महाशिवरात्रि में लाये हैं हम आपके लिए कुछ खास पढ़े केवल एमपी ऑनलाइन न्यूज़ में
महाशिवरात्रि के मौके पर शिवालयों में रात-रात भर विशेष पूजा अनुष्ठान किए जाते हैं। देशभर में शिवजी के कई अद्भुत मंदिर हैं। हर मंदिर के निर्माण की अपनी कहानी है। ऐसा ही एक मंदिर है ककनमठ, जो एमपी के ग्वालियर जिले में है। लोगों की मान्यता है कि इसका निर्माण एक रात में भूतों ने किया था।
ककनमठ मंदिर ...
यह मंदिर एमपी के ग्वालियर शहर से करीब 60 किमी दूरी पर है।
- मंदिर को लेकर एक किंवदंती है कि इसे भूतों ने एक रात में बनाया था। बनाते- बनाते सुबह हो गई और भूतों को काम अधूरा छोड़कर जाना पड़ा।
- आज भी इस मंदिर को देखने यही लगता है जैसे इसका निर्माण अधूरा छोड़ दिया गया हो।
- हालांकि, भूतों जुड़ी कथा को लेकर कोई दावा नहीं किया जा सकता, पर मंदिर करीब 1000 साल पुराना है।
- कई तो प्रमाणिक रूप से यह भी कहते हैं कि इसका निर्माण कछवाहा राजवंश के राजा कीर्तिराज के कार्यकाल के दौरान हुआ था।
(24 फरवरी को शिवरात्रि है, इस मौके पर www.mponlinenews.com विशेष सीरीज के तहत अनोखे शिवमंदिरों की जानकारी दे रहा है।)
पत्नी की इच्छा पूरी करने बना मंदिर
- कहते हैं कि कीर्तिराज ने रानी ककनवती की इच्छा को पूरा करने के लिए 11वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण कराया गया था।
- ककनमठ मंदिर के निर्माण में कहीं भी चूने-गारे का उपयोग नहीं किया गया।
- मंदिर की ऊंचाई 115 फीट है। मंदिर के गर्भ गृह में विशाल एवं अद्भुत शिवलिंग स्थापित है।
- ककनमठ मंदिर उत्तर भारतीय शैली में बना है।
महाकालेश्वर (उज्जैन)
प्राचीन भारत में ‘अवन्तिका’ नाम से विख्यात इस शहर को साक्षात ‘महाकाल’ का आशीर्वाद प्राप्त है। ऐसा कहा जाता है की यह क्षेत्र धरती की ‘नाभि’ में बसा हुआ है। ‘महाकालेश्वर’ भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। परमपिता परमात्मा ‘शिव’ यहां स्वयं अपनी इच्छा से अवन्तिका की रक्षा के लिए ‘अवस्थित’ हुए थे। श्रावण मास को पूरी दुनिया से लाखों लोग भोले बाबा की शरण में उज्जैन आते हैं। मध्यकालीन इतिहासकारों के मुताबिक़ 1234 ईस्वी में ‘गुलामवंश’ के सुल्तान इल्तुतमिश ने आक्रमण करके इस मंदिर को क्षति पहुंचाने की कोशिश की। बाद में यहां के शासकों ने इसका पुन: जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण किया।
ओमकारेश्वर मंदिर (खंडवा)
प्राचीन भारत में ‘अवन्तिका’ नाम से विख्यात इस शहर को साक्षात ‘महाकाल’ का आशीर्वाद प्राप्त है। ऐसा कहा जाता है की यह क्षेत्र धरती की ‘नाभि’ में बसा हुआ है। ‘महाकालेश्वर’ भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। परमपिता परमात्मा ‘शिव’ यहां स्वयं अपनी इच्छा से अवन्तिका की रक्षा के लिए ‘अवस्थित’ हुए थे। श्रावण मास को पूरी दुनिया से लाखों लोग भोले बाबा की शरण में उज्जैन आते हैं। मध्यकालीन इतिहासकारों के मुताबिक़ 1234 ईस्वी में ‘गुलामवंश’ के सुल्तान इल्तुतमिश ने आक्रमण करके इस मंदिर को क्षति पहुंचाने की कोशिश की। बाद में यहां के शासकों ने इसका पुन: जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण किया।
ओमकारेश्वर मंदिर (खंडवा)
सनातन शास्त्रों के अनुसार कोई भी तीर्थयात्री देश के भले ही सारे तीर्थ कर ले किन्तु जब तक वह पवित्र नर्मदा के तीरे स्थित ओंकारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर शिवलिंग में अर्पित नहीं करता तब तक उसके सारे तीर्थों का पुण्य अधूरा माना जाता है। यह ‘शिवलिंग’ द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। ओंकारेश्वर शिवलिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं है, अपितु यह प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चहुं और जल भरा होता है। ‘शिवलिंग’ मन्दिर के गुम्बद के नीचे भी नहीं है।
भोजेश्वर मंदिर (भोजपुर)
