जनजातियों की मातृ भाषा की मदद से ज्ञान परंपरा को संरक्षित करें आईजीएनटीयू में मूल निवासी दिवस पर गोंडी गोठ का आयोजन, कई सांस्कृतिक कार्यक्रम
जनजातियों की मातृ भाषा की मदद से ज्ञान परंपरा को संरक्षित करें
आईजीएनटीयू में मूल निवासी दिवस पर गोंडी गोठ का आयोजन, कई सांस्कृतिक कार्यक्रम
अनूपपुर अमरकटंक /प्रदीप मिश्रा -8770089979
अंतर्राष्ट्रीय मूल निवासी दिवस के अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में गोंडी गोठ का आयोजन कर समृद्ध गोंड इतिहास और भाषा पर विमर्श हुआ। इस अवसर पर विशेषज्ञों ने जनजातियों की मातृ भाषाओं की मदद से ज्ञान परंपरा को संरक्षण और संवर्द्धन देने का आह्वान किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय में जनजातियों की भाषा और कलाओं पर कई कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। गोंडी गोठ का उद्घाटन करते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद् और लुप्तप्रायः भाषा केंद्र के निदेशक प्रो. दिलीप सिंह ने कहा कि गोंडी जनजाति मध्यप्रदेश के साथ गुजरात और महाराष्ट्र तक फैली हुई है। उन्होंने कहा कि गोंड बोली में अन्य भाषाओं के शब्दों को भी सम्मिलित कर इसे समृद्ध बनाया गया है जिससे यह भाषा अभी तक लोकप्रिय बनी हुई है। जिन जनजातीय भाषाओं ने स्वयं को समेटे रखा उन्हीं को लुप्त होने का खतरा है। उन्होंने जनजातियों में ईमानदारी और सत्यनिष्ठा की परंपरा का जिक्र करते हुए उनके आचरण और व्यवहार को विकसित सभ्यताओं से काफी आगे बताया। मुख्य अतिथि यंग थिंकर्स फोरम, भोपाल के आशुतोष सिंह ठाकुर ने कहा कि भारत में भाषा को माता का दर्जा दिया जाता है जिसे यहां के जनजातीय समुदाय ने सदैव अपनी सभ्यता का प्रतीक माना है। उन्होंने कहा कि भारत समन्वयवादी राष्ट्र रहा है जिसमें भाषायी विविधता मौजूद है। अतः कोशिश की जानी चाहिए कि जनजातियों को उनकी ही भाषा में दुनियाभर का ज्ञान उपलब्ध कराया जा सके।
उन्होंने जनजातीय भाषाओं के डाक्यूमेंटेशन के साथ उसकी वाचिक और मौलिक परंपरा को भी जीवित और संरक्षित करने पर जोर दिया। कुलपति प्रो. टी.वी. कटटीमनी ने कहा कि नई शिक्षा नीति में भारतीयों को उनकी मातृभाषा में ज्ञान देने पर जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि भाषा के साथ जनजातीय जीवन पद्धति को भी प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है जिससे पर्यावरण और अन्य सामाजिक चुनौतियों का समाधान किया जा सके। उन्होंने जनजातीय समुदाय में संग्रह न करने की प्रवृत्ति का जिक्र करते हुए इसे समाज के अन्य वर्गों तक पहुंचाने का आह्वान किया। कार्यक्रम का आयोजन लुप्त प्रायः भाषा केंद्र के साथ जनजातीय अध्ययन संकाय, अनुसूचित जाति-जनजाति प्रकोष्ठ और राजभाषा अनुभाग के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। संचालन डॉ. संतोष सोनकर ने किया। अतिथियों का स्वागत हिंदी अधिकारी डॉ. अर्चना श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर प्रो. आलोक श्रोत्रिय, प्रो. खेमसिंह डहेरिया, प्रो. ए.के. शुक्ला, प्रो. रविंद्रनाथ मनुकोंडा सहित बड़ी संख्या में शिक्षक और छात्र उपस्थित थे।
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