गोटिया ने डुबाई लुटिया....!
शिवराज को हुआ चौतरफा नुकसान
राज्यसभा चुनाव में भाजपा आलाकमान का दांव मध्यप्रदेश में पार्टी के लिये उलटा पड़ गया। अपर हाउस में संख्या बल में इजाफे के लिये इस तरह का प्रयोग कुछ अन्य राज्यों में भी किया गया, लेकिन तमाम प्रयास असफल रहे। मध्यप्रदेश में तीन सीटों के लिये चुनाव थे। विधानसभा में सदस्यों की संख्या के मान से दो सीटें भाजपा को मिलना तय थीं। तीसरी सीट के लिये कांग्रेस के पास आवश्यक 58 वोटों की बजाय 57 वोट थे। नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे गंभीर रूप से बीमार हैं। कांग्रेस के एक अन्य विधायक रमेश पटेल जेल में थे। इन सब गणित को ध्यान में रखते हुए बीजेपी नेतृत्व ने पांसा फेंका, लेकिन बाजी उलट गई। चुनाव कमलनाथ वर्सेस शिवराज सिंह चौहान हो गया था। विनोद गोटिया की हार से मध्यप्रदेश भाजपा के सबसे चमकीले चेहरे शिवराज सिंह चौहान को चौतरफा नुकसान हुआ।
राज्यसभा की तीन सीटों में दो बिना संकट सत्तारूढ़ दल के खाते में जाना थी, लिहाजा भाजपा ने अनिल माधव दवे और एम जे अकबर को उम्मीदवार घोषित किया था। उधर कांग्रेस ने सीनियर एडव्होकेट और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व एटार्नी जनरल विवेक तन्खा को टिकट दिया था। अंदर की बात यह थी कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भाजपा का तीसरा प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारने के पक्ष में नहीं थे। चूंकि निर्देश पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के थे, लिहाजा मन मसोसकर स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर भाजपा के प्रदेश पदाधिकारी विनोद गोटिया को मैदान में उतारा गया। गोटिया को लेकर भाजपा का हरेक दांव विफल साबित हुआ। तीसरी वरीयता के लिये भाजपा के पास 50 वोट थे। बहुजन समाज पार्टी के चार और तीन निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर दांव खेलने की उसकी रणनीति थी। कांग्रेस में कई बार तोड़फोड़ में सफल रही प्रदेश भाजपा, पुरानी बाजी दोहराने के भी मूड में थी। उसका एक गणित यह भी था कि खुद अपने 50 वोट के अलावा तीन निर्दलीयों के वोट में आसानी से सेंधमारी हो जायेगी। बसपा के चार वोटों को लेकर भी उसे पूरी उम्मीद थी। समीकरण यह भी बन रहा था कि कुछ वोट कम हुए तो कांग्रेस के तय 57 वोटों में गंभीर रूप से बीमार सत्यदेव कटारे और रेप के आरोप में जेल में बंद कांग्रेस विधायक को वोट से वंचित करते हुए भी बाजी जीती जा सकती है।
गणित सही था, लेकिन भाजपा के पक्ष में कुछ भी सही नहीं हुआ। कांग्रेस के किंगमैकर के तौर पर ख्यात वरिष्ठ नेता कमलनाथ को नैया का खैवय्या बनाया गया था। उन्होंने बेजोड़ काम किया। सबसे पहले तो नाथ ने बसपा सुप्रीमो मायावती से अपने पुराने रिष्तों को कैष कराया। बसपा विधायकों को हाथ के साथ करने में परदे के पीछे दिग्विजय सिंह का रोल भी अहम रहा। बहनजी (मायावती) का फरमान मिला कि वोट तन्खा के पक्ष में करना है। कांग्रेस के इस दांव से भाजपा के हौंसले शुरूआती दौर में ही बुरी तरह पस्त हो गये। तन्खा