता की अपेक्षाओं को जरूर पूरा करेगी। उपलब्धियों के नाम पर विश्व में मोदी की बढ़ती लोकप्रियता और हिन्दुस्तान की साख और पहचान का हवाला वो दे सकती है तो देश की दूसरी सरकारों की तुलना में अपनी सरकार की दशा और दिशा को सही ठहराने के लिए वो अभी तक करप्शन के कोई आरोप नहीं लगने का दावा भी ठोक सकती है। जिसकी तुलना के लिए यू पी ए सरकार के भ्रस्ठाचार की मुहिम रोज नए गुल खिलाने लगी है।लेकिन यह भी सच है कि उसके पास जनता का भरोसा जीतने वाली ..मनरेगा या आरटीआई जैसी कोई योजना इतनी प्रभावी नहीं है कि वो विरोधियों द्वारा खड़े िकए गए सवाल का जवाब जनता की अदालत में दे सके। 56 इंच का सीना ठोकने वाले मोदी आज भी देश की आम जनता की पसंद बने हुए हैं लेकिन उन पर दबाव बढ़ता जा रहा है कि वो कुछ ऐसा करके दिखाएं जिससे यह संदेश जाए कि चुनाव आज हों या तीन साल बाद विरोधियों के िलए 7 रेसकोर्स का सपना देखना किसी गुनाह से कम नहीं होगा।
पीएम मोदी अच्छी तरह जानते हैं कि सूटबूट की सरकार के आरोप से बाहर निकलने में केंद्र सरकार का दूसरा बजट जिसमें किसानों पर फोकस किया गया है, उनकी धूमिल होती छवि में निखार ला सकता है लेकिन सिर्फ इससे काम नहीं चलेगा। शायद इसलिए सरकार से लेकर संगठन में एक बड़े ऑपरेशन की सुगबुगाहट तेज हो गई है जिसे बीजेपी विरोधी दल और गटबंधन ही नहीं बीजेपी शासित राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन से जोड़कर देखा जा रहा है। देखना दिलचस्प होगा िक मोदी जब अपनी कैबिनेट में फेरबदल करेंगे तब उसका आधार सिर्फ और सिर्फ मंत्रियों का परफॉर्मेंस होगा या फिर पिछले लोकसभा चुनाव में जाति धर्म और समुदाय से ऊपर उठकर िवकास के नाम पर वोट हासिल करने वाले मोदी जाति और क्षेत्रीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए फेरबदल करेंगे जिसका मकसद यूपी विधानसभा चुनाव में सरकार बनाना होगा।
दिल्ली के सियासी गलियारों से खबर आ रही है कि मोदी 19 और 26 मई के बीच फेरबदल की आड़ में एक बड़ा ऑपरेशन कर सकते हैं जिसके पहले चरण में मोदी की कैबिनेट होगी तो बाद में अमित शाह की टीम में बदलाव। सोच समझकर फैसले लेने वाले मोदी को यह सोचना है कि वो 5 राज्यों के चुनाव परिणाम का इंतजार करें जहां पश्चिम बंगाल में उसके लिए कोई बड़ी संभावना नहीं है तो केरल में खाता खोलने की उम्मीद के साथ उसने तमिलनाडु और पांडुचेरी से दूर असम में सरकार में आने के सपने संजो रखे हैं। असम में यदि वो सरकार नहीं बना पाई तो उसकी कोशिश त्रिशंकु के हालात में कांग्रेस को बाहर रखने की होगी। यानी बिहार के बाद यदि 5 राज्यों में भी कोई सफलता नहीं मिली तो मोदी सरकार पर विरोधियों का हमला ही नहीं बल्कि समूचे विपक्ष का लामबंद होना भी तय है। ऐसे में 19 मई को सामने आने वाले परिणाम मीडिया की सुर्खियां न बनें तो इस दिन मोदी अपनी कैबिनेट में फेरबदल कर सकते हैं जो 26 मई को 2 साल पूरे होने से पहले अपनी सरकार का आंकलन भी होगा तो 3 साल बाद होने वाले चुनाव की बिसात का पहला चरण जिसमें वो आम जनता का ध्यान पलटने के लिए कुछ मंत्रियों को दायें-बायें कर उनके विभाग में बदलाब कर नए चेहरों के शामिल कर नई बहस छेड़ सकते हैं।
