लक्ष्य साधने में कलेक्टर बन रहे हैं हिटलर
भोपाल। मप्र के विंध्यक्षेत्र के सतना, सीधी, रीवा, अनूपपुर तथा शहडोल जिलों में शौचालय निर्माण के लक्ष्य को लेकर जिला प्रशासन की संजीदगी अब सरकारी महकमों के कारिंदों एवं आम जनता भारी पड़ती जा रही है। लक्ष्य पूरा करने की धुन में हिटलर बने जिला कलेक्टरों की मनमानी से अब जिलों के कर्मचारी भी परेशान हंै। सरकारी कर्मचारियों को अतिआवश्यक कारणों से भी एक दिन का अवकाश मांगने पर निलंबित करने या संबंधित दिवस का वेतन काटने की मानसिक प्रताडऩा से गुजरना पड़ रहा है।
विंध्य क्षेत्र की सीधी जिले में पदस्थ कलेक्टर विशेष गढ़पाले की कार्यशैली को स्थानीय निवासी कुछ इसी तरह देख रहे हैं। जिले को खुले में शौचालय मुक्त करने की मुहिम में बाकी विकास कार्य पीछे हो गए हैं। पानी, बिजली और सड़क जैसी तीन मूलभूत आवश्यकताओं में सबसे महत्वपूर्ण पानी को लेकर गंभीर होने की जगह पूरा प्रशासनिक अमला शौचालय निर्माण के लक्ष्य को साधने में लगा हुआ है। सरकार के सभी विभागों के कर्मचारियों की डयूटी का मु य फोकस वर्तमान में स्वच्छ भारत मिशन में केंद्रित कर दिया गया है। हालांंकि इसके पीछे सीधी कलेक्टर विशेष गढ़पाले का तर्क है कि हम तो सिर्फ जनता की सोच बदलने का प्रयास कर रहे हैं। लोग मीलों से अपने निस्तार के लिए पानी ले जाते हैं तो उन्हें एक बाल्टी पानी ही तो इसके लिए लाना है। इसके लिए अलग से किसी संसाधन की जरूरत नहीं पड़ेगी। कलेक्टर के प्रयास से इतर ना छापने की शर्त पर सीधी जिले के कुछ महत्वपूर्ण विभाग के मुखिया अफसरों ने कलेक्ट्रेट परिसर में चर्चा के दौरान कहा कि कलेक्टर की धुन के कारण अब नौकरी से त्यागपत्र देने की इच्छा हो रही है।
उन्होंने बताया कि पिछले तीन माह से अवकाश मांगने पर सिवाय फटकार के कुछ नहीं मिलता। गर्मी प्रारंभ होते ही प्रदेश के दो दर्जन जिलों में पेयजल को लेकर गंभीर स्थितियां रही है, उनमें से सीधी सहित रीवा एवं शहडोल, सतना तथा अनूपपुर जैसे जिले शामिल रहे हैं। कुछ इसी तरह के हालात सीधी के पड़ौसी जिले रीवा और सतना में भी है। रीवा कलेक्टर राहुल जैन एवं सतना कलेक्टर नरेश पाल ने भी स्वच्छ भारत मिशन को लेकर जो सक्रियता दिखाई है उनसे जिले के दूसरे कार्य पीछे छूट गए हैं।
व्यवहारिक पक्ष की हो रही अनदेखी
निर्मल भारत मिशन के तहत देश और प्रदेश को खुले में शौच से मुक्त करने की मुहिम में केंद्र तथा राज्य सरकार ने इसके व्यवहारिक पक्ष को लेकर कोई कार्ययोजना नहीं बनाई। खुले में शौच से मुक्त करने की मुहिम में सबसे बड़ी आवश्यकता पानी की होने के बावजूद सरकार ने इस ओर कोई ठोस प्रयास नहीं किए। मध्यप्रदेश के 12 हजार 283 गांवों के 48 लाख किसान जो इस बार भीषण सूखे की चपेट में रहे हैं उनके लिए पेयजल प्रबंधन का माकूइ इंतजाम करने की बजाय प्रदेश सरकार स्वच्छ भारत मिशन का लक्ष्य थोपती रही। पेयजल संकट से जूझ रहे मध्यप्रदेश को 21 जिलों की 46 तहसीलों को सूखा ग्रस्त घोषित कर दिया है। जिनमें विंध्य क्षेत्र के सीधी जिले की कुशमी, सतना की नागौद तथा अनुपपुर जिले के जैतहरी तहसील शामिल हैं। इस स्थिति में जिलों के कलेक्टरों की मुहिम जिले की जनता के लिए जी का जंजाल साबित हो रहा है।