के रिलेषन्स भी रंग लाये। कोर्ट ने सत्यदेव कटारे को डाक के जरिये वोट करने की अनुमति दी। जेल में बंद बड़वानी के कांग्रेस विधायक रमेष पटेल को भी वोट के लिये जमानत मिल गई। भाजपा ने तमाम जोर लगाया, लेकिन कांग्रेस विधायकों (कटारे और पटेल) के वोटों को वो रोक नहीं पायी। उल्टे, कोर्ट ने भाजपा विधायक राजेन्द्र मेश्राम को वोट करने की अनुमति नहीं दी। सिंगरोली जिले की देवसर सीट से निर्वाचित मेश्राम चुनाव के लिये दिये गये जाति प्रमाण पत्र फर्जीवाड़े में फंसे हुए हैं। हाईकोर्ट ने उनके निर्वाचन को शून्य घोषित कर रखा है। मेश्राम ने फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगा रखी है। अपील अभी विचाराधीन है। भाजपा ने प्रयास किये। कोर्ट-कचहरी भी की, लेकिन मेश्राम को वोट देने की अनुमति कोर्ट ने नहीं दी। दांव-पैंच के बीच विवेक तन्खा बेहद आसानी से जीत गये। कांग्रेस के पास 57 वोट थे, लेकिन मतदान में उसे 62 वोट मिले। कांग्रेस एक निर्दलीय विधायक का वोट भी तन्खा के पक्ष में करवाने में कामयाब रही।
शिवराज को हुआ सर्वाधिक नुकसान
तीसरी सीट के गणित में मिले जबरदस्त गच्चे से भाजपा को तो नुकसान हुआ ही लेकिन सबसे ज्यादा और सीधा नुकसान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान को हुआ। विवेक तन्खा के प्रति शिवराज का नरम रवैया किसी से छिपा हुआ नहीं है। दरअसल तन्खा ने मुष्किल घड़ियों में षिवराज की खूब मदद की थी। डंपर कांड में तो तन्खा ने ही शिवराज को संकटों से उबारा था। कानूनी दांव-पैंच के महारथी तन्खा कुछ अन्य कानूनी पैंचीदा अवसरों पर भी षिवराज के मददगारों में सबसे अव्वल पायदान पर शुमार रहे। शायद यही वजह थी कि पूर्व के राज्यसभा चुनाव के दौरान तन्खा का नाम मध्यप्रदेश में भाजपा के संभावित उम्मीदवार के तौर पर जोर-शोर से चर्चाओं में रहा था। हालांकि सत्तारूढ़ दल और खुद तन्खा चर्चाओं को अफवाह करार देते रहे थे। तन्खा दिग्विजय सिंह सरकार में मध्यप्रदेश के एटार्नी जनरल हुआ करते थे। दिग्विजय सरकार में दस सालों तक वित्तमंत्री रहे कर्नल अजय नारायण मुशरान के वे दामाद हैं। जाहिर है, उनकी नजदीकियां कांग्रेस से ज्यादा रहीं। मगर कांग्रेस ने जब भांपा कि तन्खा पाला बदल सकते हैं तो पार्टी ने भी पैंतरा खेला और पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें जबलपुर से टिकट दे दिया। मोदी लहर में तन्खा भी बुरी तरह हार गये। अब जब मौका मिला तो कांग्रेस ने राज्यसभा का टिकट देकर नया दांव खेला। उसका यह दांव सटीक रहा। तन्खा की जीत से कांग्रेस को बल मिला। भाजपा की पैंतरों ने प्रदेष कांग्रेस को एकजुट कर दिया। चुनाव में जो कुछ हुआ, उसने तन्खा के दिलों में मुख्यमंत्री के प्रति जबरदस्त खटास पैदा कर दी। प्रेक्षकों का मत है कि षिवराज की मुष्किलें खुद घर (पार्टी) के फैसले ने बढ़ाई। मिषन 2018 दूर है। उपचुनाव जीतने में षिवराज उस्ताद हो चुके हैं। मगर तन्खा से तथाकथित दुष्मनी कानूनी मामलों में व्यक्तिगत रूप से षिवराज की कठिनाईयां बढ़ाने वाली साबित होंगी।
कांग्रेस का अगला टारगेट शहडोल और नेपानगर
