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बीजेपी, दलित एजेंडा और अवधेशानंद

राकेश अग्निहोत्री | सवाल दर सवाल

आध्यात्म गुरु स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज सिंहस्थ में बीजेपी के नए ब्रांड एम्बेस्डर बन कर उभरे हैं। जिनकी लोकप्रियता आम लोगों से ज्यादा खास लोगों के बीच खास तौर से सियासत दारों के सिर चढ़कर बोल रही है। इसे राजनेताओं का समर्पण कहें या फिर सम्मान देने की आड़ में अपना सियासी कद बढ़ाने की मंशा जो भी हो लेकिन ये सच है कि आस्था के इस महाकुंभ में अखाड़ा परिषद से लेकर शंकराचार्य भी जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि के आभामंडल के आगे नहीं टिक पाये हैं। वह बात और है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सभी साधु-संतों और योग गुरु को जो सम्मान दिया है उसके बाद कोेई शिकवा-शिकायत की स्थिति में नहीं हैं। सवाल खड़ा होना लाजमी है जब सिंहस्थ निर्णायक दौर में प्रवेश कर चुका है और सियासत रोज नऐ गुल खिला रही है तब यदि उपलब्धियों का आकलन बीजेपी करेगी तो उसके खाते में अवधेशानंद गिरि एक बड़ी उपलब्धि से कम नहीं होगी जो शायद बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर को सोचने को जरूर मजबूर करेंगे। बड़ा सवाल यह है कि बीजेपी के दलित एजेंडे को सामाजिक समरसता की आड़ में अमित शाह के साथ यदि अवधेशानंद यदि आगे बढ़ा रहे है तो इससे संदेश क्या जायेगा।

