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CRPF जवान ने नक्सली हमले में खाई थी 7 गोलियां, अब पॉलीथिन में आंत लपेटकर जी रहा



मुरैना : जहां एक तरफ सेना देश की सरहदों की रक्षा करती है, तो वहीं अर्द्ध सैनिक बल देश के अंदरूनी सुरक्षा का जिम्मा संभालते है। देश का हर नागरिक जवानों की बहादुरी व हिम्मत की वजह से चैन से रह पा रहा है। इसी बीच एक सीआरपीएफ जवान की जिंदगी मौत से भी बदतर हो गई है। 4 फरवरी 2017 को उनकी जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों से मुठभेड़ हुई थी. वो डेढ़ महीने कोमा में रहे. मगर अब सीआरपीएफ कमांडेंट चेतन एकदम ठीक होकर वापस मोर्चे पर लौट गए हैं. उनके ड्यूटी पर वापस लौटने के पीछे एक बड़ी वजह उनका अच्छा इलाज भी रहा. मगर हर जवान की नियति चेतन चीता जैसी नहीं होती है. बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के तरसमा गांव निवासी सीआरपीएफ जवान मनोज तोमर की. मनोज सही इलाज ना मिलने के कारण मौत से भी बुरी जिंदगी जी रहे हैं.

मनोज मार्च 2014 में छत्तीसगढ़ की झीरम घाटी में नक्सली मुठभेड़ में गंभीर रूप से घायल हो गए थे. चेतन चीता की तरह ही उनके भी सात गोलियां लगीं थीं. इलाज हुआ. मनोज की जान भी बच गई, लेकिन उन्हें एक ऐसा दर्द मिल गया जो डरावना है. मनोज की आंतें उनके पेट के बाहर निकली रहती हैं, जिसे वो पॉलीथिन में लपेटकर जीवन बिताने को मजबूर हैं. ऐसा नहीं है कि इसका इलाज नहीं हो सकता है. इसका इलाज संभव है, लेकिन मनोज के पास उतने पैसे नहीं हैं.

गोली लगने से उनकी एक आंख भी खराब हो गई है, मगर वो इसी हालत में जिंदगी काट रहे हैं. डॉक्टरों का कहना है कि ऑपरेशन करके मनोज की आंत पेट में रखी जा सकती है और वो अच्छी जिंदगी जी सकते हैं. आंख की रोशनी भी लौट सकती है, लेकिन दोनों के इलाज के लिए चाहिए पैसा. 5 से 7 लाख रुपए का खर्च आएगा. और इसका इंतजाम करना मनोज के बस में नहीं है.

क्यों नहीं हो रहा मनोज का इलाज

मनोज 11 मार्च 2014 को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के दोरनापाल थाना क्षेत्र में तैनात थे. तभी नक्सली हमला हुआ. उनकी टीम के 11 जवान शहीद हो गए. सिर्फ मनोज ही हमले में बच सके. मनोज ने नई दुनिया को बताया कि सीआरपीएफ रायपुर में अनुबंधित नारायणा अस्पताल में उनका इलाज करवा रहा है. गंभीर घायल होने की स्थिति में आंत को पेट में रखने का ऑपरेशन उस समय संभव नहीं था, इसलिए आंत का कुछ हिस्सा बाहर ही रह गया. डॉक्टरों की सलाह पर वे दिल्ली के एम्स भी गए, लेकिन ओपीडी से आगे किसी डॉक्टर को नहीं दिखा पाए.

सरकार से है शिकायत
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) नियमानुसार केवल अनुबंधित अस्पताल में इलाज करवा सकता है, लेकिन किसी अन्य अस्पताल में इलाज का खर्च जवान को खुद ही उठाना पड़ता है. यही कारण है कि मनोज की शिकायत सीआरपीएफ से नहीं, बल्कि सरकार और उसके नियमों से है. नियम कहता है कि वे छत्तीसगढ़ में ड्यूटी के दौरान जख्मी हुए थे इसलिए उनका उपचार अनुबंधित रायपुर के नारायणा अस्पताल में ही होगा. ऐसे में सिर्फ सरकार ही एम्स में आंत के ऑपरेशन और चेन्नई में आंख के ऑपरेशन का इंतजाम करवा सकती है, जो नहीं हो रहा है.

राजनाथ सिंह से 5 लाख की मदद का आश्वासन मिला था!
मनोज लगातार आठ साल तक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सुरक्षा दल में भी रह चुके हैं. उन्होंने अपने बेहतर इलाज के लिए कई दरवाजे खटखटाए मगर हाथ सिर्फ आश्वासन आए. ऐसा ही एक आश्वासन उन्हें मिला था देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह से. उनको 5 लाख रुपये की सहायता देने की बात कही गई थी. मगर ये मदद उन्हें आजतक नहीं मिल पाई है.

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