भोपाल से 32 किलोमीटर की दूरी पर ‘रायसेन’ जिले में स्थित यह मंदिर ‘उत्तर भारत का सोमनाथ’ कहलाता है। भोजपुर मंदिर तथा उसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज द्वारा की गई थी। स्थानीय मान्यता के अनुसार माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण ‘प्रथमतः’ पांडवों द्वारा माता कुंती की पूजा के लिए किया गया था तथा शिवलिंग को महज एक रात में निर्मित किया गया था।यह मंदिर वर्गाकार है, जिसका बाह्य विस्तार बहुत बड़ा है। मंदिर चार स्तंभों के सहारे पर खड़ा है। देखने पर इसका आकार हाथी की सूंड के समान लगता है।
सिद्धेश्वर महादेव (अलीराजपुर)
सतपुड़ा और विंध्याचल की पहाड़ियों को स्पर्श करता जोबट से करीब 5 किमी दूर ग्राम उंडारी के अति प्राचीन सिद्धेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है की स्थानीय नरेश महाराजा भीम सिंह को भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन दिया के वे, उंडारी के नाले में जगे हुए हैं और आदेश दिया की उन्हें बाहर निकालकर विधिवत स्थापित किया जाए। राजा ने प्रतिमा को निकालकर नाले के समीप खंडहर जगह पर मंदिर बनवाया। इस स्थान पर भक्तों की सभी प्रकार की मनोकामनायें पूरी होती है।
ज्वालेश्वर महादेव मंदिर (अनूपपुर)
श्री ज्वालेश्वर मंदिर अमरकंटक से 8 किमी की दूरी पर स्थित है। यह खूबसूरत मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। स्थानीय मान्यताओं के मुताबिक़ भगवान शिव ने यहां स्वयं अपने हाथों से शिवलिंग स्थापित किया था और मैकाल की पहाड़ियों में असंख्य शिवलिंग के रूप में बिखर गए थे। माना जाता है कि भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ इस रमणीय स्थान पर निवास करते थे। इस स्थान का पौराणिक महत्व इसे और महान स्थल बना देता है। शिवपुत्री माँ नर्मदा की गोद में बसे ‘अमरकंटक’ के खूबसूरत झरने, हरी-भरी प्रकृति संपदा ,ऊंची पहाड़ियों और शांत वातावरण आपको शिवकृपा के साथ असीम शान्ति का अनुभव कराएगा।
कन्दारिया महादेव (खजुराहों)
यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध खजुराहों का सबसे बड़ा मंदिर है। मंदिरों की उत्कृष्ट वास्तुकला, उनकी भित्तियों पर जड़ी सर्वोत्तम मूर्तिकला तथा सुव्यस्थित शिल्पकला के कारण इसका नाम यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में भी दर्ज है। इस मंदिर का निर्माण चंदेल नरेश ‘विद्याधर’ ने 950 से 1100 ईस्वी के बीच करवाया था। यह मंदिर हिंदू वास्तुकला और मूर्तिकला के सबसे बेहतरीन नमूनों में से एक है। इसकी देखरेख पुरातत्व विभाग(ASI) द्वारा की जाती है।
पशुपतिनाथ मंदिर (मंदसौर)
मंद्सौरी (मंदोदरी) के नगर में भगवान पशुपतिनाथ की प्रतिमान की स्थापना का कोई प्रमाणिक इतिहास नहीं है। पूरे संसार में शिवजी के अनेकों शिवलिंग हैं लेकिन अष्टमुखी शिवलिंग यह एक मात्रक ही है। शिव के आठों मुख भगवान शिव के अष्ट तत्व को दर्शाते हैं। सावन के महीने में यह श्रध्दालुओं का बड़ा तांता लगता है। भगवान आशुतोष की कृपा से यहां भक्तों के सारे कष्ट दूर होते हैं।
महामृत्युंजय मंदिर(रीवा)
सफ़ेद शेरों की भूमि विन्ध्य क्षेत्र(रीवा) में स्थित यह महान मंदिर अनादिकाल से यहां मौजूद है। यहां शिवलिंग अन्यत्र शिवलिंगों से पूर्णतया भिन्न 1001 छिद्रों वाला है। ऐसा माना जाता है की महामृत्युन्जय भगवान के दर्शन और रुद्राभिषेक से महाभयंकर मृत्यु तुल्य कष्ट को टाला जा सकता है। शिव का ये मृत्युंजय कालजीत स्वरुप अत्यंत शोभनीय और दर्शनीय है।
बीर सिंह पुर शिवमंदिर (सतना)
विन्ध्य के ही एक और क्षेत्र सतना के उत्तर में 30 किमी की दूरी पर स्थित यह शिवमंदिर, बहुत प्रसिद्द तीर्थ स्थल माना जाता है। भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर प्रकृति की सुरम्य छटाओं के मध्य स्थित है। भोलेनाथ के दर्शन मात्र से भक्तों के समस्त संताप दूर हो जाते हैं। यदि आप चित्रकूट की यात्रा में हैं तो इस मंदिर के दर्शन करना न भूलें। इस क्षेत्र में स्वयं भगवान राम ने विचरण किया था।
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