सिंहस्थ में तेरह अखाड़ो से जुडे साधु-संतो ंके अलावा शंकराचार्य और धर्म की दुहाई देने वाली दूसरी बड़ी हस्तियों का यहाॅ आना जाना लगा है। जिनके दर पर दस्तक देने में राजनेताओ में मानों होड़ सी लगी है। इस दौड में मानों बीजेपी ने दूसरे दलों को पीछे छोड़ दिया है। दिग्विजय सिंह,ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरुण यादव जैसे कांग्रेस के दिग्गज मानो अपनी मौजूदगी दर्ज कराने तक सिमट गए जबकी बीजेपी के पुरोधा यहाॅ शाही हो या पर्व स्नान डुबकी लगाकर अपने सियासी हित साधने में बाज नहीं आ रहे हैं। साधु-संतों और आध्यात्म योग गुरु की फेहरिस्त भले ही लम्बी हो लेकिन अवधेशानंद गिरि इसके केन्द्र बिंदु बन चुके हंै। कभी स्वर्गीय अर्जुन सिंह और बाद में अजय सिंह ने कथावाचक के तौर पर जिन्हें मध्यप्रदेश में एक नई पहचान दी आज वो अवधेशानंद गिरि की बीजेपी मुरीद हो गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ग्रह ग्राम जैत हो या फिर दूसरे नेताओं के क्षेत्र में इन आध्यात्म गुरु की धमक देखने लायक है। मध्यप्रदेश में जिन धर्मगुरुओं की सियासत में दखल मानी जाती है या सियासतदार जिनके भक्त हैं उनमंे अभी तक गिनती शिवलिंग निर्माण की मुहिम चला रहे दद्दाजी देव प्रभाकर शास्त्री के साथ कथावाचक कन्केश्वरी देवी की गिनती सबसे आगे होती रही तो उत्तम स्वामी भी इसमें शामिल हो चुके हैं जिनका बीजेपी नेताओं से जुड़ाव छुपा नहीं है जबकि शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद के प्रति कांग्रेस नेताओं का झुकाव चर्चा में रहा है। यहाॅ बात मध्यप्रदेश की सियासत में दखल रहने वाले धर्म गुरुओं की हो रही है जिनके मुरीद दूसरे राज्यों में भी खूब हैं। सिंहस्थ शुरू होने से पहले जो सुर्खियां अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रहते नरेन्द्र गिरि ने बटोरी थी वो अब अवधेशानंद गिरि का समर्थन करने के बजाय उनके सामने खड़े नजर आ रहे हैं। कारण सामाजिक समरसता के लिए होने जा रहा वो स्नान है जिसमें बाल्मीकि समाज की अगुवाई में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह लाव लश्कर के साथ बुधवार को मौजूद रहेंगे। इस विशेष स्नान को लेकर साधु-संत जब बट चुके हंै और शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद को भी एतराज है तब अवधेशानंद बीजेपी के शहंशाह के साथ नजर आयेंगे। यही नहीं सिंहस्थ का विशेष आकर्षण जिसे संघ के एजेंडे से जोड़कर देखा जा रहा है उसके शुभांरभ के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ अवधेशानंद मंच साजा करेंगे जिसमें देश विदेश की हस्तियाॅ शामिल होंगी और जिसका समापन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे। मेला क्षेत्र में अवधेशानंद का पंडाल आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है जहाॅ कथा और प्रवचन के बीच गुरु दीक्षा लेने की होड में वी आई पी भी देखे जा सकते हंै। ये पहला मौका नहीं है जब अवधेशानंद बीजेपी द्वारा सिंहस्थ के दौरान बीजेपी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। इससे पहले युवा संसद में उनकी मौजूदगी चर्चा का विषय बन चुकी है जिसमें शामिल होने के लिए बीजेपी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग ठाकुर उज्जैन आये थे। गीता महोत्सव का कार्यक्रम हो या फिर अखाड़ा परिषद के संयुक्त कार्यक्रम में साधु संतों के साथ उनका संवाद हुुआ।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अपनी धर्म पत्नि साधना सिंह के साथ अवधेशानंदजी के आश्रम में न सिर्फ रुके बल्कि उनका यहाॅ निरंतर आना जाना बना हुआ है तो बीजेपी के सभी दिग्गज यहाॅ हाजिरी लगाना नहीं भूलते हंै। पहले शाही स्नान का आगाज जूना अखाड़ा की अगुवाई में हुआ था तो इनकी पेशवाई में खासतौर से भाग लेने के लिए मुख्य मंत्री अपनी पत्नि के साथ पहुॅचे थे। यह कहना गलत नहीं होगा कि आम लोगों से ज्यादा खास लोगों के नजर आ रहे आध्यात्म गुरु अवधेशानंदजी का जलवा और रुतवा देखने लायक है। मध्य प्रदेश से इनका लगाव छुपा नहीं है लेकिन जिस तरह सियासतदारों के केन्द्र बिंदु बन कर उभरे हैं उससे उनका बीजेपी प्रेम कुछ ज्यादा ही चर्चा में है जिसे वो अब शायद छुपाना भी नहीं चाहते। गुरु गंभीर व्यक्तित्व के धनी अवधेशानंद गिरि महाराज के बारे में कहा जाता है कि हिमालय की कंदराओं में गहन साधना और संन्यास लेने के साथ जिस तरह उन्होंने शास्त्रों और वेदों में अपनी पकड़ साबित की वो उन्हें दूसरे कथावाचकों के बीच अलग खड़ा करता है। वह बात और है कि राधे माॅ को महामण्डलेश्वर की उपाधि देने के दौरान वो विवादों में भी आ गए थे लेकिन इस हाई प्रोफाइल कथावाचक ने आम जनता के बीच में अपनी छवि के साथ नेताओं और उघोगपतियों के बीच लोकप्रियता साबित की है उसने उन्हें बीजेपी और संघ के बहुत करीब ला दिया है जहाॅ पहले से ही बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर जैसे शुभचिंतक मौजूद हंै। देखना दिलचस्प होगा कि संघ के चहेते इस संत का सिंहस्थ में दखल उनकी बहुमुखी प्रतिभा मे ं इजाफा करता है तो किस हद तक क्योंकि वैचारिक तौर पर बीजेपी और संघ के विरोधी अवधेशानंद को इस सोच के दायरे से बाहर देखना चाहते हैं। ऐसे में जात न पूछे साधु की बात को यदि ध्यान में रखा जाये तो सामाजिक समरसता के नाम पर इस विशेष स्नान के जरिये जिसने दलित एजेंडा को बढ़sssाया जा रहा उसमें अवधेशानंद गिरि की अमित शाह के साथ मौजूदगी एक नई बहस को जन्म दे सकती है तो निहितार्थ निकाले जाना भी लाजमी है।
(लेखक स्वराज एक्सप्रेस मप्र/छग के पॉलिटिकल एडिटर हैं)

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