क्यो बनाई योजना
निर्मल भारत मिशन का उद्देश्य 1.04 करोड़ परिवारों को लक्षित करते हुए 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय और प्रत्येक जिले में एक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा प्रदान करना है। इस कार्यक्रम में खुले में शौच, अस्वच्छ शौचालयों को लश शौचालय में परिवर्तित करने, मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन करने, नपा ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और स्वस्थ एवं स्वच्छता से जुड़ी प्रथाओं के संबंध में लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाना आदि। अभियान के तहत देश में लगभग 11 करोड़ 11 लाख शौचायलों का निर्माण के लिए एक लाख चौतीस हजार करौड़ खर्च किए जाने के साथ ही बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी का उपयोग कर ग्रामीण भारत में कचरे के इस्तेमाल को पूंजी का रुप देते हुए जैव उर्वरक और ऊर्जा के विभिन्न रूपों में परिवर्तित करने के लिए किया जाना है।
नहीं हो रहा उद्देश्य पूरा
दरअसल निर्मल भारत अभियान कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के लिए मांग आधारित एवं जन केंद्रित अभियान है, जिसमें लोगों को स्वच्छता संबंधी आदतों को लेकर बेहतर बनाना, स्व सुविधााओं की मांग उत्पन्न करना और स्वच्छता सुविधाओं को उपलब्ध करना , जिससे ग्रामीणों के जीवन स्तर को बेहतर बनाया जा सके। लेकिन इसके विपरीत जिलों के कलेक्टर अभियान के तहत एक सूत्रीय रूप में शौचालय निर्माण में लगे हैं। पर इस अभियान के लिए आवश्यक पेयजल प्रबंधन पर किसी हुक्मरान का कोई फोकस नहीं है। शासन स्तर पर भी इस अभियान के लिए जिस तेजी से शौचालय निर्माण के लिए अनिवार्य रूप से जिले के कलेक्टरों को टारगेट दिए गए हैं उस हिसाब से शहरी एवं ग्रामीण भारत अभियान की सफलता के लिए महत्वपूर्ण एक पहले को दरकिनार कर योजना की सफलता का खाका कैसे तैयार किया जा सकता है।
फैक्ट फाइल
-प्रदेश के आधे से ज्यादा बांधों में 10 प्रतिशत बचा पानी
-मध्यप्रदेश के तालाबों में 8.9 पाइंट पानी ही बचा
-मप्र में पीने योग्य पानी 46 प्रतिशत ही है
-प्रदेश के 100 कुओं में से 45 कुओं में पानी बचा
जल संकट पर एक नजर
व्यवहारिक पक्ष की हो रही अनदेखी
निर्मल भारत मिशन के तहत देश और प्रदेश को खुले में शौच से मुक्त करने की मुहिम में केंद्र तथा राज्य सरकार ने इसके व्यवहारिक पक्ष को लेकर कोई कार्ययोजना नहीं बनाई। खुले में शौच से मुक्त करने की मुहिम में सबसे बड़ी आवश्यकता पानी की होने के बावजूद सरकार ने इस ओर कोई ठोस प्रयास नहीं किए। मध्यप्रदेश के 12 हजार 283 गांवों के 48 लाख किसान जो इस बार भीषण सूखे की चपेट में रहे हैं उनके लिए पेयजल प्रबंधन का माकूइ इंतजाम करने की बजाय प्रदेश सरकार स्वच्छ भारत मिशन का लक्ष्य थोपती रही। पेयजल संकट से जूझ रहे मध्यप्रदेश को 21 जिलों की 46 तहसीलों को सूखा ग्रस्त घोषित कर दिया है। जिनमें विंध्य क्षेत्र के सीधी जिले की कुशमी, सतना की नागौद तथा अनुपपुर जिले के जैतहरी तहसील शामिल हैं। इस स्थिति में जिलों के कलेक्टरों की मुहिम जिले की जनता के लिए जी का जंजाल साबित हो रहा है।
