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मठाधीशों की गुस्ताखी पर शिव की क्षमा याचना

सवाल दर सवाल(राकेश अग्निहोत्री)
किसानों के महाकुंम्भ के लिए कार्यकर्ताओं को साधने की कवायद

उज्जैन सिंहस्थ से पहले किसानों के सीहोर महाकुंभ को सफल और यादगार बनाने के लिए बीजेपी को आज अपना वो कार्यकर्ता याद आया जिसके दम पर प्रदेश के सभी 56 संगठनात्मक जिले के 761 मंडलों और 23 हजार ग्राम पंचायतों से 5 लाख से ज्यादा किसानों को सीएम के गृह जिले सीहोर लाना है जहां देश के किसानो को फसल बीमा योजना की बड़ी सौगात देने के लिए पी एम नरेन्द्र मोदी का अभिनंदन किया जाएगा। प्रदेश बीजेपी दफ्तर में बुलाई गई इस विशेष बैठक में जिसमें अधिकांश सांसद, मंत्री, विधायक और पदाधिकारी समेत बीजेपी के मठाधीश मौजूद थे, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कार्यकर्ताओं की सुध लेते हुए उन्हें दीनदयाल अंत्योदय समितियों, प्रबंध समितियों, एल्डरमैन जैसे खाली पड़े पदों में जल्द एडजस्ट करने का न सिर्फ भरोसा दिलाया बल्कि उनकी उपेक्षा करने वाले प्रभारी मंत्रियों को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाने की सशर्त चेतावनी वह भी आक्रामक अंदाज में दे डाली। संदेश साफ है कि शिवराज मिशन-2018 को लेकर कमजोर कड़ियों को दुुरुस्त करने में न सिर्फ जुट गए हैं बल्कि उनकी प्राथमिकता में वो कार्यकर्ता सबसे ऊपर आ गया है जो उपेक्षित या नाराज बताया जाता है और जिसकी दम पर प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान अमित शाह की राष्ट्रीय अध्यक्ष की ताजपोशी के दौरान मध्यप्रदेश को मिली तवज्जो का गुणगान इसी बैठक में कुछ देर पहले कर चुके थे। सवाल खड़ा होना लाजमी है कि क्या वाकई सरकार के मुखिया की संगठन से अपेक्षाएं यदि बढ़ गई हैं तो क्या सत्ता और संगठन में कार्यकर्ताओं की अनदेखी से वो वाकिफ हैं। बड़ा सवाल ये है कि चाहे फिर वो मंत्री हो या फिर संगठन के पदाधिकारी यदि सीएम ने उन्हें हड़काकर खुद को कार्यकर्ताओं के साथ खड़ा दिखाने की नए सिरे से कोशिश की है तो क्या ये क्षमा याचना है जो नहीं चाहते कि सत्ता और संगठन के बेहतर तालमेल के बाद भी जमीनी कार्यकर्ता नाराज होकर घर बैठ जाएं।

पीएम मोदी के प्रदेश दौरे को सफल और यादगार बनाने के लिए बीजेपी भले ही सक्षम है लेकिन यदि उसके मुखिया ने कार्यकर्ताओं की नब्ज पर हाथ रखते हुए मंत्रियों को आड़े हाथ लिया है तो फिर इसकी वजह को लेकर यदि सवाल खड़ा होना लाजमी है तो उन्हें मंत्रियों के भी दर्द और मजबूरी को समझना होना। एक दशक से ज्यादा समय से खुद सीएम रहते शिवराज ने समीक्षा बैठकों से लेकर जनता के बीच जाकर सरकार से अपेक्षाओं का जितना अच्छी तरह आंकलन किया है शायद ही इससे पहले किसी मुख्यमंत्री ने ऐसा किया हो। यही कारण है कि शिवराज को जननायक और खास होकर आम लोगों का सेवक पहले माना गया है बाद में सीएम। ऐसे में यदि सीएम सत्ता और संगठन के दिग्गजों की मौजूदगी में कार्यकर्ताओं को संदेश दे रहे हैं कि वो उनके साथ हैं और मंत्री हों या संगठन के नेता उन्हें जनता और सरकार के बीच में सेतु की भूमिका निभाने वाले कार्यकर्ताओं को मशविरा और नसीहत दे रहे हैं तो फिर ये मानकर चलो कि शिवराज नाक, कान और आंख खोलकर जमीनी हकीकत को जान चुके हैं। फिर भी हम कहेंगे कि उद्बोधन से पहले शिवराज जिस हॉल में नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ भोजन कर रहे थे उसके ठीक पीछे बोरों में बंद जो दस्तावेज कचरे के ढेर में तब्दील हो चुके हैं और िजन्हें जलाने की तैयारी है, वो कुछ और नहीं उन कार्यकर्ताओं की ही अपेक्षा का जीता जागता प्रमाण है जिसमें कार्यकर्ताओं की उम्मीदें जुड़ी हैं और जिन्हें खोलकर देखना भी मुनासिब नहीं समझा गया। ये वो अहम सामग्री है जिसमें कार्यकर्ताओं का फीड बैक नेताओं को दौरे के दौरान मुहैया कराया गया या फिर दीनदयाल परिसर आकर कार्यकर्ता दे गए।
 
