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पदोन्नति में आरक्षण : आज की सुनवाई पूरी हुई निर्णय सुरक्षित रख लिया गया है



भोपाल : आज पदोन्नति में आरक्षण प्रकरण पर संविधान पीठ ने पुन: सुनवाई प्रारंभ की। सुबह अनारक्षित वर्गों की ओर से श्री राकेश द्विवेदी ने जिरह प्रारंभ की। उनके अतिरिक्त श्री नाफ डे, श्री कौशिक, श्रीमती किरण सूरी ने अपने तर्क रखे। प्रतिपक्ष की ओर से प्रतिपरिक्षण में महान्याय धीश के अतिरिक्त श्रीमती इंद्रा जयसिंह, श्री पट वालिया ने पुन: अपने तर्क रखे। प्रकरण पर बहस पूरी हो चुकी है एवम् पीठ ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है। निर्णय माह अंत तक आने की संभावना है।

शासन की ओर से पुन: तर्क दिया गया है कि अनुसूचित जाति/ जनजाति के पिछड़ेपन की परीक्षा नहीं की जा सकती वे स्वयं सिद्ध पिछड़े हैं। इस हेतु महान्यायविद द्वारा चैनैया प्रकरण के निर्णय को आधार बनाया गया। मान  जस्टिस मिश्रा व मान जस्टिस नरीमन द्वारा इसे खारिज किया गया एवं  कहा गया कि एम नागराज निर्णय और चैनैया निर्णय अलग अलग आधारों पर हैं और दोनों को जोड़ा नहीं जा सकता।

उम्मीद है कि प्रकरण 7/9 जजों की बेंच को न भेजा जाएगा बल्कि एम नागराज में निर्धारित शर्तों के कारण जो विसंगतियां उत्पन्न हो रही है उनके संबंध में स्पष्टीकरण के साथ संविधान पीठ का निर्णय आयेगा।

अभी तक निम्न बिन्दुओं पर बहस हो रही है :-
1. M Nagraj का निर्णय इन्द्रा साहनी के निर्णय के खिलाफ है या नहीं। ई वी चिन्नईयाह के निर्णय के खिलाफ है या नहीं । ' पिछड़ेपन '  और ' क्रीमी लेयर ' के मुद्दों पर ।

2. अनुच्छेद 16(4) में ' पिछड़ा वर्ग ' व ' अपर्याप्त प्रतिनिधित्व ', दोनो शर्तें दी गई हैं परन्तु 16(4)A में sc, st विशेष रूप से लिखा गया है ' पिछ्डेवर्ग ' के स्थान पर । ऐसी स्थिति में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिये sc , st का पिछड़ापन देखा जाना जरूरी है या नहीं ।

3. SC/ST के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को देखा जाना जरूरी है या नहीं ।

4. पदोन्नति में आरक्षण से पहले सकल प्रशासनिक दक्षता की सुरक्षा को देखा जाना जरूरी है या नहीं ।

5. sc, st में क्रीमी लेयर सिध्धान्त लागू होता है या नहीं । 

पदोन्नति में आरक्षण प्रकरण पर मान सर्वोच्च न्यायालय में संविधान पीठ ने कल 10.30 बजे पुन: सुनवाई प्रारंभ की। प्रतिवादी पक्ष की ओर से श्री राजीव धवन जी ने पक्ष रखा। श्री धवन ने पीठ को अवगत कराया कि सामान्य अनुसूचित जाति/ जनजाति वर्ग और नौकरीपेशा अनुसूचित जाति/ जनजाति के व्यक्तियों की तुलना नहीं हो सकती। दोनों अपने आप में अलग श्रेणी हैं। नौकरीपेशा अनुसूचित जाति/ जनजाति वर्ग का व्यक्ति स्वयं को मात्र इसलिए पिछड़ा नहीं मान सकता क्योंकि वह इस वर्ग से आता है। नौकरी में आने तक वह इस वर्ग के निहित लाभों को प्राप्त करने के बाद अन्य वर्गों के साथ समान हो जाता है अत: पदोन्नति हेतु एम नागराज में निर्धारित पिछड़ेपन की शर्त की पूर्ति होने पर ही उसे अन्यथा लाभ मिल सकते हैं। कोई शासकीय कर्मी सामाजिक विसंगतियों मात्र को अपने लिए आधार बनाकर यह लाभ नहीं ले सकता। अत: किसी वर्ग -2 अथवा वर्ग -1 का अधिकारी उनके वर्ग के साधारण अन्य व्यक्तियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार अथवा भेदभाव को अपने हित में उपयोग नहीं कर सकता। यह संविधान की धारा 14, 15 और 16 में वर्णित समानता के मौलिक अधिकार का उल्लघंन है। पदोन्नति में लाभ पाने वाला व्यक्ति विशेष है न कि वह समाज जिसका वह भाग है।              

श्री धवन के बाद श्री राकेश द्विवेदी ने प्रतिवादियों का पक्ष रखा और स्पष्ट किया कि धारा 16 (4a)  में स्वत: पिछड़ेपन को पर्याप्त प्रतनिधित्व से जोड़ा गया है अत: यह तर्क कि अनुसूचित जाति/ जनजाति के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग की भांति पिछड़ेपन का परीक्षण आवश्यक नहीं है, गलत है। कल दिनांक  30.8.2018 को भी प्रकरण की सुनवाई जारी रहेगी।

1 comment

Unknown said...

कांग्रेस ने reservation दे कर विचारों को अपंग कर दिया। Promotion में reservation कर दलित को स्थाई दलित कर दिया। BJP सोचती है कि मैं भी अधिनियम ला दूं। SC ST के सब वोट हमें मिल जाएगे। कांग्रेस के भक्त कांग्रेस के ही रहेंगे । सोच लो

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