प्रदेश में दो उपचुनाव तय हो गये हैं। शहडोल लोकसभा सीट दलपत सिंह परस्ते और बुरहानपुर जिले की नेपानगर सीट राजेन्द्र सिंह दादू के आकस्मिक निधनों की वजह से रिक्त हो गई है। ये दोनों ही सीटें बीजेपी के पास थीं। परस्ते का निधन बीमारी की वजह से हुआ, जबकि दादू राज्यसभा चुनाव में वोटिंग और पार्टी की बैठक में शामिल होने के लिये भोपाल आते वक्त एक सड़क हादसे में मारे गये। कांग्रेस राज्यसभा में मिली शानदार सफलता से बेहद उत्साहित है। इस टेम्पो को बरकरार रखने के लिये उसने दोनों सीटों के लिये रणनीति बनाना शुरू कर दी है। दोनों उपचुनाव साल के अंत तक संभावित हैं। यानी पानी अभी काफी बहना है। सीधी बात है, दोनों उपचुनावों के संदर्भ में कहा जाये तो कांग्रेस के पास फिलहाल खोने के लिये कुछ नहीं है। उधर सत्तारूढ़ दल को अपनी साख को बचाने के लिये पूरी ताकत झोंकना होगी। संभव है कांग्रेस राज्यसभा सरीखा का दांव दोनों उपचुनावों में भी खेले। इन उपचुनावों को शिवराज वर्सेस कमलनाथ बनाया जाये। ऐसे में बीजेपी को फूंक-फूंककर कदम बढ़ाना होगा।
जुगलबंदी बढ़ायेगी मुश्किलें
मायावती ने हाथ का साथ दिया है। मुमकिन है, मध्यप्रदेश में आने वाले दिनों में यह जुगलबंदी बढ़ सकती है। अगले साल यूपी में इलेक्षन हैं। माया का मुकाबला मुलायम सिंह की पार्टी से होता रहा है। एक बार साईकिल तो दूसरी बार हाथी का सिलसिला अमूमन उत्तरप्रदेश में पिछले कुछ चुनावों से चल रहा है। भाजपा यूपी फतह करने के लिये अभी से पूरी ताकत झोंक रही है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिये यूपी से अहम फिलहाल कुछ नहीं। चुनाव काफी दूर हैं, लेकिन मोदी ने तो यूपी में चुनाव का शंखनाद कर दिया है। राज्य दर राज्य भाजपा को मिल रही सफलता से समूची पार्टी बेहद उत्साहित है। मुख्यमंत्री बनने की लालसा रखने वाले भी अतिमहत्वाकांक्षा यूपी में दिखला रहे हैं। यूपी में भाजपा सीएम पद का प्रत्याशी प्रोजेक्ट करते हुए चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है। यूपी में बीजेपी में इनहाउस जो कुछ चल रहा है, उसने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। मोदी-शाह की जोड़ी से मुरली मनोहर जोशी सरीखे के नेता खासे खफा है। हाषिये पर होना इसकी वजह है। इसके अलावा कल्याण सिंह, लालजी टंडन और इसी तरह के वयोवृद्ध कई लीडरान भी उपेक्षा से नाखुष हैं। कुल मिलाकर भाजपा को यूपी में चैतरफा हमलों को बोथरा करना होगा। मायावती की पार्टी को चित करने पर ही भाजपा सत्ता का सिंहासन हासिल कर पायेगी। मुलायम एंड कंपनी एंटी इनकम्बेसी का षिकार होती नजर आ रही है। ऐसे में कांग्रेस का रोल यूपी में कम अहम नहीं रहने वाला है। भले ही सीटें पाने में वो सफल नहीं हो पा रही है, लेकिन खेल बिगाड़ने की स्थिति में है। ऐसे में बसपा और कांग्रेस यूपी में हाथ मिला सकते हैं। प्रेक्षक कहते हैं, इन संभावनाओं के चलते ही एमपी भी बसपा-कांग्रेस नया गुल खिलायें तो आष्चर्य नहीं होना चाहिये।
सटायर कैंडिटेड साबित हुए तन्खा
