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अब शहडोल में मात का खेल...

(राकेश अग्निहोत्री)सवाल दर सवाल
मध्यप्रदेश में उपचुनाव की कड़ी में आदिवासी नेता दलपत सिंह परस्ते के निधन से एक और नाम शहडोल लोकसभा सीट का जुड़ गया है..इसे संयोग ही कहेंगे कि गुरुवार को विधानसभा उपचुनाव घोड़ाडोंगरी के परिणाम सामने आएंगे तो दूसरी ओर परस्ते की असमय मौत से शहडोल में मातम के बीत उन्हें भावभीनी विदाई दी जाएगी..संयोग यह भी है कि सज्जन सिंह उइके के निधन से खाली हुई विधानसभा की सीट आदिवासी के लिए आरक्षित थी तो शहडोल की कमान भी आदिवासी के हाथ में थी..मध्यप्रदेश में सत्ता की चाबी जिस आदिवासी वोट बैंक के पास है उसने झाबुआ लोकसभा उपचुनाव में नमो-शिवाय की जोड़ी को सत्ता में होने के बाद भी करारा जवाब दिया था..ऐसे में बीजेपी के लिए घोड़ाडोंगरी में जीत का अपना घोड़ा सरपट दौड़ाने का दबाव रहा है तो शहडोल में भी सियासी मात के खेल में बीजेपी पर दबाव होगा कि वो अपनी सीट बचाकर कांग्रेस को मात दे..सवाल खड़ा होना लाजमी है कि उपचुनाव की परीक्षा में अभी तक ज्यादातर जीत हासिल करने वाले शिवराज का करिश्मा घोड़ाडोंगरी और उसके बाद शहडोल में क्या गुल खिलाएगा, जहां चुनाव दूर होने के बावजूद चर्चा ज्यादा है..

जब टीम शिवराज के लिए राज्यसभा चुनाव की तीसरी सीट जी का जंजाल बन चुकी है तब दिल्ली से खबर आई कि 11-12 जून को इलाहाबाद में होने वाली राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद अमित शाह की नई टीम सामने आएगी..यानी संदेश साफ है कि राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी में मोदी और शाह अपने मोहरे जब फिट करने में जुटे हैं तब कहीं न कहीं नेताओं की भूमिका को लेकर समन्वय पूरी तरह नहीं बन पाया है..ऐसे में मध्यप्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष चौहान की टीम इलाहाबाद के पहले घोषित हो सके इसकी संभावना एक बार फिर कम हो गई है..क्योंकि पार्टी की प्रदेश इकाई को दिल्ली के फरमान ने पहले ही एक नई मुश्किल में डाल दिया है..जहां उसके लिए निर्दलीय उम्मीदवार विनोद गोटिया की जीत से ज्यादा कांग्रेस प्रत्याशी विवेक तन्खा को राज्यसभा में नहीं जाने देने का बनाया गया है..ऐसे में जब गुरुवार को घोड़ाडोंगरी उपचुनाव के परिणाम सामने आने थे इस बीच शहडोल के आदिवासी नेता और 5 बार के सांसद दलपत सिंह परस्ते के निधन के साथ एक और उपचुनाव को लेकर सरगर्मियां बढ़ गईं। इस उपचुनाव के लिए अभी 6 महीने का समय है लेकिन मौजूदा दौर में इसका महत्व कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है..महत्व इसलिए कि निमाड़ के आदिवासी क्षेत्र झाबुआ में बीजेपी लोकसभा के उपचुनाव में अपनी सीट नहीं बचा पाई और उसे कांग्रेस ने शिकस्त देकर सारे गणित गड़बड़ा दिए थे..झाबुआ आदिवासी क्षेत्र के बाद घोड़ाडोंगरी में जहां उपचुनाव हुआ वो भी आदिवासी सीट है तो इस कड़ी में शहडोल भी शामिल हो गया है जिसे बीजेपी का गढ़ माना जाता है..ज्यादातर विधानसभा उपचुनाव जीतने वाली बीजेपी जब झाबुआ लोकसभा उपचुनाव हारी तो इसे मोदी सरकार की लोकप्रियता से जोड़कर प्रचारित किया गया, तो शहडोल पर भी दिल्ली की नजर टिकना लाजमी है जहां उपचुनाव का रास्ता उस वक्त साफ हुआ है जब मोदी सरकार दो साल के जश्न में डूबी है और सत्ता संगठन में होने वाले कई बदलाव को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है..कुछ सीट को अपवाद माना जाए तो उपचुनाव सीएम शिवराज के िलए समस्या कम बने बल्कि उनका सियासी कद बढ़ाने में जीत की संजीवनी साबित हुए..ज्यादातर उपचुनाव में शिवराज को अंतिम समय में खुद को झोकना पड़ा है चाहे फिर वो घोड़ाडोंगरी और उससे पहले मैहर, देवास और झाबुआ उपचुनाव ही क्यों न हो..टीम शिवराज घोड़ाडोंगरी में बेहतर स्थिति में खड़ा होने का दावा कर रही है और यदि परिणाम कांग्रेस के फेवर में नहीं आए तो फिर प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के नेतृत्व पर सवाल खड़े होना भी तय है..कांग्रेस से ज्यादा अरुण यादव के लिए घोड़ाडोंगरी उपचुनाव ज्यादा मायने रखता है तो राज्यसभा चुुनाव में पार्टी उम्मीदवार विवेक तन्खा की जीत भी उसके दिग्गज नेताओं की साख से जुड़ चुकी है..मध्यप्रदेश से लेकर केंद्र की राजनीति में बीजेपी अंदरूनी सियासत इन दिनों उलझी है और नए एजेंडे को लेकर उसकी रणनीति साफ होना बाकी है..बीजेपी के संगठन महामंत्री रहते अरविन्द मेनन की विदाई के बाद नवागत संगठन महामंत्री सुहास भगत सियासी दांवपेंच पूरी तरह समझ पाते उनके सामने सिंहस्थ और घोड़ाडोंगरी उपचुनाव के बीच राज्यसभा चुनाव चुनौती के तौर पर खड़े हो गए..और अब शहडोल भी इसी कड़ी में जुड़ चुका है..घोड़ाडोंगरी की जीत िशवराज की जीत होगी और हार गए तो इसका ठीकरा संगठन पर फोड़ा जाना भी तय है..ऐसे में शहडोल में सियासी मात के खेल का रास्ता साफ हो चुका है..और पार्टी को इसके लिए नए सिरे से रणनीित बनाना होगी।

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Rakesh Agnihotri political editor
स्वराज Express MP/CG
+919893309733

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