सात फेरे कहां, लेना है....
जाति, मजहब, दुनिया से हमको क्या लेना है
आप तो इतना बतायें सात फेरे कब लेना है।
जाति, मजहब, दुनिया से हमको क्या लेना है
आप तो हमें ये बतायें, सात फेरे कहां, लेना है।
प्रेम ही भक्ति, प्रेम ही शक्ति अपना ये कहना है
हमको इक-दूजे का होकर, प्रेम से रहना है।
लिया है जितना कुदरत से, उतना वापस देना है
मिलकर पेड़ लगाने का इक फेरा ज्यादा लेना है।
बीत रही है उम्र हमारी, दूरी कब तक सहना है
मत भूलो मेरा भी दिल, कुदरत का इक गहना है।
कैसी भी हो मुश्किल, हमको ही हल करना है
जीवन की नौका को मिलकर संग-संग खैना है।
जाति, मजहब, दुनिया से हमको क्या लेना है
मुझको तो इतना बता दो, सात फेरे कब- लेना है।
आशीष श्रीवास्तव
स्वतंत्र पत्रकार
भोपाल मप्र
ashish35.srivastava@yahoo.in
8871584907
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