उस मिथक को भी तोड़ेंगे "शिवराज"
"....अखडा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी का दावा
राकेश अग्निहोत्री(सवाल दर सवाल)
अखाड़ा परिषद और शासन-प्रशासन के आला अधिकारियों के बीच हुई अहम और निर्णायक बैठक में यदि सिंहस्थ के शाही स्नान की तारीखों के साथ अखाड़ों की प्रवेशाई मार्ग और तारीख पर अंतिम मुहर लगाए जाने के बाद साधु-संत संतुष्ट ही नहीं बल्कि गदगद और खुश नजर आए कि परिषद की कमान संभालने वाले महंत नरेंद्र गिरि ने ये ऐलान भी कर डाला कि शिवराज उस मिथक को भी तोड़ेंगे जो सिंहस्थ के बाद मुख्यमंत्री बदलने से जुड़ा है। उज्जैन के इतिहास में संभवतः ये पहला मौका है जब सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि न सिर्फ बैठक में शामिल हुए बलि्क उन्होंने अंदर ही नहीं बाहर मीडिया से चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री की विनम्रता की तारीफ कर भरोसे पर खरा उतरने का दावा भी कर दिया। वह भी तब जब कुछ दिन पहले तक 3 अखाड़ों के समर्थन को लेकर असमंजस कायम था, अब उनका कहना है कि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और प्रभारी मंत्री पर उन्हें पूरा भरोसा है और तैयारियां इस बात का संकेत हैं कि सिंहस्थ-2016 एक नया इतिहास रचेगा। फिर भी सवाल खड़ा होना लाजमी है कि तैयारियों की जमीनी हकीकत क्या है? कहीं तैयारियों में यदि पिछड़ गए हैं तो क्या समय रहते सब दुरुस्त हो जाएगा?आखिर वजह क्या जो शिवराज के मुरीदों मे संत साधू और आध्यात्म्गुरु शामिल हो कर सिंहस्थ में उनका गुणगान करने लगे है।
शिवराज सिंह चौहान ने पहले भी कई मिथक तोड़कर न सिर्फ सरकार चलाई है बल्कि सत्ता में लौटने के लिए चुनाव भी बीजेपी को अपने दम पर जिताए हैं। जहां तक बात मिथक की है तो चौहान ने जब पहली बार सरकार की कमान संभाली थी तब 2 मुख्यमंत्री बदल चुके थे और उन्होंने न सिर्फ बीजेपी और सरकार को अस्थिरता से बाहर निकाला बल्कि 5 साल का कार्यकाल पूरा कर उस मिथक को तोड़ दिया जो समयसीमा पूरा करने को लेकर चर्चा में रहा। यही नहीं लगातार बीजेपी को दूसरी और तीसरी बार सरकार में बनाए रखकर कांग्रेस के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया जो दिग्विजय सिंह के 10 साल से जुड़ा था। मिथक तोड़ना और नए कीर्तिमान बनाकर नया इतिहास रचने वाले शिवराज प्रदेश की आम जनता के साथ देश के जाने माने साधु, संत, महंत, आचार्य और आध्यात्मिक गुरु के बीच अपनी विनम्रता के कारण कितने लोकप्रिय हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उज्जैन पहुंचे अखाड़ा परिषद के हर प्रतिनिधि ने सामूहिक तौर पर न सिर्फ उन्हें भरोसेमंद बल्कि अपेक्षाओं पर खरा उतरकर दिखाने वाला सीएम करार दिया। परिषद की बैठक के तुरंत बाद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने मीडिया से ये कहकर सभी को चौका दिया कि शिवराज सिंहस्थ के बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहेंगे। जो ये सोचते हैं कि सिंहस्थ के बाद सीएम को जाना होता है उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी। नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान की कैमिस्ट्री इन दिनों चर्चा में है क्योंकि मोदी मध्यप्रदेश की यदि कई यात्राएं कर चुके हैं तो सिंहस्थ के पहले अंबेडकर जयंती पर महू आ रहे हैं वो भी उस 14 अप्रैल को जो उन्हें मध्यप्रदेश ले आती है चाहे वो 14 मई का उज्जैन का प्रस्तावित वैचारिक महाकुंभ ही क्यों न हो। मध्यप्रदेश के गठन के बाद पहला सिंहस्थ तात्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व में वर्ष 1968 में आयोजित हुआ और उसके 11 माह के भीतर ही 12 मार्च 1969 को गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। उसके बाद 1980 में तात्कालीन मुख्यमंत्री विरेंद्र कुमार सकलेचा ने सिंहस्थ की तैयारियां शुरू करवाईं। सिंहस्थ शुरू होने से पहले ही 19 जनवरी 1980 को उनकी कुर्सी चली गई और 20 जनवरी 1980 को सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री बने, 17 फरवरी 1980 वे भी रुखसत हो गए और 18 फरवरी 1980 को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागे हो गया। राष्ट्रपति शासन में ही सिंहस्थ संपन्न हुआ। मार्च 1990 में मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए पटवा ने सिंहस्थ का सफल आयोजन किया। सिंहस्थ के बाद 15 दिसंबर 1992 को उनकी कुर्सी जाती रही और अयोध्या में विवादास्पद ढांचा विध्वंस के कारण राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। 2004 के सिंहस्थ के लिए दिग्विजय सिंह ने तैयारियां शुरू करवाई थी। सिहस्थ शुरू होने से पहले हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा और सत्ता उनके हाथ से चली गई। उसके बाद उमाभारती ने मुख्यमंत्री पद संभाला और सिंहस्थ का सफल आयोजन संपन्न करवाया। 23 अगस्त 2004 को उनकी भी कुर्सी चली गई थी।
सिंहस्थ-2016 के पहले शाही स्नान 22 अप्रैल यानी समय 38 दिन शेष हैं और फिलहाल घाटों जहां श्रद्धालु स्नान करेंगे, वहां से लेकर अखाड़ों और साधु संतों के डेरा स्थल पर सब कुछ पूरा हो गया हो ऐसा नहीं है लेकिन ये भी सच है कि प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह के क्षेत्र में डेरा डाल लेने के बाद शासन प्रशासन हों या फिर निजी एजेंसियां सभी के लिए एक समयसीमा के अंदर काम पूरा करने का अल्टीमेटम जारी कर दिया गया है। 13 अखाड़ों के क्षेत्र को छोड़ दिया जाए तो शौचालय का निर्माण अभी चल रहा है तो पेयजल और बिजली जैसी प्राथमिक जरूरतों को लेकर उठापटक जारी है। अच्छी बात ये है कि अखाड़ा परिषद से जुड़े सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि तैयारियों से संतुष्ट हैं जिन्होंने न सिर्फ शासन द्वारा घोषित किए गए शाही स्नान की तारीखों पर अपनी मुहर लगा दी बल्कि प्रवेशाई की प्रस्तावित तारीख और मार्ग पर भी प्रशासन के सभी सुझावों को मान लिया। प्रवेशाई पंचदशनाम जूना अखाड़ा की पहली प्रवेशाई 27 मार्च को शुरू होने से पहले मार्ग में अतिक्रमण को लेकर प्रशासन चौकन्ना हो गया है। आधे अधूरे विकास कार्यों के बाद भी प्रशासन और अखाड़ों के बीच यदि बेहतर तालमेल दिखाई दे रहा है तो उसके तीन बड़े कारण हैं। पहला - सीएम शिवराज का सभी साधु संतों से सीधा व्यक्तित संपर्क और सम्मान के साथ उन्हें दिया गया न्योता। दूसरा - मुख्यमंत्री के सबसे भरोसेमंद भूपेंद्र सिंह जो उज्जैन के प्रभारी मंत्री के तौर पर न सिर्फ एक्टिव हैं बल्कि एक्शन में भी नजर आ रहे हैं और अब फैसले तत्परता के साथ सियासी तौर पर भी लिए जाने लगे हैं जिससे आरोपों के घेरे में आए प्रशासन को भी कदमताल करने को मजबूर होना पड़ा है। तीसरा - बड़ा कारण महंत नरेंद्र गिरि का अध्यक्ष चुना जाना और सभी अखाड़ों को भरोसे में लेकर आगे बढ़ना है जिनकी प्रशासन से नाराजगी अब अंदर की बात रह गई है और उन्हें भरोसा है िक मुख्यमंत्री की सकारात्मक सोच और प्रभारी मंत्री का सहयोगात्मक रवैया सिंहस्थ की उन कमजोर कड़ियों को समय रहते मजबूत कर देगा जो हकीकत में तैयारियों को लेकर मानो एक पखवाड़े पीछे चल रहा था और अब चौतरफा मोर्चा खोलकर प्राथमिकताओं को पूरा किया जा रहा है िजससे माहौल बनने लगा है। अगले एक हफ्ते में क्षेत्र में रौनक आना तय है क्योंकि भगवा अपना रंग दिखाने लगा है, बस इंतजार है तो पहली प्रवेशाई का जिसकी अगुवाई जूना अखाड़ा के