राज्यसभा के लिये कांग्रेस की ओर से विवेक तन्खा सटायर कैंडिटेड साबित हुए। तन्खा का ओहरा किसी से छिपा नहीं है। कांग्रेस के अलावा सत्तारूढ़ दल भाजपा और दीगर दलों के नेतागण उनके क्लाइंटस में शामिल रहे हैं। मुष्किल कानूनी मसलों से जुड़े मामलों में तन्खा ने अफसरानों की भी खूब पैरवी की है। ज्यूडिष्यिली में मध्यप्रदेश से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक में तन्खा बेहद सम्मानजनक शख्सों में शुमार हैं। खास वजह यही है कि तमाम कोशिश के बावजूद उनके खिलाफ कथित तोड़फोड़ सफल नहीं हो सकी। जानकार कहते हैं, मध्यप्रदेश भाजपा ने तन्खा को चित करने के लिये वो कोशिशे ही नहीं कि जैसी कि पहले वो करती रही है। भाजपा के खेमे में गिने जाने वाला एक निर्दलीय विधायक का वोट तन्खा को मिलना इस बात का संकेत करार दिया गया। प्रेक्षक दावा करते हैं, कांग्रेस तन्खा से इतर किसी को टिकट देती तो शायद वैसा नतीजा नहीं आ पाता जो आया।
कुछ यूं रहा वोटों का गणित
- मध्यप्रदेश में 229 वोट थे
- कुल वोट डले 228
- 227 विधायकों ने सीधे वोट किया
- सत्यदेव कटारे का वोट डाक के जरिये पड़ा
- भाजपा विधायक राजेन्द्र मेश्राम को वोट डालने की अनुमति नहीं मिली
- वोटिंग के ठीक एक दिन पहले भाजपा विधायक राजेन्द्र सिंह दादू का सड़क दुर्घटना में निधन हो गया
उम्मीदवारों को मिले वोट
नाम दल मिले वोटों की संख्या
अनिल माधव दवे भाजपा 58
एम जे अकबर भाजपा 58
विवेक तन्खा कांग्रेस 62
विनोद गोटिया निर्दलीय 50
विधानसभा में दलवार स्थिति
सदस्यों की कुल संख्या 230
भाजपा 165
कांग्रेस 057
बसपा 004
निर्दलीय 003
रिक्त 001
राज्यसभा चुनाव में भाजपा आलाकमान का दांव मध्यप्रदेश में पार्टी के लिये उलटा पड़ गया। अपर हाउस में संख्या बल में इजाफे के लिये इस तरह का प्रयोग कुछ अन्य राज्यों में भी किया गया, लेकिन तमाम प्रयास असफल रहे। मध्यप्रदेश में तीन सीटों के लिये चुनाव थे। विधानसभा में सदस्यों की संख्या के मान से दो सीटें भाजपा को मिलना तय थीं। तीसरी सीट के लिये कांग्रेस के पास आवश्यक 58 वोटों की बजाय 57 वोट थे। नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे गंभीर रूप से बीमार हैं। कांग्रेस के एक अन्य विधायक रमेश पटेल जेल में थे। इन सब गणित को ध्यान में रखते हुए बीजेपी नेतृत्व ने पांसा फेंका, लेकिन बाजी उलट गई। चुनाव कमलनाथ वर्सेस शिवराज सिंह चौहान हो गया था। विनोद गोटिया की हार से मध्यप्रदेश भाजपा के सबसे चमकीले चेहरे शिवराज सिंह चौहान को चौतरफा नुकसान हुआ।
राज्यसभा की तीन सीटों में दो बिना संकट सत्तारूढ़ दल के खाते में जाना थी, लिहाजा भाजपा ने अनिल माधव दवे और एम जे अकबर को उम्मीदवार घोषित किया था। उधर कांग्रेस ने सीनियर एडव्होकेट और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व एटार्नी जनरल विवेक तन्खा को टिकट दिया था। अंदर की बात यह थी कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भाजपा का तीसरा प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारने के पक्ष में नहीं थे। चूंकि निर्देश पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के थे, लिहाजा मन मसोसकर स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर