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पद और प्रतिष्ठा की लड़ाई में रोड़े कई है, मुख्यमंत्री जी



इस साल मप्र में मुख्यमंत्री चुनाव है।वर्तमान मुख्यमंत्री जी लगातार तीन बार मप्र का चुनाव जीत चुके है।कहने को तो पिछले पंद्रह सालों में मप्र को चौहान जी ने बहुत कुछ दिया है।मप्र के विकास के लिए अपनी तरफ से सारी कोशिश की है।लेकिन फिर भी कुछ पहलुओं को बदलने में शिवराज सरकार भी नाकाम रही।जरा नजर डालते है इन हालातों पर।नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो ने 2015 में जो अपराध आंकड़े जारी किये थे वे वाकई चोंकाने वाले थे।रिपोर्ट के अनुसार दुष्कर्म जैसे घिनोने अपराध में मप्र का नाम सबसे ऊपर था।यहाँ 2015 में 4391 दुष्कर्म के मामले दर्ज किये गए थे जिनमे औसतन एक दिन में 13 बलात्कार हुए।दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र और फिर राजिस्थान और दिल्ली का नाम था। मप्र हत्या से लेकर बलात्कार तक , भष्टाचार से लेकर किसानो पर अत्याचार तक चर्चा का केंद्र बना रहता है। मप्र में हर कभी किसी भी लड़की की आबरू लुटती है हर कभी किसान आत्महत्या करता है और आये दिन खुलेआम हत्याए होती है।लेकिन हमारे शुभचिन्तक नेतागण इसी बात पर बहस करते रह जाते है की गलती किसकी थी।यदि बात मप्र के हालातो के बारे में है तो मप्र एक और मामले में आगे है।मप्र के मुख्यमंत्री जी ने वाशिंगटन यात्रा के दौरान मप्र की सड़कों को वहाँ की सड़को से बेहतर करार दिया।शिवराज सिंह चौहान के बयान को जनता ने सिरे से ख़ारिज किया क्योंकि सड़को की दुर्गति को जनता ही समझती है,होने वाले हादसों के परिणाम जनता ही भुगतती है।इन हादसों के लिए सड़को को ही जिम्मेदार ठहराना चाहिए क्योकि सड़के ही उबड़ खाबड़ और गड्ढो वाली होंगी तो हादसे होना स्वाभाविक है।2016 में सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके मुताबिक भारत में हर 60 मिनिट में 56 सड़क दुर्घटनाये होती है।साल 2015 में देश में 4.89 लाख सड़क दुर्घटनाये हुई जिनमे 1.4 लाख लोग मारे गए और 4.93 लाख लोग घायल हुए।रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ख़राब सड़को वाले 13 राज्यो में मप्र तीसरे नंबर पर है।इसका मतलब यह हुआ की वाशिंगटन किसी गड्ढे में स्थित है।वही दूसरी ओर विगत कुछ वर्षो से मप्र में ठीक से बारिश नही हुई।किसान अपना कर्ज नही चुका पा रहे है आये दिन खुदखुशी कर रहे है।इस समय कुल 85 लाख छोटे बड़े किसान है।इसमें करीब 50 लाख किसानो पर 60 हज़ार करोड़ का क़र्ज़ है।मप्र में हर साल हजारो किसान आत्महत्या करते है कारण यही है बढ़ता हुआ कर्जा, सूदखोरों का दबाब, बर्बाद हो चुकी फसल और मूकदर्शक सरकार। यदि सरकार इतने करोडो का बजट लेकर आती है तो इसका मतलब यह होना चाहिए की अब कोई भी परिवार भूखा नही रहेगा, कोई भी पढ़ा लिखा युवा बेरोज़गार नही रहेगा और कोई भी किसान आत्महत्या नही करेगा। हालाँकि किसानो के लिए चुनाव नजदीक आते आते बजट के द्वारा और अन्य घोषणाओं और योजनाओं के द्वारा रियायत और उद्धार की कोशिश की जाने लगी है।साथ ही एक बात गौर करने वाली है की 5 साल पहले जब माननीय मुख्यमंत्री जी चुनाव लड़ रहे थे तो उन्होंने अपने भाषण में समानता की बात करते हुए एक ब्रम्हण लड़के का किस्सा सुनाया था और अपनी सामान्य वर्ग को दी जाने वाली छात्रव्रत्ति का गुणगान किया था यही नही ये एकलौता किस्सा हम पिछले पांच सालों से उनके कई भाषणों में सुनते आ रहे है लेकिन अब जब निरंतर आरक्षण के खिलाफ सवर्णों द्वारा शंखनाद किये जा रहे है तो यह देख चौहान जी ने एक कटु ब्यान दे डाला कि "कोई माई का लाल आरक्षण नही हटा सकता"। मतलब कि इस बार वोट बैंक की राजनीति जातिगत रूप से की जा रही है जैसा की होता आया है। लेकिन इस बार उन्हें सवर्णों का वोट मिलना मुश्किल प्रतीत हो रहा है क्योकि चौहान जी ने सीधे कलेजे पर वार किया है।अब देखना यह है कि माननीय मुख्यमंत्री जी अपने पद पर बरक़रार रह पाते है या नही।

- शिवांगी पुरोहित, स्वतंत्र लेखक

यह लेखक के स्वयं के विचार है।

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