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अभी तक नहीं खोदे गए गड्ढे ऐसे में कैसे आएगी जंगल में हरियाली

सतना : यूं तो पूरे वर्ष वन विभाग जंगल के घनत्व को बढ़ाने और हरियाली लाने का संदेश जंगल से लेकर स्कूल,कॉलेज तक देता है लेकिन वहीं इसके विपरीत वह खुद ही इस कार्य में पीछे हो जाता है। इस बार भी ऐसा ही कुछ दिखलाई पड़ रहा है। अगले महीने से पौधरोपण का कार्य शुरू होना है और अभी तक कई रेंजों में गड्ढे तक नहीं खोदे गए हैं। हालांकि अधिकारी समय रहते गड्ढे खोदे जाने की बात कह रहे हैं परन्तु मौजूदा समय में जो कार्यशैली दिखाई पड़ रही है उससे उम्मीद कम नजर आ रही है।
जून -जुलाई में वन विभाग जंगल में नए पौधे लगाने का काम प्रत्येक वर्ष शुरू करता है। पौधरोपण के लिए शासन की तरफ से अच्छा खासा न सिर्फ बजट आता है बल्कि पौधे भी आते हैं। गत वर्ष चित्रकूट के पालदेव, मैहर, मझगवां को छोड़ दिया जाए तो बाकी रेंजों में सिर्फ औपचारिकताएं ही निभाई गर्इं। यही हालात वर्तमान में भी दिखाई पड़ रहे हैं।

कई रेंज में नहीं खुदे गड्ढे : मई का महीना समाप्ति की ओर है और अभी तक पूरी रेंज में नए पौधों को लगाने के लिए गड्ढे खुद जाने चाहिए थे। मगर दो -तीन रेंजों को छोड़ दिया जाए तो कहीं भी गड्ढे खोदे जाने की शुरुआत तक नहीं हुई है। सिंहपुर में गड्ढे खुदाई का कार्य जिस प्रकार से किया जा रहा है उसकी गति को देखते हुए नहीं लग रहा है कि समय से पूर्व मापदण्ड के अनुसार गड्ढे खुद पाएंगे। यही हाल उचेहरा के परसमनिया महाराजपुर,धनिया बीट का भी दिखलाई पड़ रहा है। मैहर रेंज में अभी सिर्फ साफ-सफाई का कार्य चालू किया गया है। बताया जाता है कि संदिग्ध गतिविधियों के चलते यहां पदस्थ रहे रेंजर एसएस पटेल का तबादला कर दिया गया है और उनके स्थान पर अमरपाटन वन परिक्षेत्राधिकारी गणेश कुमार उइके प्रभार पर हैं। एक रेंजर के पास दो रेंज की कमान होने की वजह से शासकीय कार्यों में लेटलतीफी हो रही है।

नहीं हो पाई मृत पौधों की गिनती : पिछले साल मैहर रेंज के आल्हा अखाड़ा के पास तत्कालीन वन परिक्षेत्राधिकारी एसएस पटेल ने सभी नियमों को दरकिनार करते हुए जहां प्रतिबंधित यूकेलिप्टस के करीब 
250 पौधों का रोपण कर दिया था तो वहीं कई मिश्रित प्रजाति के पौधों का रोपण किया गया था। यहां पर रोपे गए कई पौधे रखरखाव के अभाव में मृत हो गए। लेकिन इसकी जानकारी उस समय रहे रेंजर ने विभाग प्रमुख को देना उचित नहीं समझा। लिहाजा यहां की हरियाली कागजों में दिखाई पड़ती रही और वन परिक्षेत्राधिकारी ने शासन के बजट को खुर्दबुर्द कर दिया। इसी प्रकार मझगवां रेंज के बांका, चितहरा आदि जगहों पर सिर्फ सरकारी फाइलों में हरियाली दफन होकर रह गई।

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