संत आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि करेंगे। सिंहस्थ की केंद्रीय समिति के अध्यक्ष माखन सिंह और प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह की जुगलबंदी पटरी पर है इसलिए अधिकारियों के भी कान खड़े हो गए हैं। ऐसा नहीं कि कलेक्टर, कमिश्नर और मेला अधिकारी अपनी भूमिका को लेकर चर्चा में नहीं हैं, खासतौर से बीजेपी के स्थानीय नेता इन अधिकारियों के बारे में बहुत कुछ कहते हुए सुने जा सकते हैं जिन्हें मलाल है कि उनकी अनदेखी की गई है। नेता हों या कार्यकर्ता उनकी िचंता जायज है जो कहते हैं कि सफलता से यदि नाम शिवराज और उनकी सरकार का होगा तो बदनामी नहीं होने के लिए बीजेपी को नई और पुरानी पीढ़ी के कार्यकर्ताओं को भरोसे में लेने होगा जो कहने को समितियों में एडजस्ट किए गए हैं लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। जहां तक बात विकास कार्यों की है तो उसका नजारा मेला क्षेत्र में ही नहीं उज्जैन के सभी 6 प्रवेश द्वार पर देखने को मिल सकता है। यदि अब जो तेजी आई है वो करीब 2 हफ्ते पहले नजर आती तो शायद सब कुछ समय पर सही हो जाता लेकिन ये भी सच है कि देर आए दुरुस्त आए। सरकार और शिवराज के लिए अच्छी खबर ये है कि साधु संत संतुष्ट ही नहीं खुश भी हैं तो फिर मीनमैख निकालने को कोई मतलब नहीं और सिंहस्थ 2016 एक नया कीर्तिमान रचेगा जो पिछले 2004 की तुलना में न िसर्फ भव्य, आधुनिक और यादगार ही नहीं बल्कि उसमें अहम संदेश भी देश दुनिया के लिए छुपे होंगे क्योंकि संघ प्रमुख मोहन भागवत और पीएम मोदी एक दिन के अंतर से ही सही उज्जैन के निनौरा में होने वाले वैचारिक महाकुंभ में शिरकत करने आ रहे हैं जिसमें कई देशों के नुमाइंदों के साथ विचारक और आध्यात्मिक गुरु उनके साथ शिरकत करेंगे।
राकेश अग्निहोत्री
(लेखक स्वराज एक्सप्रेस mp .cg के पोलिटिकल एडीटर)
राकेश अग्निहोत्री(सवाल दर सवाल)
अखाड़ा परिषद और शासन-प्रशासन के आला अधिकारियों के बीच हुई अहम और निर्णायक बैठक में यदि सिंहस्थ के शाही स्नान की तारीखों के साथ अखाड़ों की प्रवेशाई मार्ग और तारीख पर अंतिम मुहर लगाए जाने के बाद साधु-संत संतुष्ट ही नहीं बल्कि गदगद और खुश नजर आए कि परिषद की कमान संभालने वाले महंत नरेंद्र गिरि ने ये ऐलान भी कर डाला कि शिवराज उस मिथक को भी तोड़ेंगे जो सिंहस्थ के बाद मुख्यमंत्री बदलने से जुड़ा है। उज्जैन के इतिहास में संभवतः ये पहला मौका है जब सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि न सिर्फ बैठक में शामिल हुए बलि्क उन्होंने अंदर ही नहीं बाहर मीडिया से चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री की विनम्रता की तारीफ कर भरोसे पर खरा उतरने का दावा भी कर दिया। वह भी तब जब कुछ दिन पहले तक 3 अखाड़ों के समर्थन को लेकर असमंजस कायम था, अब उनका कहना है कि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और प्रभारी मंत्री पर उन्हें पूरा भरोसा है और तैयारियां इस बात का संकेत हैं कि सिंहस्थ-2016 एक नया इतिहास रचेगा। फिर भी सवाल खड़ा होना लाजमी है कि तैयारियों की जमीनी हकीकत क्या है? कहीं तैयारियों में यदि पिछड़ गए हैं तो क्या समय रहते सब दुरुस्त हो जाएगा?आखिर वजह क्या जो शिवराज के मुरीदों मे संत साधू और आध्यात्म्गुरु शामिल हो कर सिंहस्थ में उनका गुणगान करने लगे है।
