बीजेपी-कांग्रेस की राह मुश्किल कर सकता है सपाक्स, ताल ठोकने को तैयार
भोपाल। जैसे-जैसे 6 सितंबर की तारीख नज़दीक आ रही है वैसे-वैसे सपाक्स का नाम सूबे की फिजा में गूंजने लगा है. सपाक्स वो संगठन है जो 6 सितंबर के भारत बंद में खुलकर तो शामिल नहीं है, लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि सपाक्स की ही वजह से एससी-एसटी एक्ट और आरक्षण में प्रमोशन के मुद्दे पर होने वाले विरोध ने जोर पकड़ा है.
आरक्षण समर्थकों के खिलाफ सपाक्स के उग्र आंदोलन को देखते हुए हर कोई जानना चाहता है कि आखिर सपाक्स है क्या. इस संगठन की नींव कैसे पड़ी और इसके उद्देश्य क्या हैं. दरअसल, सपाक्स सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक कर्मचारी संगठन है. इन तीनों ही वर्गों में आने वाले कर्मचारी इस संगठन के नेतृत्व में प्रमोशन में आरक्षण के साथ ही एससी-एसटी एक्ट पर सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश का विरोध कर रहे हैं. इस संगठन का मुख्य उद्देश्य सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण को खत्म कराना है. इसके साथ ही यह संगठन जातिवाद को खत्म करने की बात भी करता है. सपाक्स का नारा है 'साथ चलेंगे विकास करेंगे'
क्या है सपाक्स के गठन की वजह?
सपाक्स को अजाक्स का विरोधी संगठन भी कहा जा सकता है. सपाक्स, मध्यप्रदेश सरकार द्वारा साल 2002 में पारित किये आरक्षण के आधार पर पदोन्नति कानून का विरोध करता है, जिसे जबलपुर हाईकोर्ट ने भी असंवैधानिक करार दिया था. लेकिन, प्रदेश सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार का सुप्रीम कोर्ट जाना ही सपाक्स की नाराजगी की वजह है और इसी वजह से इस संगठन की नींव भी पड़ी. संगठन फर्म एंव सोसायटी नियमों के तहत रजिस्टर्ड संस्था है, जिसका विस्तार मध्यप्रदेश के सभी 51 जिलों में है. सपाक्स संगठन में कई मोर्चे हैं, जिनमें युवा मोर्चा, महिला मोर्चा, प्रमुख रुप से शामिल हैं. सपाक्स आरक्षण, जातिगत भेदभाव के मुद्दों का भी जमकर विरोध करता है. वर्तमान में इस संगठन के संरक्षक हीरालाल त्रिवेदी हैं, जो कि पूर्व आईएएस हैं.
आरक्षण समर्थकों के खिलाफ सपाक्स के उग्र आंदोलन को देखते हुए हर कोई जानना चाहता है कि आखिर सपाक्स है क्या. इस संगठन की नींव कैसे पड़ी और इसके उद्देश्य क्या हैं. दरअसल, सपाक्स सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक कर्मचारी संगठन है. इन तीनों ही वर्गों में आने वाले कर्मचारी इस संगठन के नेतृत्व में प्रमोशन में आरक्षण के साथ ही एससी-एसटी एक्ट पर सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश का विरोध कर रहे हैं. इस संगठन का मुख्य उद्देश्य सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण को खत्म कराना है. इसके साथ ही यह संगठन जातिवाद को खत्म करने की बात भी करता है. सपाक्स का नारा है 'साथ चलेंगे विकास करेंगे'
क्या है सपाक्स के गठन की वजह?
