सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से मिलने से अलगावादियों ने किया इनकार
श्रीनगर : कश्मीर घाटी में शांति बहाली के उद्देश्य से समाज के विभिन्न वर्गों से बातचीत करने रविवार को यहां पहुंचे प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात करने के मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के आमंत्रण को अलगाववादी नेताओं ने ठुकरा दिया है। अलगाववादी नेताओं ने संयुक्त रूप से एक वक्तव्य जारी कर कहा है कि दिल्ली से आए प्रतिनिधिमंडल ने अपना उद्देश्य स्पष्ट नहीं किया है और मुलाकात का उनका कोई स्पष्ट एजेंडा भी नहीं है।
अलगववादियों ने मुख्यमंत्री महबूबा की भी जमकर आलोचना की है। गौरतलब है कि महबूबा ने अलगववादियों को बतौर मुख्यमंत्री नहीं बल्कि पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की मुखिया के तौर पर बातचीत के लिए आमंत्रित किया था।
कश्मीर के अलगाववादी नेताओं सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और यासिन मलिक की ओर से जारी किए गए संयुक्त बयान में कहा गया है, ‘‘महबूबा से ज्यादा भला कौन जानता है कि भारतीय सेना ने भारत से आजादी की मांग कर रही कश्मीर की जनता की हत्या, उन्हें अपंग बनाने और उन्हें पूरी तरह आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करने का अभियान चला रखा है।’’
महबूबा ने शनिवार की शाम अलगाववादी नेताओं को एक चिट्ठी लिखकर उनसे सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल दल से मुलाकात करने का आग्रह किया था। महबूबा ने लिखा था, ‘‘कश्मीर में पैदा हुए गतिरोध को खत्म करने की दिशा में विश्वसनीय और सार्थक राजनीतिक बातचीत और इस पर एक प्रस्ताव लाने की यह शुरुआत होगी। पार्टी और राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठते हुए देश का राजनीतिक नेतृत्व आगे आया है और यह हमारा सामूहिक दायित्व है कि इस प्रयास की विश्वसनीयता को हम बनाए रखें।’’
गौरतलब है कि लगभग सभी अलगाववादी नेता या तो श्रीनगर के किसी जेल में या उनके घर में नजरबंद हैं। अलगाववादियों ने कहा, ‘‘सभी जानते हैं कि आम जनता सड़कों पर उतर ‘आजादी’ के नारे उन लोगों के लिए लगा रही है जो उन्हें सुनना चाहते हैं, और दीवारों तथा तख्तियों पर नारे उनके लिए लिखे जा रहे हैं जो उन्हें पढ़ना चाहते हैं।’’
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेशनल कान्फ्रेंस के अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने भी महबूबा द्वारा अलगाववादियों को आमंत्रित किए जाने की आलोचना की है। अब्दुल्ला ने कहा कि महबूबा यदि अलगाववादियों के साथ बातचीत को लेकर गंभीर हैं तो पहले अलगाववादी नेताओं को जेलों और उनके घरों से रिहा करना चाहिए। अब्दुल्ला ने रविवार को ट्वीट किया, ‘‘बतौर मुख्यमंत्री महबूबा ने अलगाववादी नेताओं को गिरफ्तार किया और अब बतौर पीडीपी अध्यक्ष वह उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित कर रही हैं, इसके बाद भी हमें आश्चर्य होता है कि कश्मीर में अशांति क्यों है।’’
उन्होंने अगले ट्वीट में लिखा, ‘‘मुझे हैरत है और पीडीपी या भाजपा से कोई बताने का कष्ट करेगा कि यदि निमंत्रण सरकार की ओर से नहीं था तो निमंत्रण-पत्र लेकर पुलिस को क्यों भेजा गया।’’
इधर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में रविवार को यहां पहुंचे 28 सदस्यीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने जम्मू एवं कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से मुलाकात की। प्रतिनधिमंडल के सदस्यों और मुख्यमंत्री की मुलाकात डल झील के किनारे शेर-ए-कश्मीर कॉन्वेंशन सेंटर में हुई। प्रतिनिधिमंडल दो दिवसीय कश्मीर दौरे पर यहां पहुंचा है, जिस दौरान यह जमीनी हालात का जायजा लेगा और यहां शांति स्थापित करने के उपाय तलाशेगा। इसके सदस्य विभिन्न स्थानीय नेताओं से भी मिलेंगे।
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के यहां पहुंचने से पहले प्रशासन ने पूरी घाटी से कफ्र्यू व प्रतिबंध हटा लिया है। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मामलों के मंत्री राम विलास पासवान तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री जितेंद्र सिंह हैं।
इसमें शामिल अन्य प्रमुख नेताओं में कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद, मल्लिकार्जुन खड़गे व अंबिका सोनी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के डी. राजा, माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सीताराम येचुरी तथा अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल हैं।
हालांकि रविवार को भी कश्मीर घाटी में हिंसा रुकी नहीं है। दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के जिलाधिकारी कार्यालय में अनियंत्रित प्रदर्शनकारियों ने रविवार सुबह आग लगा दी और सुरक्षा बलों के साथ हुई झड़पों में कम से कम 5० लोग घायल हो गए। प्रदर्शनकारियों ने शोपियां शहर में लघु सचिवालय में आग लगा दी, जिसमें जिलाधिकारी और कई जिलास्तरीय अधिकारियों के कार्यालय हैं। घटना के समय लघु सचिवालय में कोई कर्मचारी उपस्थित नहीं था।
घाटी में पिछले 58 दिन से जारी तनाव, हिंसा व बंद के मद्देनजर कफ्र्यू व प्रतिबंध के बीच आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। यहां हिंसा व उपद्रव की शुरुआत आठ जुलाई को हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी के सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे जाने के बाद नौ जुलाई से हुई। हिंसा में अब तक 74 लोगों की मौत हो चुकी है, जिसमें 71 नागरिक और तीन स्थानीय पुलिसकर्मी हैं।
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