“स्वर्णिम प्रदेश” बनने की राह पर अग्रसर “ह्रदय प्रदेश”
डॉ. मुकेश के. मिश्रा
भारत के हृदय में स्थित मध्य प्रदेश, देश का ऐसा राज्य है जो अपने बदलाव की इबारत तेजी से लिख रहा है। आंकड़ों की जादूगरी पर न जाकर यदि राज्य की जमीनी हकीकत देखी जाए तो इस इबारत की हर लकीर साफ दिखाई देगी। जरा सोचिए कि लगभग एक दशक पहले तक मध्य प्रदेश की सड़कों का क्या हाल था? यहां प्रचुर मात्रा में मौजूद प्राकृतिक संसाधन किसके हवाले थे? पर्यटन स्थलों से भरपूर इस राज्य की तरफ सैलानी रुख करने से कतराते क्यों थे? इसका जवाब यह है कि एक दशक पहले राज्य की सत्ता में बैठे लोगों में विजन की कमी थी। ऐसा विजन जो इस सूबे को देश-दुनिया में अलग मुकाम दिला सकता था।
किसी राज्य के तरक्की की कहानी उससे जुड़े आंकड़ों में नहीं बल्कि वहां दुनिया भर से आने वालों अतिथियों में बन रही छवि से देखना अधिक बेहतर होता है। किसी को भी यह जानकर हैरानी हो सकती है कि मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थलों पर देशी-विदेशी पर्यटकों की आमद में खासा बढ़ोतरी हो रही है। बीते दस साल में पर्यटकों में लगभग 10 गुना वृद्धि हुई है। गौरतलब है कि जहां 2005 में 75 लाख पर्यटक एमपी घूमने आये, वहीं 2014 में यह संख्या 6.5 करोड़ गई। दरअसल, अतुल्य भारत के हृदय प्रदेश के रूप में राज्य ने आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देकर देश की सांस्कृतिक एकता को और अधिक मजबूत करने का उदाहरण प्रस्तुत किया है। साँची, महेश्वर, ओंकारेश्वर, उज्जैन, मैहर, अमरकंटक, दतिया (पीताम्बरा पीठ), भोजपुर, पशुपतिनाथ मंदिर (मंदसौर), चित्रकूट, जुगल किशोर जू मंदिर और प्रणामी मंदिर (पन्ना), देवास, रामराजा मंदिर (ओरछा) जैसे धार्मिक-आध्यात्मिक जगहों पर पर्यटक सुविधाएं बढ़ी हैं। बता दें कि मध्यप्रदेश में विश्व धरोहर सूची में शामिल किए गए प्राचीन स्मारकों, मंदिरों के अलावा प्राकृतिक खूबसूरती वाले कई स्थान हैं। इन स्थानों पर खानपान, रहवास एवं अन्य सुविधाओं के विकास के लिए पहली बार व्यवस्थित प्रयास देखने को मिलते हैं। बेशक पर्यटकों के आगमन के कारण उस पर्यटन स्थल की अर्थव्यवस्था में भी सकारात्मक परिवर्तन आता है।
देश में मध्य प्रदेश इकलौता राज्य है जहां प्रत्येक क्षेत्र के लिये पर्यटन गतिविधि को चिन्हित किया गया है। पर्यटन में पूंजी निवेश के लिए निवेश-मित्र पर्यटन नीति बनाई गई है। निजी-सार्वजनिक क्षेत्र की सहभागिता को बढ़ावा दिया गया है। परिणाम है कि पिछले पांच साल में राज्य में पर्यटकों की संख्या लगभग चार गुना बढ़ी है। पर्यटकों की संख्या वर्ष 2006 में 110 लाख थी जो 2012 में 440 लाख से अधिक हो गई है।