सपाक्स को अजाक्स का विरोधी संगठन भी कहा जा सकता है. सपाक्स, मध्यप्रदेश सरकार द्वारा साल 2002 में पारित किये आरक्षण के आधार पर पदोन्नति कानून का विरोध करता है, जिसे जबलपुर हाईकोर्ट ने भी असंवैधानिक करार दिया था. लेकिन, प्रदेश सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार का सुप्रीम कोर्ट जाना ही सपाक्स की नाराजगी की वजह है और इसी वजह से इस संगठन की नींव भी पड़ी. संगठन फर्म एंव सोसायटी नियमों के तहत रजिस्टर्ड संस्था है, जिसका विस्तार मध्यप्रदेश के सभी 51 जिलों में है. सपाक्स संगठन में कई मोर्चे हैं, जिनमें युवा मोर्चा, महिला मोर्चा, प्रमुख रुप से शामिल हैं. सपाक्स आरक्षण, जातिगत भेदभाव के मुद्दों का भी जमकर विरोध करता है. वर्तमान में इस संगठन के संरक्षक हीरालाल त्रिवेदी हैं, जो कि पूर्व आईएएस हैं.
सपाक्स के उद्देश्य
1. सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्य वर्ग के अधिकारियों, कर्मचारियों के लिए काम करना और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कर्मचारियों को संगठित कर संस्था का सदस्य बनाना.
2. सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के शासकीय सेवकों का हितरक्षण करना.
3. सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारियों की प्रशासन से संबंधित कठिनाइयों के समाधान का प्रयास करना.
4. सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारियों की विभागीय एवं सामाजिक समस्याओं के प्रति जागरूक रहना एवं उनके समाधान का प्रयास करना.
5. सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारियों को उनके कर्तव्य एवं अधिकारों के प्रति जागरूक बनाना.
6. समान उद्देश्य वाले एवं इस संस्था के उद्देश्यों से सहमत अन्य संस्थाओं का सहयोग हासिल करना।
सपाक्स का राजनीति पर असर
पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे सपाक्स का मध्यप्रदेश की राजनीति में भी अच्छा खासा दखल है. यही वजह है कि वह आगामी विधानसभा चुनाव में एक बड़ी भूमिका में नजर आ सकता है क्योंकि सपाक्स ने विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा की है. जिसके लिये संगठन ने उगता सूरज नाम से एक पार्टी बनाने की बात भी कही है. हालांकि, संगठन ने औपचारिक रुप से इस बात की घोषणा नहीं की है. चुनाव लड़ने की योजना के पीछे संगठन का कहना है कि शासकीय योजनाओं की तरह राजनीति में भी लागू आरक्षण देश के विकास में रोरा बना हुआ है. जिसे खत्म करना भी सपाक्स का उद्देश्य है. गठन के बाद से ही सपाक्स के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ा है. जो उसके चुनाव लड़ने की वजह हो सकती है.
बीजेपी-कांग्रेस की राह मुश्किल कर सकता है सपाक्स
सपाक्स का चुनाव लड़ना बीजेपी-कांग्रेस को मुश्किल में डाल सकता है क्योंकि आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी-कांग्रेस फिलहाल साथ खड़ी दिखाई दे रही हैं. जिससे दोनों के खिलाफ सामान्य वर्ग में एक नाराजगी देखी जा रही है. इसी नाराजगी का लाभ सपाक्स राजनीति में उतरकर उठाना चाहता है. संगठन का कहना है कि वह विधानसभा चुनाव में उसकी विचारधारा के संगठन के साथ गठबंधन भी कर सकता है. ऐसा इसलिये कि सपाक्स से जुड़े अधिकांश लोग सरकारी नौकरी में हैं, जो राजनीति नहीं कर सकते हैं. ऐसे में सपाक्स उसकी विचारधारा वाले लोगों के साथ भी जा सकता है. जो चुनाव में उपयोगी भूमिका निभा सकता है.