भाजपा के प्रदेश पदाधिकारी विनोद गोटिया को मैदान में उतारा गया। गोटिया को लेकर भाजपा का हरेक दांव विफल साबित हुआ। तीसरी वरीयता के लिये भाजपा के पास 50 वोट थे। बहुजन समाज पार्टी के चार और तीन निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर दांव खेलने की उसकी रणनीति थी। कांग्रेस में कई बार तोड़फोड़ में सफल रही प्रदेश भाजपा, पुरानी बाजी दोहराने के भी मूड में थी। उसका एक गणित यह भी था कि खुद अपने 50 वोट के अलावा तीन निर्दलीयों के वोट में आसानी से सेंधमारी हो जायेगी। बसपा के चार वोटों को लेकर भी उसे पूरी उम्मीद थी। समीकरण यह भी बन रहा था कि कुछ वोट कम हुए तो कांग्रेस के तय 57 वोटों में गंभीर रूप से बीमार सत्यदेव कटारे और रेप के आरोप में जेल में बंद कांग्रेस विधायक को वोट से वंचित करते हुए भी बाजी जीती जा सकती है।
गणित सही था, लेकिन भाजपा के पक्ष में कुछ भी सही नहीं हुआ। कांग्रेस के किंगमैकर के तौर पर ख्यात वरिष्ठ नेता कमलनाथ को नैया का खैवय्या बनाया गया था। उन्होंने बेजोड़ काम किया। सबसे पहले तो नाथ ने बसपा सुप्रीमो मायावती से अपने पुराने रिष्तों को कैष कराया। बसपा विधायकों को हाथ के साथ करने में परदे के पीछे दिग्विजय सिंह का रोल भी अहम रहा। बहनजी (मायावती) का फरमान मिला कि वोट तन्खा के पक्ष में करना है। कांग्रेस के इस दांव से भाजपा के हौंसले शुरूआती दौर में ही बुरी तरह पस्त हो गये। तन्खा के रिलेषन्स भी रंग लाये। कोर्ट ने सत्यदेव कटारे को डाक के जरिये वोट करने की अनुमति दी। जेल में बंद बड़वानी के कांग्रेस विधायक रमेष पटेल को भी वोट के लिये जमानत मिल गई। भाजपा ने तमाम जोर लगाया, लेकिन कांग्रेस विधायकों (कटारे और पटेल) के वोटों को वो रोक नहीं पायी। उल्टे, कोर्ट ने भाजपा विधायक राजेन्द्र मेश्राम को वोट करने की अनुमति नहीं दी। सिंगरोली जिले की देवसर सीट से निर्वाचित मेश्राम चुनाव के लिये दिये गये जाति प्रमाण पत्र फर्जीवाड़े में फंसे हुए हैं। हाईकोर्ट ने उनके निर्वाचन को शून्य घोषित कर रखा है। मेश्राम ने फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगा रखी है। अपील अभी विचाराधीन है। भाजपा ने प्रयास किये। कोर्ट-कचहरी भी की, लेकिन मेश्राम को वोट देने की अनुमति कोर्ट ने नहीं दी। दांव-पैंच के बीच विवेक तन्खा बेहद आसानी से जीत गये। कांग्रेस के पास 57 वोट थे, लेकिन मतदान में उसे 62 वोट मिले। कांग्रेस एक निर्दलीय विधायक का वोट भी तन्खा के पक्ष में करवाने में कामयाब रही।
शिवराज को हुआ सर्वाधिक नुकसान
तीसरी सीट के गणित में मिले जबरदस्त गच्चे से भाजपा को तो नुकसान हुआ ही लेकिन सबसे ज्यादा और सीधा नुकसान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान को हुआ। विवेक तन्खा के प्रति शिवराज का नरम रवैया किसी से छिपा हुआ नहीं है। दरअसल तन्खा ने मुष्किल घड़ियों में षिवराज की खूब मदद की थी। डंपर कांड में तो तन्खा ने ही शिवराज को संकटों से उबारा था। कानूनी दांव-पैंच के महारथी तन्खा कुछ अन्य कानूनी पैंचीदा अवसरों पर भी षिवराज के मददगारों में सबसे