शिवराज सिंह चौहान ने पहले भी कई मिथक तोड़कर न सिर्फ सरकार चलाई है बल्कि सत्ता में लौटने के लिए चुनाव भी बीजेपी को अपने दम पर जिताए हैं। जहां तक बात मिथक की है तो चौहान ने जब पहली बार सरकार की कमान संभाली थी तब 2 मुख्यमंत्री बदल चुके थे और उन्होंने न सिर्फ बीजेपी और सरकार को अस्थिरता से बाहर निकाला बल्कि 5 साल का कार्यकाल पूरा कर उस मिथक को तोड़ दिया जो समयसीमा पूरा करने को लेकर चर्चा में रहा। यही नहीं लगातार बीजेपी को दूसरी और तीसरी बार सरकार में बनाए रखकर कांग्रेस के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया जो दिग्विजय सिंह के 10 साल से जुड़ा था। मिथक तोड़ना और नए कीर्तिमान बनाकर नया इतिहास रचने वाले शिवराज प्रदेश की आम जनता के साथ देश के जाने माने साधु, संत, महंत, आचार्य और आध्यात्मिक गुरु के बीच अपनी विनम्रता के कारण कितने लोकप्रिय हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उज्जैन पहुंचे अखाड़ा परिषद के हर प्रतिनिधि ने सामूहिक तौर पर न सिर्फ उन्हें भरोसेमंद बल्कि अपेक्षाओं पर खरा उतरकर दिखाने वाला सीएम करार दिया। परिषद की बैठक के तुरंत बाद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने मीडिया से ये कहकर सभी को चौका दिया कि शिवराज सिंहस्थ के बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहेंगे। जो ये सोचते हैं कि सिंहस्थ के बाद सीएम को जाना होता है उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी। नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान की कैमिस्ट्री इन दिनों चर्चा में है क्योंकि मोदी मध्यप्रदेश की यदि कई यात्राएं कर चुके हैं तो सिंहस्थ के पहले अंबेडकर जयंती पर महू आ रहे हैं वो भी उस 14 अप्रैल को जो उन्हें मध्यप्रदेश ले आती है चाहे वो 14 मई का उज्जैन का प्रस्तावित वैचारिक महाकुंभ ही क्यों न हो। मध्यप्रदेश के गठन के बाद पहला सिंहस्थ तात्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व में वर्ष 1968 में आयोजित हुआ और उसके 11 माह के भीतर ही 12 मार्च 1969 को गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। उसके बाद 1980 में तात्कालीन मुख्यमंत्री विरेंद्र कुमार सकलेचा ने सिंहस्थ की तैयारियां शुरू करवाईं। सिंहस्थ शुरू होने से पहले ही 19 जनवरी 1980 को उनकी कुर्सी चली गई और 20 जनवरी 1980 को सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री बने, 17 फरवरी 1980 वे भी रुखसत हो गए और 18 फरवरी 1980 को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागे हो गया। राष्ट्रपति शासन में ही सिंहस्थ संपन्न हुआ। मार्च 1990 में मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए पटवा ने सिंहस्थ का सफल आयोजन किया। सिंहस्थ के बाद 15 दिसंबर 1992 को उनकी कुर्सी जाती रही और अयोध्या में विवादास्पद ढांचा विध्वंस के कारण राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। 2004 के सिंहस्थ के लिए दिग्विजय सिंह ने तैयारियां शुरू करवाई थी। सिहस्थ शुरू होने से पहले हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा और सत्ता उनके हाथ से चली गई। उसके बाद उमाभारती ने मुख्यमंत्री पद संभाला और सिंहस्थ का सफल आयोजन संपन्न करवाया। 23 अगस्त 2004 को उनकी भी कुर्सी चली गई थी।
सिंहस्थ-2016 के पहले शाही स्नान 22 अप्रैल यानी समय 38 दिन शेष हैं और फिलहाल घाटों जहां श्रद्धालु स्नान करेंगे, वहां से लेकर अखाड़ों और साधु संतों के डेरा स्थल पर सब कुछ पूरा हो गया हो ऐसा नहीं है लेकिन ये भी सच है कि प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह के क्षेत्र में डेरा डाल लेने के बाद शासन प्रशासन हों या फिर निजी एजेंसियां सभी के लिए एक समयसीमा के अंदर काम पूरा करने का अल्टीमेटम जारी कर दिया गया है। 