6 सिंतबर को आयोजित भारत बंद में सपाक्स का रोल
सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC/ST एक्ट में किये गये संसोधन के बाद जहां पहले दलित समाज ने भारत बंद किया था. जिसके बाद सरकार ने इस बिल में संसोधन कर दिया. इस फैसले का विरोध अब देश का सवर्ण समाज कर रहा है. आगामी 6 सितबंर को एक बार फिर भारत बंद करने का आह्वान किया जा रहा है. सपाक्स के अधिकतर सदस्य प्रशानिक हैं, जिसके चलते वह खुलकर भारत बंद का विरोध तो नहीं कर रहे हैं. लेकिन, संगठन के अन्य मोर्चों के सदस्य इसमें बड़ा रोल अदा कर सकते हैं. सपाक्स भी कही-न-कही अंदरुनी तौर से इस बिल का विरोधी बताया जा रहा है.
2. सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के शासकीय सेवकों का हितरक्षण करना.
3. सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारियों की प्रशासन से संबंधित कठिनाइयों के समाधान का प्रयास करना.
4. सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारियों की विभागीय एवं सामाजिक समस्याओं के प्रति जागरूक रहना एवं उनके समाधान का प्रयास करना.
5. सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारियों को उनके कर्तव्य एवं अधिकारों के प्रति जागरूक बनाना.
6. समान उद्देश्य वाले एवं इस संस्था के उद्देश्यों से सहमत अन्य संस्थाओं का सहयोग हासिल करना।
सपाक्स का राजनीति पर असर
पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे सपाक्स का मध्यप्रदेश की राजनीति में भी अच्छा खासा दखल है. यही वजह है कि वह आगामी विधानसभा चुनाव में एक बड़ी भूमिका में नजर आ सकता है क्योंकि सपाक्स ने विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा की है. जिसके लिये संगठन ने उगता सूरज नाम से एक पार्टी बनाने की बात भी कही है. हालांकि, संगठन ने औपचारिक रुप से इस बात की घोषणा नहीं की है. चुनाव लड़ने की योजना के पीछे संगठन का कहना है कि शासकीय योजनाओं की तरह राजनीति में भी लागू आरक्षण देश के विकास में रोरा बना हुआ है. जिसे खत्म करना भी सपाक्स का उद्देश्य है. गठन के बाद से ही सपाक्स के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ा है. जो उसके चुनाव लड़ने की वजह हो सकती है.
बीजेपी-कांग्रेस की राह मुश्किल कर सकता है सपाक्स
सपाक्स का चुनाव लड़ना बीजेपी-कांग्रेस को मुश्किल में डाल सकता है क्योंकि आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी-कांग्रेस फिलहाल साथ खड़ी दिखाई दे रही हैं. जिससे दोनों के खिलाफ सामान्य वर्ग में एक नाराजगी देखी जा रही है. इसी नाराजगी का लाभ सपाक्स राजनीति में उतरकर उठाना चाहता है. संगठन का कहना है कि वह विधानसभा चुनाव में उसकी विचारधारा के संगठन के साथ गठबंधन भी कर सकता है. ऐसा इसलिये कि सपाक्स से जुड़े अधिकांश लोग सरकारी नौकरी में हैं, जो राजनीति नहीं कर सकते हैं. ऐसे में सपाक्स उसकी विचारधारा वाले लोगों के साथ भी जा सकता है. जो चुनाव में उपयोगी भूमिका निभा सकता है.
6 सिंतबर को आयोजित भारत बंद में सपाक्स का रोल
सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC/ST एक्ट में किये गये संसोधन के बाद जहां पहले दलित समाज ने भारत बंद किया था. जिसके बाद सरकार ने इस बिल में संसोधन कर दिया. इस फैसले का विरोध अब देश का सवर्ण समाज कर रहा है. आगामी 6 सितबंर को एक बार फिर भारत बंद करने का आह्वान किया जा रहा है. सपाक्स के अधिकतर सदस्य प्रशानिक हैं, जिसके चलते वह खुलकर भारत बंद का विरोध तो नहीं कर रहे हैं. लेकिन, संगठन के अन्य मोर्चों के सदस्य इसमें बड़ा रोल अदा कर सकते हैं. सपाक्स भी कही-न-कही अंदरुनी तौर से इस बिल का विरोधी बताया जा रहा है.
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