औषधीय पौधों को चिन्हित करने में स्कूली बच्चे दे रहे योगदान डीबीटी प्रोजक्ट के अंतर्गत आदिवासी स्कूली बच्चों को प्रोत्साहित किया जा रहा औषधीय पौधों के वैज्ञानिक गुणों का परीक्षण कर उनका रिकॉर्ड तैयार होगा
औषधीय पौधों को चिन्हित
करने में स्कूली बच्चे दे रहे योगदान
डीबीटी प्रोजक्ट के अंतर्गत आदिवासी स्कूली बच्चों को प्रोत्साहित किया जा रहा
औषधीय पौधों के वैज्ञानिक गुणों का परीक्षण कर उनका रिकॉर्ड तैयार होगा
अनूपपुर / अमरकटंक / प्रदीप मिश्रा - 8770089979
मैकल पर्वतीय श्रृंखला में स्थित अचनाकर-अमरकटंक के वन क्षेत्रों में पाये जाने वाले औषधीय पौधों को चिन्हित कर उनके औषधीय गुणों का रिकॉर्ड तैयार करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग के एक महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट को मंजूरी प्रदान की है। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत आदिवासी स्कूली बच्चों को फोल्डस्कोप नामक माइक्रोस्कोप प्रदान कर इसकी मदद से औषधीय पौधों की पहचान करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट की मदद से क्षेत्र में पाए जाने वाले औषधीय पौधों को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई जा सकेगी। प्रोजेक्ट इंवेस्टीगेटर डॉ. ऋषि पालीवाल के अनुसार अमरकटंक परिक्षेत्र में औषधीय पौधों की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। क्षेत्र के आदिवासी परिवार इन पौधों का उपयोग कई रोगों का सफलतापूर्वक निदान करने में कर रहे हैं। अब विभाग प्रयास कर रहा है कि इन औषधीय पौधों के वैज्ञानिक गुणों का पता फोल्डस्कोप की मदद से किया जा सके। इसके लिए आदिवासी स्कूली बच्चों को प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। ऐसा ही एक प्रशिक्षण कार्यक्रम विगत दिवस धनौली स्थित शासकीय उच्चतर विद्यालय में कक्षा नौ से 12 तक के छात्रों के लिए आयोजित किया गया। इसमें छात्रों को फोल्डस्कोप के अनुप्रयोगों की जानकारी देते हुए इसका अधिक से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग करने के बारे में बताया गया। स्कूल के छात्र और शिक्षक इस परियोजना का भाग बनने के लिए काफी उत्साहित दिखे। फोल्डस्कोप का दुनियाभर के वैज्ञानिक अधिक से अधिक प्रयोग कर रहे हैं। यह माइक्रोस्कोप की तरह होता है। इसे आसानी से तैयार करके प्रयोग किया जा सकता है। इसकी विशेषता है कि इसे कहीं भी आसानी के साथ ले जाकर प्रयोग कर सकते हैं। डॉ. पालीवाल ने बताया कि इसकी मदद से खेतों में पाए जाने वाले कीटों को चिन्हित किया जा सकता है, औषधीय पौधों की पहचान की जा सकती है और कहीं भी मलेरिया का परीक्षण किया जा सकता है। परियोजना में फिलहाल छात्रों को पौधों की पहचान कर उसके वैज्ञानिक गुणों को रिकॉर्ड करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
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