13 अखाड़ों के क्षेत्र को छोड़ दिया जाए तो शौचालय का निर्माण अभी चल रहा है तो पेयजल और बिजली जैसी प्राथमिक जरूरतों को लेकर उठापटक जारी है। अच्छी बात ये है कि अखाड़ा परिषद से जुड़े सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि तैयारियों से संतुष्ट हैं जिन्होंने न सिर्फ शासन द्वारा घोषित किए गए शाही स्नान की तारीखों पर अपनी मुहर लगा दी बल्कि प्रवेशाई की प्रस्तावित तारीख और मार्ग पर भी प्रशासन के सभी सुझावों को मान लिया। प्रवेशाई पंचदशनाम जूना अखाड़ा की पहली प्रवेशाई 27 मार्च को शुरू होने से पहले मार्ग में अतिक्रमण को लेकर प्रशासन चौकन्ना हो गया है। आधे अधूरे विकास कार्यों के बाद भी प्रशासन और अखाड़ों के बीच यदि बेहतर तालमेल दिखाई दे रहा है तो उसके तीन बड़े कारण हैं। पहला - सीएम शिवराज का सभी साधु संतों से सीधा व्यक्तित संपर्क और सम्मान के साथ उन्हें दिया गया न्योता। दूसरा - मुख्यमंत्री के सबसे भरोसेमंद भूपेंद्र सिंह जो उज्जैन के प्रभारी मंत्री के तौर पर न सिर्फ एक्टिव हैं बल्कि एक्शन में भी नजर आ रहे हैं और अब फैसले तत्परता के साथ सियासी तौर पर भी लिए जाने लगे हैं जिससे आरोपों के घेरे में आए प्रशासन को भी कदमताल करने को मजबूर होना पड़ा है। तीसरा - बड़ा कारण महंत नरेंद्र गिरि का अध्यक्ष चुना जाना और सभी अखाड़ों को भरोसे में लेकर आगे बढ़ना है जिनकी प्रशासन से नाराजगी अब अंदर की बात रह गई है और उन्हें भरोसा है िक मुख्यमंत्री की सकारात्मक सोच और प्रभारी मंत्री का सहयोगात्मक रवैया सिंहस्थ की उन कमजोर कड़ियों को समय रहते मजबूत कर देगा जो हकीकत में तैयारियों को लेकर मानो एक पखवाड़े पीछे चल रहा था और अब चौतरफा मोर्चा खोलकर प्राथमिकताओं को पूरा किया जा रहा है िजससे माहौल बनने लगा है। अगले एक हफ्ते में क्षेत्र में रौनक आना तय है क्योंकि भगवा अपना रंग दिखाने लगा है, बस इंतजार है तो पहली प्रवेशाई का जिसकी अगुवाई जूना अखाड़ा के संत आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि करेंगे। सिंहस्थ की केंद्रीय समिति के अध्यक्ष माखन सिंह और प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह की जुगलबंदी पटरी पर है इसलिए अधिकारियों के भी कान खड़े हो गए हैं। ऐसा नहीं कि कलेक्टर, कमिश्नर और मेला अधिकारी अपनी भूमिका को लेकर चर्चा में नहीं हैं, खासतौर से बीजेपी के स्थानीय नेता इन अधिकारियों के बारे में बहुत कुछ कहते हुए सुने जा सकते हैं जिन्हें मलाल है कि उनकी अनदेखी की गई है। नेता हों या कार्यकर्ता उनकी िचंता जायज है जो कहते हैं कि सफलता से यदि नाम शिवराज और उनकी सरकार का होगा तो बदनामी नहीं होने के लिए बीजेपी को नई और पुरानी पीढ़ी के कार्यकर्ताओं को भरोसे में लेने होगा जो कहने को समितियों में एडजस्ट किए गए हैं लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। जहां तक बात विकास कार्यों की है तो उसका नजारा मेला क्षेत्र में ही नहीं उज्जैन के सभी 6 प्रवेश द्वार पर देखने को मिल सकता है। यदि अब जो तेजी आई है वो करीब 2 हफ्ते पहले नजर आती तो शायद सब कुछ समय पर सही हो जाता लेकिन ये भी सच है कि देर आए दुरुस्त आए। सरकार और शिवराज के लिए अच्छी खबर ये है कि साधु संत संतुष्ट ही नहीं खुश भी हैं तो फिर मीनमैख निकालने को कोई मतलब नहीं और सिंहस्थ 2016 एक नया कीर्तिमान रचेगा जो पिछले 2004 की तुलना में न िसर्फ भव्य, आधुनिक और यादगार ही नहीं बल्कि उसमें अहम संदेश भी देश दुनिया के लिए छुपे होंगे क्योंकि संघ प्रमुख मोहन भागवत और पीएम मोदी एक दिन के अंतर से ही सही उज्जैन के निनौरा में होने वाले वैचारिक महाकुंभ में शिरकत करने आ रहे हैं जिसमें कई देशों के नुमाइंदों के साथ विचारक और आध्यात्मिक गुरु उनके साथ शिरकत करेंगे।
राकेश अग्निहोत्री
(लेखक स्वराज एक्सप्रेस mp .cg के पोलिटिकल एडीटर)
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