मध्यप्रदेश की मौजूदा सरकार के प्रयासों का फल है कि प्रदेश को कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। वर्ष 2013 की राष्ट्रीय श्रेणी में मध्यप्रदेश को बेस्ट सिविक मैनेजमेंट ऑफ अ टूरिस्ट डेस्टिनेशन इन इंडिया- म्युनिस्पिल कॉर्पोरेशन ऑफ माण्डव (माण्डू), मोस्ट इन्नोवेटिव-यूनिक टूरिज्म प्रोजेक्ट-एअर टैक्सी, बेस्ट हेरिटेज स्टेट, बेस्ट इमरजिंग डेस्टिनेशन (इंडिया),बेस्ट हेरिटेज डेस्टिनेशन (इंडिया), बेस्ट डेस्टिनेशन फॉर वाइल्ड-लाइफ (इंडिया),बेस्ट ब्रांड मार्केटिंग कैम्पेन, बेस्ट ईको, वाइल्ड-लाइफ एण्ड नेचर टूरिज्म डेस्टिनेशन, बेस्ट कॉम्प्रीहेन्सिव टूरिज्म डेवलपमेंट अवार्ड मिले हैं।
पिछले साल फरवरी में न्यूयार्क में फ्रेन्ड्स ऑफ एमपी कॉन्क्लेव को सम्बोधित करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जब यह बता रहे थे कि मध्य प्रदेश हिन्दुस्तान का तेजी से विकसित होता हुआ राज्य है तो वहां मौजूद हजारों लोगों को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकि बीते कुछ सालों में मध्य प्रदेश ने इस विकास यात्रा में नए प्रतिमान गढ़े हैं और इसकी अनुगूंज सात समन्दर पार भी सुनाई देती रही है। कई साल से कृषि प्रधान इस राज्य की कृषि विकास दर 20 प्रतिशत और इससे अधिक रही है। यह भी दिलचस्प है कि मध्यप्रदेश की विकास दर 11.08 प्रतिशत है। जो देश के अन्य राज्यों में सर्वाधिक है। एक एजेंसी सीएसओ के अनुमान के अनुसार 2014-15 में राज्य की विकास दर 10.19 प्रतिशत रह सकती है। इसी तरह कृषि विकास दर (अग्रिम अनुमान) 21.04 प्रतिशत रहने की संभावना है।
किसी राज्य के आर्थिक विकास में सबसे बड़ी जरूरत बिजली की उपलब्धता है। लगभग 15044 मेगावाट बिजली की क्षमता के साथ सरप्लस बिजली वाला राज्य है। साल 2005 में महज 6000 मेगावॉट बिजली उपलब्ध थी। दस साल पहले मध्य प्रेदश में जहां घंटों अंधेरा कायम रहता था वहीं आज 24 घंटे बिजली का उजाला मिल रहा है। कृषि कार्यों के लिए दस घंटे बिजली उपलब्ध है। उत्तर प्रदेश, छतीसगढ़ जैसे कई पड़ोसी राज्य जहां बिजली की भारी कमी से जूझ रहे हैं वहीं मध्य प्रदेश ने मांग और आपूर्ति की खाई को पाट दिया है। औद्योगिक बिजली की उपलब्धता में भी राज्य काफी आगे निकल गया है। राज्य सरकार ने बीते दस साल में निजी क्षेत्र में बिजली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए तमाम प्रयास किए हैं। यह जानना जरूरी है कि कभी बीमारू राज्यों में शामिल मध्य प्रदेश में बीते एक दशक में 244 बड़े उद्योग लगे हैं। जिसमें 47,029 करोड़ पूंजी का निवेश हुआ है। इसके अलावा लगभग डेढ़ लाख करोड़ के निवेश की जमीन तैयार है। सूबे में 18 नए औद्योगिक क्षेत्र, तीन आईटी पार्क तथा 13 औद्योगिक विकास केंद्रों को विकसित किया जा रहा है। जो भविष्य में रोजगार अवसरों को बढ़ाने में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं। सात क्षेत्रीय उद्योग संरचना विकास निगमों की स्थापना करके सरकार ने उद्योग जगत को बड़ी सौगात दी है। साथ ही चार नए इंडस्ट्रियल कॉरिडोर भोपाल-इंदौर, भोपाल-बीना, जबलपुर- सिंगरौली, और गुना-मुरैना आने वाले दिनों में सूबे की नई औद्योगिक कहानी लिखेंगे।