देखना िदलचस्प होगा कि केंद्र में 2 साल की सरकार के खाते में जब हरियाणा और महाराष्ट्र जैसी जीत पर अधिकांश राज्यों में सत्ता से दूर बने रहने की हकीकत सामने है तब केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की आड़ में क्या मोदी बीजेपी शासित राज्यों खासतौर से राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के किसी सीएम को गोवा की सीएम रहते मनोहर पारिकर की तरह केंद्र में लाने का साहस जुटा पाएंगे। क्योंकि इससे पहले भी बिहार चुनाव में मिली हार ने इन राज्यों के नेताओं को मजबूती दी थी। उस वक्त मार्गदर्शक मंडल से जुड़े वरिष्ठ नेताओं ने एक बयान जारी किया था तो अब 5 राज्यों के चुनाव परिणाम आने से पहले बीजेपी ने भले ही सुब्रमण्यम स्वामी को राज्यसभा में लाकर उन्हें साध िलया है लेकिन अरुण शौरी जैसे नेता खुलकर मोदी को अहंकारी बताकर एक नई बहस छेड़ चुके हैं जिसके आने वाले दिनों में गरमाने के आसार हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि नरेंद्र मोदी उज्जैन की अपनी पूर्वनिर्धारित यात्रा जिसमें वो संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा शुरू किए गए वैचारिक महाकुंभ का समापन करेंगे उसके बाद दिल्ली लौट कर कैबिनेट का विस्तार करेंगे या फिर चुनाव परिणाम का इंतजार के साथ वो 26 मई को 2 साल पूरे के बाद ही बड़े फैसले लेंगे। सरकार में फेरबदल के बाद निकाले गए मंत्रियों को संगठन में एडजस्ट किया जा सकता है। सबसे बड़ा सवाल यहां यह खड़ा होता है कि क्या 22 मई यानी तीसरे शाही स्नान के पहले या फिर बाद कैबिनेट का विस्तार होगा?इससे भी बड़ा सवाल क्या संघ का दबाव और हस्तक्षेप इसमें नजर आयेगा याफिर बिहार में मिली हार के बाद मोदी राज्यों के क्षत्रपों की दम पर मिशन 19 के लिए आगे बढ़ने को मजबूर होंगे।यह फेर बदल शिवराज के लिए भी मायने रखता है जिनकी नै भूमिका को लेकर अटकले फिर जोरों पर है।
पीएम नरेंद्र मोदी के उज्जैन दौरे जिसमें वो सिंहस्थ के वैचारिक महाकुंभ का समापन करेंगे, का महत्व और बढ़ गया है। महत्व इसलिए नहीं कि मोदी ने प्राकृतिक आपदा के बाद अपने दौरे को निरस्त नहीं किया और न ही अमित शाह की मौजूदगी में प्रस्तावित सामाजिक समरसता और विशेष स्नान को लेकर साधु संतों के बीच सामाने आ ही गुटबाजी के बाद भी वो उज्जैन आ रहे हैं, बल्कि इस दौरे का महत्व इसलिए और बढ़ गया है क्योंकि अब मोदी अपनी कैबिनेट का विस्तार करने जा रहे हैं, बावजूद इसके सवाल खड़ा होना लाजमी है कि क्या नरेंद्र मोदी 22 मई यानि सिहस्थ समापन तीसरे शाही स्नान के बाद या उज्जेन के 14 मई के अपने दौरे से लोटनेे के बाद कैबिनेट में फेरबदल करेंगे। क्या मोदी पूर्व में अपने द्वारा कही गई बात को प्रमाणित करेंगे कि कैबिनेट का पुनर्गठन किसी धमाके से कम नहीं होगा। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि 26 मई को 2 साल पूरे करने से पहले मोदी कैबिनेट का विस्तार करेंगे या फिर इंतजार नहीं करेंगे और 19 मई को जब 5 राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आने के वो नया सन्देश देंगे। इस विकल्प को अंतिम रूप काफी हद तक मंगलवार को उतराखंड के सदन में होने वाला बहुमत परीक्षण देगा।