अव्वल पायदान पर शुमार रहे। शायद यही वजह थी कि पूर्व के राज्यसभा चुनाव के दौरान तन्खा का नाम मध्यप्रदेश में भाजपा के संभावित उम्मीदवार के तौर पर जोर-शोर से चर्चाओं में रहा था। हालांकि सत्तारूढ़ दल और खुद तन्खा चर्चाओं को अफवाह करार देते रहे थे। तन्खा दिग्विजय सिंह सरकार में मध्यप्रदेश के एटार्नी जनरल हुआ करते थे। दिग्विजय सरकार में दस सालों तक वित्तमंत्री रहे कर्नल अजय नारायण मुशरान के वे दामाद हैं। जाहिर है, उनकी नजदीकियां कांग्रेस से ज्यादा रहीं। मगर कांग्रेस ने जब भांपा कि तन्खा पाला बदल सकते हैं तो पार्टी ने भी पैंतरा खेला और पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें जबलपुर से टिकट दे दिया। मोदी लहर में तन्खा भी बुरी तरह हार गये। अब जब मौका मिला तो कांग्रेस ने राज्यसभा का टिकट देकर नया दांव खेला। उसका यह दांव सटीक रहा। तन्खा की जीत से कांग्रेस को बल मिला। भाजपा की पैंतरों ने प्रदेष कांग्रेस को एकजुट कर दिया। चुनाव में जो कुछ हुआ, उसने तन्खा के दिलों में मुख्यमंत्री के प्रति जबरदस्त खटास पैदा कर दी। प्रेक्षकों का मत है कि षिवराज की मुष्किलें खुद घर (पार्टी) के फैसले ने बढ़ाई। मिषन 2018 दूर है। उपचुनाव जीतने में षिवराज उस्ताद हो चुके हैं। मगर तन्खा से तथाकथित दुष्मनी कानूनी मामलों में व्यक्तिगत रूप से षिवराज की कठिनाईयां बढ़ाने वाली साबित होंगी।
कांग्रेस का अगला टारगेट शहडोल और नेपानगर
प्रदेश में दो उपचुनाव तय हो गये हैं। शहडोल लोकसभा सीट दलपत सिंह परस्ते और बुरहानपुर जिले की नेपानगर सीट राजेन्द्र सिंह दादू के आकस्मिक निधनों की वजह से रिक्त हो गई है। ये दोनों ही सीटें बीजेपी के पास थीं। परस्ते का निधन बीमारी की वजह से हुआ, जबकि दादू राज्यसभा चुनाव में वोटिंग और पार्टी की बैठक में शामिल होने के लिये भोपाल आते वक्त एक सड़क हादसे में मारे गये। कांग्रेस राज्यसभा में मिली शानदार सफलता से बेहद उत्साहित है। इस टेम्पो को बरकरार रखने के लिये उसने दोनों सीटों के लिये रणनीति बनाना शुरू कर दी है। दोनों उपचुनाव साल के अंत तक संभावित हैं। यानी पानी अभी काफी बहना है। सीधी बात है, दोनों उपचुनावों के संदर्भ में कहा जाये तो कांग्रेस के पास फिलहाल खोने के लिये कुछ नहीं है। उधर सत्तारूढ़ दल को अपनी साख को बचाने के लिये पूरी ताकत झोंकना होगी। संभव है कांग्रेस राज्यसभा सरीखा का दांव दोनों उपचुनावों में भी खेले। इन उपचुनावों को शिवराज वर्सेस कमलनाथ बनाया जाये। ऐसे में बीजेपी को फूंक-फूंककर कदम बढ़ाना होगा।
जुगलबंदी बढ़ायेगी मुश्किलें
मायावती ने हाथ का साथ दिया है। मुमकिन है, मध्यप्रदेश में आने वाले दिनों में यह जुगलबंदी बढ़ सकती है। अगले साल यूपी में इलेक्षन हैं। माया का मुकाबला मुलायम सिंह की पार्टी से होता रहा है। एक बार साईकिल तो दूसरी बार हाथी का सिलसिला अमूमन उत्तरप्रदेश में पिछले कुछ चुनावों से चल रहा है। भाजपा यूपी फतह करने के लिये अभी से पूरी ताकत झोंक रही है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिये यूपी से अहम फिलहाल कुछ नहीं। चुनाव काफी दूर हैं, लेकिन