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"डॉ. प्रियंका रेड्डी" पर विशेष आलेख। डॉ.प्रियंका त्रिपाठी साहित्यकारा शहडोल मध्य प्रदेश जाके पाँव न फटी बिवाई

"डॉ प्रियंका रेड्डी" पर विशेष लेख

जाके पाँव न फटी बिवाई

आज हमारे शहर में भी 3:00 बजे से मुख्य चौराहे में "डॉ प्रियंका रेड्डी" के साथ हुए अमानुषिक कृत्य पर शोक समारोह के साथ-साथ बलात्कारियों के खिलाफ नारेबाजी एवं कैंडल मार्च का आयोजन किया गया है। जी हाँ! मुझे भी इस अभूतपूर्व कार्यक्रम का हिस्सा बनने का न्यौता एक सामाजिक संस्था के द्वारा आया है, मैं जल्दी-जल्दी अपने घर का काम निपटाने में लग गई, शायद कहीं मेरी भी फोटो आ जाए अखबार में ....उत्साह से भरी में 2:00 बजे से ही तैयार होने लगी और ढूँढने लगी एक काली साड़ी... क्योंकि संस्था का निर्देश था कि सभी बहनें काली साड़ी में आएँगी... आसानी से काली साड़ी मिल गई क्योंकि "Black is my all time favourite colour"....सज- धज के तैयार हो गई मैं... मैचिंग चूड़ियाँ,बिंदी के साथ पूरा मेकअप... तभी मेरा मोबाइल घनघना उठा.. "अरे ! लगता है किसी फ्रेंड का फोन होगा ... देर हो गई मुझे"... यह कहते हुए मैंने कॉल रिसीव किया... मेरी बेटी का फोन था वह भोपाल में इंजीनियरिंग की छात्रा है जैसे ही मैंने हैलो! किया वह जोर-जोर से रोने लगी "माँ! मुझे यहाँ नहीं रहना मुझे एक लड़का बहुत दिनों से परेशान कर रहा है मेरा कहीं भी आना जाना आना जाना मुश्किल हो गया है''... यह सुनते ही मेरे हाथ पैर ठंडे पड़ गए ... हाथ में लिया पर्स जमीन में धड़ से गिर गया.. "हे राम! जी क्या अनर्थ हो रहा"....  मेरी बिटिया बहुत दहशत में थी उसने अपनी पूरी व्यथा मुझसे कह डाली.. मैंने उसे दिलासा देते हुए कहा- "तू डर मत मैं आज ही आती हूँ।"
ये क्या करने जा रही थी मैं ? खुद को देखते हुए मैंने कहा और अपना पूरा मेकअप रगड़ रगड़ के धो डाला... अपने आप को कोसते हुए मैं सर पकड़ कर बैठी गई। 
अभी-अभी मुझे वाकई में डॉ.प्रियंका रेड्डी के उस असहनीय दर्द का एहसास हुआ कैसे झेला होगा उस बच्ची ने सब कुछ ....मुझे अपना शरीर जलता हुआ महसूस हुआ... और पागलों की तरह मैं बाथरूम की तरफ भागी... सॉवर चालू करके उसके नीचे खड़ी हो गई... और फफ़क-फफ़क कर रोने लगी... मेरा मोबाइल बार-बार बज रहा था उस सामाजिक संस्था के कार्यक्रम में नहीं पहुंची ना मैं..... नहीं ! नहीं ! नहीं ! जाना मुझे किसी भी ऐसे ढ़ोग ढकोसले वाले कार्यक्रम में..
जी जनाब ! यह बात सही है जब तक अपने ऊपर ना बीते न.. हम सामने वाले को उसकी तकलीफों के लिए सिर्फ दिलासे के दो शब्द ही बोल पाते हैं ...उसके दर्द को कभी हम महसूस नहीं कर पाते.. कहा भी जाता है कि "जाके पाँव न फटी बिवाई ते का जाने पीर पराई" ....हाथ जोड़कर निवेदन है आप सब से बंद करिए यह दिखावे के आंदोलन, यह कैंडल मार्च, काली साड़ी पहनकर शोक सभा का ढोंग, कुछ हासिल नहीं होना इससे...ना उस पीड़ित आत्मा को शांति मिलेगी और ना ही आप लोग के ढ़ोग से ।
बलात्कार और हत्या की इतनी वारदातें हो चुकी हमारे देश में...कब हमारी सरकार कोई ठोस कदम उठाएगी... कब एक कड़ा कानून बनेगा, ताकि बलात्कारी,  बलात्कार और हत्या करने के पहले सौ बार सोचे.. कब तक हम कलमकार इस तरह की घटनाओं पर खेद व्यक्त करते हुए सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया में अपनी कविताएँ, आलेख आदि छपवाते रहेंगे... क्या कोई असर होते दिख रहा हमारी लेखनी का?... शायद नहीं! 
अभी सोशल मीडिया में यह पोस्ट काफी वायरल हुई कि "जब तक कानून बनाने वालों की बेटियों के साथ ऐसे हादसे नहीं होंगे तब तक शायद कोई कड़ा कानून नहीं बनेगा"  मुझे भी यह बात सही प्रतीत होती है कब दिल दहलेगा हमारी सरकार का और कितनी वारदातों कितनी मौतों का इंतजार है उन्हें... अब किसी भी बच्ची के साथ इस तरह की घटना ना हो... सरकार चलाने वालों से हाथ जोड़कर आग्रह है कि इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएँ और एक कड़ा कानून बनाएँ..

डॉ.प्रियंका त्रिपाठी
साहित्यकारा 
जिला शहडोल

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