तेजी बदल रहे तकनीकी वातावरण में मध्य प्रदेश ही ऐसा राज्य है जो ई-गवर्नेंस की डगर पर सबसे तेज दौड़ कर आगे निकल गया है। बीते पांच साल में इसके लिए इस राज्य को कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। राज्य सरकार ने व्यापार संवर्धन मण्डल का गठन कर कारोबारियों के लिए आने वाली मुश्किलों को आसान कर दिया है। इससे यहां नया कारोबार स्थापित करना बेहद सरल है।
एक सच यह भी है कि कुछ साल पहले तक अपनी खस्ताहाल सड़कों के लिए बदनाम हो चुके मध्य प्रदेश अपनी शानदार सड़कों के लिए सराहा जाने लगा है। बीते दस साल में राज्य सरकार ने सड़कों पर 25 हजार करोड़ रूपए खर्च इस क्षेत्र में करके बेजोड़ सुधार किया है। बीते एक दशक में यहां 15 हजार किलोमीटर सड़कों का निर्माण हुआ है जो राज्य के विकास में बेहद कारगर साबित हुआ है।
किसी भी विकास की समग्रता तभी सार्थक है जब उसमें शिक्षा की तरक्की का समावेश हो। ऐसे में बीता दशक मध्य प्रदेश के इतिहास में अहम पड़ाव है। नतीजतन सूबे में साक्षरता दर 64 से बढ़कर 71 फीसद हो गई है। तमाम राष्ट्रीय स्तर शैक्षिक परिसरों से लैस मध्य प्रदेश में 2004-05 के मुकाबले शिक्षण संस्थानों की संख्या आज चार गुना अधिक है। उच्च शिक्षा के लिए ऋण गारंटी योजना यहां के विध्यार्थियों के लिए आगे की राह आसान कर दिया है। राज्य में जहां 2004 में महज 162 आटीआई कॉलेज थे वहीं 2015 में 272 हैं। तकनीकी संस्थान 186 थे जो अब 728 हो गए हैं।
किसी राज्य में प्रति व्यक्ति आय का बढ़ना आर्थिक दृष्टि से अच्छे संकेत हैं। आम आदमी की आय के मामले में पिछला दशक मील का पत्थर साबित हुआ है। बता दें कि 2003-04 में राज्य की प्रति व्यक्ति आय 14,011 रुपये थी जो वर्ष 2014-15 में 59,770 रुपए हो गई है। बेशक पिछले दस साल में वित्तीय समझ-बूझ से मध्य प्रदेश ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत सूबे में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में वर-वधू को विवाह के लिये 25 हजार रुपये की सहायता देने के साथ ही स्वच्छ शौचालय के निर्माण के लिये पात्रतानुसार 12,000 रुपये की मदद दिया जा रहा है। इस तरह की सुविधा देने वाला मध्य प्रदेश संभवतः देश में पहला राज्य है।
मध्य प्रदेश की जनता को स्वास्थ्य सेवाएं पाने की भी गारंटी हासिल है। स्वास्थ्य सेवा गारंटी योजना के तहत आमजन को सरकारी अस्पतालों से 18 प्रकार की स्वास्थ्य सेवाएं मिलने की गारंटी है। इन सेवाओं में शासकीय अस्पतालों में निःशुल्क जांच, उपचार, दवा वितरण एवं भोजन, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, पांच वर्ष से कम उम्र के कुपोषित बच्चों के लिए पुनर्वास सेवा, शिशुओं का पूर्ण टीकाकरण, हर गर्भवती एवं शिशु के लिए जननी एक्सप्रेस एवं आपातकालीन चिकित्सा सेवा के लिए 108 सेवा शामिल हैं। सूबे में लगभग 50 हजार ग्रामीण आरोग्य केंद्र भी स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ी सहायता दे रहे हैं।
लेखक जाने-माने पत्रकार, लेखक, स्तम्भकार हैं। सम्प्रति- दत्तोपन्त ठेंगड़ी शोध संस्थान, भोपाल में निदेशक हैं।

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