मोदी ने तो यूपी में चुनाव का शंखनाद कर दिया है। राज्य दर राज्य भाजपा को मिल रही सफलता से समूची पार्टी बेहद उत्साहित है। मुख्यमंत्री बनने की लालसा रखने वाले भी अतिमहत्वाकांक्षा यूपी में दिखला रहे हैं। यूपी में भाजपा सीएम पद का प्रत्याशी प्रोजेक्ट करते हुए चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है। यूपी में बीजेपी में इनहाउस जो कुछ चल रहा है, उसने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। मोदी-शाह की जोड़ी से मुरली मनोहर जोशी सरीखे के नेता खासे खफा है। हाषिये पर होना इसकी वजह है। इसके अलावा कल्याण सिंह, लालजी टंडन और इसी तरह के वयोवृद्ध कई लीडरान भी उपेक्षा से नाखुष हैं। कुल मिलाकर भाजपा को यूपी में चैतरफा हमलों को बोथरा करना होगा। मायावती की पार्टी को चित करने पर ही भाजपा सत्ता का सिंहासन हासिल कर पायेगी। मुलायम एंड कंपनी एंटी इनकम्बेसी का षिकार होती नजर आ रही है। ऐसे में कांग्रेस का रोल यूपी में कम अहम नहीं रहने वाला है। भले ही सीटें पाने में वो सफल नहीं हो पा रही है, लेकिन खेल बिगाड़ने की स्थिति में है। ऐसे में बसपा और कांग्रेस यूपी में हाथ मिला सकते हैं। प्रेक्षक कहते हैं, इन संभावनाओं के चलते ही एमपी भी बसपा-कांग्रेस नया गुल खिलायें तो आष्चर्य नहीं होना चाहिये।
सटायर कैंडिटेड साबित हुए तन्खा
राज्यसभा के लिये कांग्रेस की ओर से विवेक तन्खा सटायर कैंडिटेड साबित हुए। तन्खा का ओहरा किसी से छिपा नहीं है। कांग्रेस के अलावा सत्तारूढ़ दल भाजपा और दीगर दलों के नेतागण उनके क्लाइंटस में शामिल रहे हैं। मुष्किल कानूनी मसलों से जुड़े मामलों में तन्खा ने अफसरानों की भी खूब पैरवी की है। ज्यूडिष्यिली में मध्यप्रदेश से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक में तन्खा बेहद सम्मानजनक शख्सों में शुमार हैं। खास वजह यही है कि तमाम कोशिश के बावजूद उनके खिलाफ कथित तोड़फोड़ सफल नहीं हो सकी। जानकार कहते हैं, मध्यप्रदेश भाजपा ने तन्खा को चित करने के लिये वो कोशिशे ही नहीं कि जैसी कि पहले वो करती रही है। भाजपा के खेमे में गिने जाने वाला एक निर्दलीय विधायक का वोट तन्खा को मिलना इस बात का संकेत करार दिया गया। प्रेक्षक दावा करते हैं, कांग्रेस तन्खा से इतर किसी को टिकट देती तो शायद वैसा नतीजा नहीं आ पाता जो आया।
कुछ यूं रहा वोटों का गणित
- मध्यप्रदेश में 229 वोट थे
- कुल वोट डले 228
- 227 विधायकों ने सीधे वोट किया
- सत्यदेव कटारे का वोट डाक के जरिये पड़ा
- भाजपा विधायक राजेन्द्र मेश्राम को वोट डालने की अनुमति नहीं मिली
- वोटिंग के ठीक एक दिन पहले भाजपा विधायक राजेन्द्र सिंह दादू का सड़क दुर्घटना में निधन हो गया
उम्मीदवारों को मिले वोट
नाम दल मिले वोटों की संख्या
अनिल माधव दवे भाजपा 58
एम जे अकबर भाजपा 58
विवेक तन्खा कांग्रेस 62
विनोद गोटिया निर्दलीय 50
विधानसभा में दलवार स्थिति
सदस्यों की कुल संख्या 230
भाजपा 165
कांग्रेस 057
बसपा 004
निर्दलीय 003
रिक्त 001
(लेखक संजीव श्रीवास्तव जी के द्वारा )

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