मेरी डायरी का एक अंश...
रोज सुबह एक बिल्ली का बच्चा फ्रिज़ के बाजु में आकर बैठ जाता है। जब मै फ्रिज़ से कुछ लेने जाती हूँ तो वो मासूम चेहरा आशा भरी नज़रो से मेरी तरफ देखता है तब मैं सब से छुप कर थोडा सा दूध ज़मीन पर गिरा देती हूँ और वो उसे पी जाता है। ये लगभग रोज़ का सिलसिला बन गया था। वो बिल्ली का बच्चा रात भर एक कमरे में सोता रहता है और सुबह होते ही फ्रिज़ के पास बैठ जाता है।फिर दिन भर बहार रहता और रात में आकर फिर सो जाता। लेकिन वो कल से वापस नही आया।वो बच्चे जैसा दीखता है लेकिन अब बड़ा हो गया है।उसे मुझसे कोई खतरा नही है।
एक बार मेरी बेबकूफी के कारण एक छोटू सा बच्चा मर गया था। वो अपनी माँ के साथ ऊपर के कमरे में रहता था।बहुत छोटा था। दिन में उसकी माँ उसे छोड़ कर चली जाती थी और वो कवेलू पर फुदकता रहता था।बीच बीच में उसकी माँ भी आ जाती थी।लेकिन एक दिन वो ऊपर से नीचे गिर गया उसे कुछ नही हुआ।मैंने उसे एक कमरे में बंद कर दिया और खिड़की खुली छोड़ दी।उसकी माँ ने आना बंद कर दिया वो उसे छोड़ कर चली गयी शायद उसके बच्चे को इंसानी हाथो ने छू लिया था इसी कारण। दो दिन के अंदर उस बच्चे की मौत हो गयी। मैने उससे उसकी आज़ादी छीन ली शयद इसीलिए वो मर गया।
किसी ने सही कहा है - उड़ने दो परिंदे को अभी शोख है हवाओ में।
फिर लौट के बचपन के जमाने नही आते।।
शिवांगी पुरोहित - स्वतंत्र लेखक
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