मामला संगठन का है और इन्हें सिफारिश के तौर पर न तो सरकार तक पहुंचाया गया और न ही कार्यालय में बैठे पदाधिकारियों ने अनुशंसा कर मंत्रियों तक पहुंचाया। शायद बीजेपी गोपनीयता बरतने के चक्कर में इन्हें सरकार की जानकारी में लाना तो दूर उन्हें नष्ट करने का जोखिम उठाने का साहस नहीं जुटा पाई। शिवराज ने आज ऐसे ही कार्यकर्ताओं तक संदेश जरूर पहुंचाया है लेकिन ये गंभीर कोशिश है तो फिर शायद कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़े और यदि ये मिशन मोदी की यात्रा में भीड़ जुटाने और अगले चुनाव मिशन-18 की तैयारी की रणनीति का हिस्सा है तो फिर देखना दिलचस्प होगा कि सब कुछ ठीक-ठाक होने के बाद भी कहीं झाबुआ में मिली हार का सिलसिला शिवराज के अरमानों पर पानी न फेर दे। मैहर प्रचार से दूरी बनाने वाले चौहान अब अंतिम 3 दिनों में प्रचार के लिए वहां डेरा डालने वाले हैं। संदेश इसमें भी छुपा है जिसे सीएम से बेहतर कौन समझ सकता है।
 
कार्यकर्ताओं को खुश करने के लिए जिन मंत्रियों को ये कहकर निशाने पर लिया गया कि यदि एक महीने में एक दिन उन्होेंने अपने प्रभार वाले जिलों में जाकर कार्यकर्ता और जनता के बीच नहीं गुजारा तो उन्हें कैबिनेट से बाहर कर िदया जाएगा। शायद इस बात में विधानसभा सत्र तक के लिए कैबिनेट विस्तार पर पूर्णविराम लगा दिया। यदि सीएम ने उन्हें चेताया है तो उन्हें सुधरने का वक्त भी दिया जाएगा यानी एक महीने तक के लिए यदि इन विवादित मंित्रयों पर खतरा टल गया है तो नए दावेदारों को अभी और इंतजार करना पड़ सकता है। ये सवाल इसलिए उठा है क्योंिक शिवराज ने बहुत पहले विस्तार के साफ संकेत दिए थे लेकिन इंतजार है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। जहां तक बात निशाने पर आए प्रभारी मंित्रयों की है तो वो निश्चित तौर पर शिवराज के कृपापात्र हैं लेकिन बेहतर होगा कि वो उनके दर्द-परेशानी को भी समझने की कोशिश करें। जिन मंत्रियों को कार्यकर्ताओं और जनता के बीच जाकर उनकी अपेेक्षाओं को पूरा करने की याद दिलाई जा रही है क्या वो मंत्री इतने सशक्त हैं कि वो प्रशासन से अपनी बात मनवा सकें। इन मंत्रियों की पुरानी शिकायत है कि कलेक्टर हो या एसपी उनकी नहीं सुनते हैं। क्षेत्र के विधायकों और जिलाध्यक्षों से लेकर यदि छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं की समस्याओं का समाधान तलाशने में मंत्री असहमत हैं तो इसका कारण क्या है। ये पहला मौका नहीं है जब सीएम ने अपने मंत्रियों के लिए गाइडलाइन जारी की हो इससे पहले भी मंत्रियों को गांव में रात बिताने जैसे निर्देश दिए जा चुके हैं। कुल मिलाकर कार्यकर्ताओं के प्रति संवेदनशील और मंत्रियों के प्रति सख्त रुख अपनाने वाले शिवराज सिंह ने इस बैठक में पीएम मोदी की यात्रा को सफल बनाने और फसल बीमा योजना के प्रचार-प्रसार का माहौल बनाने के लिए बहुत कुछ कहा। फिर भी ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि क्या मोदी के इस दौरे से किसानों की समस्या का को उनकी समस्या का स्थायी समाधान मिल जाएगा। चौथी बार मप्र को कृषि कर्मण पुरस्कार मिलने के बाद भी विपक्ष शिवराज सरकार को किसान विरोधी साबित करने में जुटा है और अमानत बीज और खाद के साथ बिजली और मुआवजा ही नहीं भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या के तौर पर सामने है और आत्महत्या की घटनाएं सुर्खियां बनती रही हैं वह भी तब जब 10 साल में शिवराज ने किसानों को कई सौगातें दी हैं बल्कि उन्हें उनका हक दिलाने के लिए लंबी लड़ाई भी लड़ी है। सवाल ये भी खड़ा होता है कि आजीवन सहयोग निधि हो या फिर मोदी के किसान महाकुंभ को सफल बनाने के लिए बीजेपी इमोश्नल ब्लैकमेल या फिर अनुशासन की आड़ में उनका खून कब तक चूसती रहेगी जिनकी आज सुध लेने को सीएम शिवराज संजीदा नजर आए।

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