क्यो बनाई योजना
निर्मल भारत मिशन का उद्देश्य 1.04 करोड़ परिवारों को लक्षित करते हुए 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय और प्रत्येक जिले में एक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा प्रदान करना है। इस कार्यक्रम में खुले में शौच, अस्वच्छ शौचालयों को लश शौचालय में परिवर्तित करने, मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन करने, नपा ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और स्वस्थ एवं स्वच्छता से जुड़ी प्रथाओं के संबंध में लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाना आदि। अभियान के तहत देश में लगभग 11 करोड़ 11 लाख शौचायलों का निर्माण के लिए एक लाख चौतीस हजार करौड़ खर्च किए जाने के साथ ही बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी का उपयोग कर ग्रामीण भारत में कचरे के इस्तेमाल को पूंजी का रुप देते हुए जैव उर्वरक और ऊर्जा के विभिन्न रूपों में परिवर्तित करने के लिए किया जाना है।
नहीं हो रहा उद्देश्य पूरा
दरअसल निर्मल भारत अभियान कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के लिए मांग आधारित एवं जन केंद्रित अभियान है, जिसमें लोगों को स्वच्छता संबंधी आदतों को लेकर बेहतर बनाना, स्व सुविधााओं की मांग उत्पन्न करना और स्वच्छता सुविधाओं को उपलब्ध करना , जिससे ग्रामीणों के जीवन स्तर को बेहतर बनाया जा सके। लेकिन इसके विपरीत जिलों के कलेक्टर अभियान के तहत एक सूत्रीय रूप में शौचालय निर्माण में लगे हैं। पर इस अभियान के लिए आवश्यक पेयजल प्रबंधन पर किसी हुक्मरान का कोई फोकस नहीं है। शासन स्तर पर भी इस अभियान के लिए जिस तेजी से शौचालय निर्माण के लिए अनिवार्य रूप से जिले के कलेक्टरों को टारगेट दिए गए हैं उस हिसाब से शहरी एवं ग्रामीण भारत अभियान की सफलता के लिए महत्वपूर्ण एक पहले को दरकिनार कर योजना की सफलता का खाका कैसे तैयार किया जा सकता है।
फैक्ट फाइल
-प्रदेश के आधे से ज्यादा बांधों में 10 प्रतिशत बचा पानी
-मध्यप्रदेश के तालाबों में 8.9 पाइंट पानी ही बचा
-मप्र में पीने योग्य पानी 46 प्रतिशत ही है
-प्रदेश के 100 कुओं में से 45 कुओं में पानी बचा
जल संकट पर एक नजर
22 हजार 686 हैंडपंप प्रदेश में बंद
10 हजार 306 हैंडपंप सुधार लायक नहीं
15058 में से 2436 नल जल येाजनाएं बंद
9320 हैंडपंप भूजल स्तर कम होने से बंद
इनका कहना है
निर्मल भारत अभियान केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना है। खुले में शौच से देश व प्रदेश को मुक्त करने की बड़ी जरूरत है। जहां पानी की समस्या है, सरकार वहां पेयजल परिवहन से पानी उपलब्ध करा रही है।गोपाल भार्गव, मंत्री पंचायत एवं ग्रामीण
निर्मल भारत अभियान केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना है। खुले में शौच से देश व प्रदेश को मुक्त करने की बड़ी जरूरत है। जहां पानी की समस्या है, सरकार वहां पेयजल परिवहन से पानी उपलब्ध करा रही है।गोपाल भार्गव, मंत्री पंचायत एवं ग्रामीण
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