संसद सत्र में हंगामे के बीच जब खासतौर से बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने हैं तब सबकी नजर लोकसभा जीत कर20 मई 2014 को बीजेपी और एनडीए के नेता चुने जाने वाले मोदी और उनकी सरकार के 26 मई को 2 साल पूरे होने पर होगी। जिस तरह से संसद से लेकर सड़क तक आरोप प्रत्यारोप के बीच घमासान मचा हुआ है और उसके बाद उम्मीद की जा रही है कि मोदी जनता को जरूर कुछ संदेश देना चाहेंगे। संदेश सरकार की उपलब्धियों को लेकर…तो संदेश अपनी नाकामियों को छुपाने…और विपक्ष को और कमजोर खासतौर से कांग्रेस को अलग-थलग साबित करने को लेकर भी िदया जा सकता है। क्योंकि जिस तरह मोदी सरकार के निशाने पर सोनिया, राहुल आ चुके हैं उसके बाद बीजेपी खासतौर से नरेंद्र मोदी पर दबाव बढ़ गया है कि वो एक साल पूरे होने पर सरकार को लेकर बनी छवि से सीख लेकर 2 साल पूरे होने पर कोई ऐसा धमाका जरूर करें जिससे यह संदेश जाए कि सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ नहीं गिरा है और वो बचे 3 साल में जनता की अपेक्षाओं को जरूर पूरा करेगी। उपलब्धियों के नाम पर विश्व में मोदी की बढ़ती लोकप्रियता और हिन्दुस्तान की साख और पहचान का हवाला वो दे सकती है तो देश की दूसरी सरकारों की तुलना में अपनी सरकार की दशा और दिशा को सही ठहराने के लिए वो अभी तक करप्शन के कोई आरोप नहीं लगने का दावा भी ठोक सकती है। जिसकी तुलना के लिए यू पी ए सरकार के भ्रस्ठाचार की मुहिम रोज नए गुल खिलाने लगी है।लेकिन यह भी सच है कि उसके पास जनता का भरोसा जीतने वाली ..मनरेगा या आरटीआई जैसी कोई योजना इतनी प्रभावी नहीं है कि वो विरोधियों द्वारा खड़े िकए गए सवाल का जवाब जनता की अदालत में दे सके। 56 इंच का सीना ठोकने वाले मोदी आज भी देश की आम जनता की पसंद बने हुए हैं लेकिन उन पर दबाव बढ़ता जा रहा है कि वो कुछ ऐसा करके दिखाएं जिससे यह संदेश जाए कि चुनाव आज हों या तीन साल बाद विरोधियों के िलए 7 रेसकोर्स का सपना देखना किसी गुनाह से कम नहीं होगा।
पीएम मोदी अच्छी तरह जानते हैं कि सूटबूट की सरकार के आरोप से बाहर निकलने में केंद्र सरकार का दूसरा बजट जिसमें किसानों पर फोकस किया गया है, उनकी धूमिल होती छवि में निखार ला सकता है लेकिन सिर्फ इससे काम नहीं चलेगा। शायद इसलिए सरकार से लेकर संगठन में एक बड़े ऑपरेशन की सुगबुगाहट तेज हो गई है जिसे बीजेपी विरोधी दल और गटबंधन ही नहीं बीजेपी शासित राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन से जोड़कर देखा जा रहा है। देखना दिलचस्प होगा िक मोदी जब अपनी कैबिनेट में फेरबदल करेंगे तब उसका आधार सिर्फ और सिर्फ मंत्रियों का परफॉर्मेंस होगा या फिर पिछले लोकसभा चुनाव में जाति धर्म और समुदाय से ऊपर उठकर िवकास के नाम पर वोट हासिल करने वाले मोदी जाति और क्षेत्रीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए फेरबदल करेंगे जिसका मकसद यूपी विधानसभा चुनाव में सरकार बनाना होगा।
दिल्ली के सियासी गलियारों से खबर आ रही है कि मोदी 19 और 26 मई के बीच फेरबदल की आड़ में एक बड़ा ऑपरेशन कर सकते हैं जिसके पहले चरण में मोदी की कैबिनेट होगी तो बाद में अमित शाह की टीम में बदलाव। सोच समझकर फैसले लेने वाले मोदी को यह सोचना है कि वो 5 राज्यों के चुनाव परिणाम का इंतजार करें जहां पश्चिम बंगाल में उसके लिए कोई बड़ी संभावना नहीं है तो केरल में खाता खोलने की उम्मीद के साथ उसने तमिलनाडु और पांडुचेरी से दूर असम में सरकार में आने के सपने संजो रखे हैं। असम में यदि वो सरकार नहीं बना पाई तो उसकी कोशिश त्रिशंकु के हालात में कांग्रेस को बाहर रखने की होगी। यानी बिहार के बाद यदि 5 राज्यों में भी कोई सफलता नहीं मिली तो मोदी सरकार पर विरोधियों का हमला ही नहीं बल्कि समूचे विपक्ष का लामबंद होना भी तय है। ऐसे में 19 मई को सामने आने वाले परिणाम मीडिया की सुर्खियां न बनें तो इस दिन मोदी अपनी कैबिनेट में फेरबदल कर सकते हैं जो 26 मई को 2 साल पूरे होने से पहले अपनी सरकार का आंकलन भी होगा तो 3 साल बाद होने वाले चुनाव की बिसात का पहला चरण जिसमें वो आम जनता का ध्यान पलटने के लिए कुछ मंत्रियों को दायें-बायें कर उनके विभाग में बदलाब कर नए चेहरों के शामिल कर नई बहस छेड़ सकते हैं।
देखना िदलचस्प होगा कि केंद्र में 2 साल की सरकार के खाते में जब हरियाणा और महाराष्ट्र जैसी जीत पर अधिकांश राज्यों में सत्ता से दूर बने रहने की हकीकत सामने है तब केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की आड़ में क्या मोदी बीजेपी शासित राज्यों खासतौर से राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के किसी सीएम को गोवा की सीएम रहते मनोहर पारिकर की तरह केंद्र में लाने का साहस जुटा पाएंगे। क्योंकि इससे पहले भी बिहार चुनाव में मिली हार ने इन राज्यों के नेताओं को मजबूती दी थी। उस वक्त मार्गदर्शक मंडल से जुड़े वरिष्ठ नेताओं ने एक बयान जारी किया था तो अब 5 राज्यों के चुनाव परिणाम आने से पहले बीजेपी ने भले ही सुब्रमण्यम स्वामी को राज्यसभा में लाकर उन्हें साध िलया है लेकिन अरुण शौरी जैसे नेता खुलकर मोदी को अहंकारी बताकर एक नई बहस छेड़ चुके हैं जिसके आने वाले दिनों में गरमाने के आसार हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि नरेंद्र मोदी उज्जैन की अपनी पूर्वनिर्धारित यात्रा जिसमें वो संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा शुरू किए गए वैचारिक महाकुंभ का समापन करेंगे उसके बाद दिल्ली लौट कर कैबिनेट का विस्तार करेंगे या फिर चुनाव परिणाम का इंतजार के साथ वो 26 मई को 2 साल पूरे के बाद ही बड़े फैसले लेंगे। सरकार में फेरबदल के बाद निकाले गए मंत्रियों को संगठन में एडजस्ट किया जा सकता है। सबसे बड़ा सवाल यहां यह खड़ा होता है कि क्या 22 मई यानी तीसरे शाही स्नान के पहले या फिर बाद कैबिनेट का विस्तार होगा?इससे भी बड़ा सवाल क्या संघ का दबाव और हस्तक्षेप इसमें नजर आयेगा याफिर बिहार में मिली हार के बाद मोदी राज्यों के क्षत्रपों की दम पर मिशन 19 के लिए आगे बढ़ने को मजबूर होंगे।यह फेर बदल शिवराज के लिए भी मायने रखता है जिनकी नै भूमिका को लेकर अटकले फिर जोरों पर है।
(लेखक स्वराज एक्सप्रेस मप्र/छग के पॉलिटिकल एडिटर हैं)

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